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छठी की वो काली रात

6 मई 2023

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         अंधविश्वास के चक्कर में जान गंवाने या जान लेने के हादसे बहुत दर्दनाक होते हैं खासतौर से नाबालिग बच्चों की मौत,काला जादू और चुड़ैलों  के कपोल कहानियों के चलते  घरों में होनी अनहोनी किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहराई जा सकती। गांवों में एक ओर तकनीक पैर पसार रही है पर अशिक्षा के कारण गांवों और गरीब परिवारों के सदस्यों के दिमाग में पसरी अज्ञानता को कैसे हटाया जाये,यह विचारणीय प्रश्न है? सैकड़ों बच्चों की जिंदगी छीनने वाला या उनको अपंग बना देने वाला भ्रम (जमोगा) कैसे दूर किया जाये उस पर योजनाएं बहुत चल रहीं पर लचर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते सब ऊंट के मुंह में जीरे जैसी।
          मलिन बस्ती के अहाते के एक छोटे के कमरे में शुरू कहानी ,जो आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर अनपढ नन्हकू अपनी पत्नी सरयूदेई और इकलौती औलाद मुनई के साथ से शुरू होती है। नन्हकू रात को सोने के पहले सबको राजा रानी और अच्छे और सुखद सपने संजोने वाले किस्से सुनाता तो सबको अच्छा लगता, तो कभी भूत प्रेत, चुड़ैलों के कहानियों को सुनाकर अज्ञात भय पैदा करता । सरयूदेई रात में ऐसे किस्से सुनाने का विरोध करती । मुनई को भी इनसे अज्ञात डर लगता ,रात में कई बार डर से चौंक कर उठता भी था। मुनई उस समय पास के म्युनिसिपल के स्कूल में सातवीं क्लास में पढ़ता था। गरीब परिवार से संबंध होने के कारण उसकी पूरी फीस माफ थी और पढ़ाई में स्तर अच्छा होने के कारण संस्थान से पांच रुपए प्रति माह वजीफा भी मिलता था। जब भी उसको साल भर का वजीफा मिलता, परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे खिल उठते , क्योंकि धन मिलने पर परिवार के रोजमर्रा की जरूरत पूरी की जाती,एक बार मुनई के लिए जूते और आर्ट के चित्र के लिए कोमल का पेस्ट कलर का डिब्बा खरीदा गया। नन्हकू भी सिविल ठेकेदार के आधीन मजदूर होकर वह दैनिक मजदूरी करके अपने परिवार की छोटी-छोटी दिली ख्वाहिशें ले देकर पूरी करता था। पहले वह सूती कपड़े बनाने वाली एल्गिन मिल में रंगरेज कर्मचारी के रूप में काम करता था,पर नियति में दुर्दिन आने थे,सो सुपरवाइजर ने कपड़ा चोरी का आरोप लगाकर उसको वहां से निकाल दिया। सरयूदेई भी, पास के किसी प्राइवेट स्कूल में तीस रुपये महीने की पगार पर घंटी बजाने और मिड -डे -मील  का काम करने लगी थी।कारण साफ था,नन्हकू को एक दिन मछली वाले हाते के पास सिद्दीकी के मकान में सिविल मजदूरी करते समय सीढ़ी से ईंटें चढ़ाते वक्त दाहिने पैर के अंगूठे पर एक समूचा ईंट गिर गया और उसके कोने की धार से अगूंठा कट गया । इस हादसे के बाद वह मजदूरी भी न कर सका। पर सिद्दीकी जी को तरस आया उन्होंने उसकी कुछ धन से मदद करते रहे।लोग प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर!किसी परिवार को  विपत्ति देना, जितनी भली लगे । इसकी आड़ में यह पता चल सके कि  इर्द-गिर्द समाज का कौन व्यक्ति हित और कौन अनहित है, उसे जांचा जा सके ,उस सीमा तक तो भला लगता है? ,पर इस विपत्ति में बदनसीबी संग लग  जाय तो दारुण मंजर उपस्थित हो जाता है ।गरीबी तो बदनसीबों के घर ही आती है।इस दरम्यान उस परिवार में कोई मौत हो और अंधविश्वास और परम्परागत बेड़ियों से जकड़ी कुरीतियां उस जगह को घेर लें तो ऐसे में समझ से परे जो भयावही मंजर बनता है वह व्यक्ति, परिवार,समाज और राष्ट्र को झकझोर देता है।
          हम यह नहीं कहते कि अंधविश्वास और सामाजिक बेड़ियां किसी भी परिवार या समाज के लिए ठीक है,ये तो पंडों के कपोल कल्पित कर्मकांड और अदृश्य भय से निर्मित मन में कल्पना लोक और अल्पज्ञान या से निर्मित परिस्थितियां हैं जो पूर्वजों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी  आगे हस्तांतरित होती हैं ये अज्ञान के अंधकारमय साम्राज्य से हवा खाद पानी पाकर पनपती हैं । यह अलग विषय है कि किस प्रकार के वातावरण  से परिवार किस प्रकार गर्त में जाता है ,पर बारह या तेरह साल के किशोर मन पर क्या प्रभाव डालता है,किस प्रकार डालता है? यह अत्यन्त गम्भीर विषय है ,वह परिजनों या पड़ोसियों को बोल या समझा नहीं सकता क्योंकि वह उस वातावरण से खुद ग्रस्त होता है,उसकी खोपड़ी के खोल में वही विचार धाराएं गूंजती रहतीं हैं जो विरासत ने दी हैं।
          सरयूदेई गर्भवती थी, सो उसको महिला और बाल कल्याण  विभाग,सूटरगंज से मुफ्त में पोषण आहार में ब्रेड और दूध मिल जाता था।सो परिवार के सभी सदस्य मिल-बांट कर अपनी छुधा को शांत कर लेते थे। सम्बंधित विभाग से नर्सें भी बीच बीच में घर आकर सरयूदेई के स्वास्थ्य को चेक करती रहती थी। सब प्रकार से सामान्य स्थिति होने से संतुष्ट भी थी,पर दसहरे के त्योहार के कारण विभाग में कुछ दिन पहले छुट्टियां लग गई थीं। अतः बच्चे के जन्म देने के समय उन्हें सूचना नहीं मिल पाई या सरयूदेई को कल्याण विभाग के अस्पताल नहीं ले जाया गया। पास के किसी नीम हकीम दाई को उस समय बुलाया गया, उसने बच्चे के नाभि के नाल को दाढ़ी बनाने वाली रेजर ब्लेड से अलग किया, बच्चा स्वस्थ जन्मा था था,सब प्रसन्न थे।
          पर विधि के विधान को कौन जानता, गांव से आए इस परिवार के सोच में विरासत में मिले अंध विश्वास और कुरीतियों ने जो जगह बना रखी थी। तीसरे या चौथे दिन में उसके शरीर में अजीब सी हरकतें होने लगी। नवजात बच्चा अपने चेहरे और शरीर का हाव भाव बदलने लगा।वह मां के स्तन से ज्यादा दूध और चटकारे मार मार कर पीने लगा।कभी कभी अपने मसूड़े से स्तन काटने लगा।पहले तो सरयूदेई समझ नहीं पाई,सो उसने इसकी किसी से चर्चा नहीं की। बाद में जब बच्चे ने मसूड़े भींच लिये और स्तनपान करना छोड़ दिया तो पड़ोस में इसकी चर्चा की। महिलाओं ने आना शुरू किया। हरिलाल पासी के परिवार की महिला ने आकर देखा तो बोलने लगी,इस बच्चे को जमोगा हो गया है,यह भूत प्रेत का साया होता है। किसी महिला ने कहा कि घर के आंगन में सुतली बम आग लगा कर फोड़ दो तो इसकी चीख निकल जायेगी और भींचे मसूड़े खुल जायेंगे,किसी ने कहा कि एक बतख पक्षी ले आओ ,अगर वह अपने पंखों से बच्चे को अपने अंदर छिपी लेगा मतलब छिपा लेगा , पक्षी को जमोगा लग जायेगा ,तो पक्षी मर जायेगा  परिणामस्वरूप बच्चे की जान बच जायेगी। नन्हकू किसी तरह जुगाड़ कर सुतली बम लाया और आग लगाकर फोड़ा जोर से कानफोडू आवाज भी हुआ पर उसके भींचे मसूड़े नहीं खुले। बच्चे के छठी के दिन हरिया पासी की महिला ने कहा कि एक कटोरी में सरसों तेल खौलाओ और उसमें शिशु के साथ की अंगुलियां डुबो दो,तो मुंह से चीख निकलेगी , भिंचे मसूड़े खुल जायेंगे और इसकी जान बच जायेगी।किशोर मुनई ये बुढ़िया पुराण की बांते सुन रहा था और खौफनाक मंजर देख भी रहा था‌‌।उसके पलकों में आंसू सूख गये थे, आवाज रुंध गयी थी। कमरे के अंदर पीछे दीवार के एक कोने में टंगी धुंए से धुंधली पड़ी माननीय डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद की घनी मूंछों वाली तस्वीर पर उसकी नज़र  कुछ देर रुकती फिर  छत में लगी एंगल पर हुक से जड़ी उस टीन की चादर पर टिकती जो चूल्हे के धुंए से काली हो गई थी,शायद उसको वह मंजर याद आता होगा कि बरसात के दिनों में छत के टीन के ऊपर पड़े पलस्तर के दरार से टीन से रिस रिस कर आता काला पानी कैसे उसके चेहरे, कपड़े किताब और कापियों पर अपना अधिकार जमाया था।अब अहसास जरूर दिलाता कि वह मौसम ने होने के कारण काला धब्बा नहीं लगा रहा, पर उसके बदले कमरे में फैले काले अंधविश्वास के कारण काली रात जरूर आ गई है।खैर उस खौलते तेल में नवजात बच्चे की अंगुलियां डाली गईं ,उससे उसने अपना चेहरा जरूर बिगाड़ा,पर भिंचे जबड़े नहीं खुले। नन्हकू ने बाहर जंगल से मारमूर के पत्ते लाया उसके चौड़े पत्ते में उस बच्चे को रखा गया थोड़ी देर बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगा और आधी रात की कालिमां में अपना दम तोड़ दिया। आधी रात के घनघोर शांत वातावरण में घर में जैसे सब सब कुछ शांत हो गया।
          हमारे देश में अंधविश्वास और अज्ञानता की जड़ें काफी गहराई में हैं जिनका प्रभाव अधिकतर कमजोर  तबकों और गरीब परिवारों में ज्यादा पड़ता है। बीमारियों के गिरफ्त में आने वाले बच्चों को भूत प्रेत का साया मानकर अंगों को जलाने की प्रथा अनवरत चल रही है। अब आवश्यकता है जड़ को नष्ट करने की कटिबद्धता की।
          
          
          

ओमप्रकाश गुप्ता की अन्य किताबें

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने 👍🙏🙏🙏

29 अक्टूबर 2023

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रचनाएँ
वक्त की रेत पर
5.0
इस पुस्तक में अधिकांश ऐसे वर्ग के परिवारों की कहानियों का संग्रह है जो समाज की आर्थिक संरचना की दृष्टि में लगभग पेंदे पर है , सामान्य तौर पर लोगों की नज़र इनकी समस्याओं पर न तो पड़ती है और न ही तह तक जाकर समझना चाहती ।देश के कानून के अनुसार किसी वर्ग में नहीं आता क्योंकि राजनैतिक पार्टियों का मतलब केवल वोट बैंक से है जो धर्म,जाति या क्षेत्रवादिता पर आधारित है जो उनके शक्ति देने में सहायक है। यह अछूते हैं क्योंकि इनकी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है।आरक्षण का मूल आर्थिक न होने के कारण इनसे कोई हमदर्दी भी नहीं है।इस अनछुए वर्ग के लोगों की मानसिकता भी ऐसी है जिसमें आत्मविश्वास या विल पावर न के बराबर दिखती है ये समस्याओं में ही जीते और उसी में मर जाते हैं। इनमें इतनी भी कला नहीं होती कि किसी के समक्ष कुछ कह सके।इस पुस्तक के कहानियों के माध्यम से लेखक समाज को ठेकेदारों को यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि देश का वास्तविक विकास इन अनछुए वर्ग को समस्याओं से निजात देने में निहित है। कुछ विचारोत्तेजक लेख भी समाहित हैं जो सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि हम सब ,चाहे जितना सबल हों,नियति का हाथ हमेशा ऊपर रहता है,आखिर होनी ही तो है जो हर मनुष्य के किस्मत के साथ जुड़ी होती है, होनी और किस्मत मिलकर मनुष्य के सोच( विचार) का निर्माण करते हैं,सोच में ही तो सर्वशक्तिमान हर प्राणी में कुछ कमियां और खूबियां छोड़ देता है।वही मनुष्य के चाहे अथवा अनचाहे मन की विवशता से भवितव्यता की ओर ठेल ( धकिया)कर ले जाता है।चाहे मूक रूप से धर्मयुद्ध का शंखनाद हो या होनी के आगे कर्ण की विवशता।
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महा धर्मयुद्ध का शंखनाद

19 अप्रैल 2023
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इतिहास गवाह है कि प्रत्येक क्रांतिकारी युगपरिवर्तन के लिए धर्मयुद्ध हुआ है उसका स्वरूप चाहे जैसा भी हो।कभी कभी अस्तित्व के लिए परिस्थियों से संघर्ष,कुछ संवेगो और आवेगों को

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छठी की वो काली रात

6 मई 2023
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- अंधविश्वास के चक्कर में जान गंवाने या जान लेने के हादसे बहुत दर्दनाक होते हैं खासतौर से नाबालिग बच्चों की मौत,काला जादू और चुड़ैलों के कपोल कहानियों के चलते&nb

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कुछ तो गूढ़ बात है!

13 मई 2023
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हां,वो मां ही थी!

27 मई 2023
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दो बच्चों के स्वर्गलोक सिधार जाने के बाद तीसरे बच्चे के रूप में किशोर(नामकरण के बाद रखा नाम) जब गर्भ में आया तो उसकी मां रमाबाई अज्ञात डर और बुरी

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लौटा दो, वो बचपन का गांव

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13 अक्टूबर 2023
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बहुतायत में लोग कहते हैं कि प्राणी का जन्म मात्र इत्तेफाक ही नहीं होता, पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाले लोग इसके साथ प्रारब्ध, क्रियमाण भी जोड़ देते हैं

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वे ऐसा क्यूं कर रहे?

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बीते दिनों को क्यूं लौटें,इससे क्या फायदा?जो होना था,वह सब कुछ हो गया।समझ में नहीं आता कि इतिहास का इतना महत्व क्यूं दिया जाता? वेंकट उन सारे मसलों को अपने विचारों क

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वह कुप्पी जली तो,,,,,,,

20 अक्टूबर 2023
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जब अपने सपनों की मंजिल सामने हो और हासिल करने का जज्बा हो।इसके अलावा जज्बे को ज्वलंत करने के मजबूत दिमाग और लेखनी में प्रबल वेग से युक्त ज्ञानरुप

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चल चला के बीच,लगाई दो घींच

25 अक्टूबर 2023
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उन दिनों, जब पूस की ठंड अपने शबाब पर होती, गांव में हमारे घर के सामने चौपाल लगती,लगे भी क्यों न? वहीं पुरखों ने एक बरगद का पेड़ लगा रखा हैं। बुजुर्ग व्यक्ति र

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सकउं पूत पति त्यागि

27 अक्टूबर 2023
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नया दौर है ,खुली हवा में सांस लेने की दिल में चाह लिए आज की पीढी कुछ भी करने को आतुर रहती हैं।मन में जो आये हम वही करेंगे ,किसी प्रकार की रोक-टोक

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एक किता कफ़न

31 अक्टूबर 2023
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आखिर उस समय उन्होंने अस्पताल में एडमिट मां के बेड के सामने, जो खुद अपने बिमारी से परेशान है , इस तरह की बातें क्यों की?इसके क्या अर्

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कर्ण,अब भी बेवश है

8 नवम्बर 2023
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चाहे काली रात हो,या देदीप्यमान सूर्य से दमकता दिन। घनघोर जंगल में मूसलाधार बरसात जिसके बीच अनजान मंजिल का रास्ता घने कुहरे से पटा हुआ जिस पर पांच कदम आगे बढ़ाने पर भ

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आत्ममुग्धता, वातायन की

23 नवम्बर 2023
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मैंने न जाने कितने तुम्हारे छुपे हुए दीवानापन, बेगानापन, अल्हड़पन और छिछोरापन के अनेकों रूप देखें हैं।मेरी आड़ में सामने निधडक खड़े,बैठे,सोये,अपने धुन में मस्त दूसरो

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सोच, व्यव्स्था बदलाव की

26 नवम्बर 2023
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लगभग वर्ष 1973 की बात है,मेरी आयु भी 17 वर्ष के आस पास थी;अपने निवास स्थान से थोड़ी दूर स्थित बृजेन्द्र स्वरूप पार्क में सुबह शाम टहलना हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा हुआ करता था।यह एक ऐसा सा

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हर घर, अपना अर्थ ढूंढ रहा है

19 दिसम्बर 2023
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दुखड़ा किससे कहूं?

6 जनवरी 2024
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पता नहीं क्यों,आज दिन ढलते ही गर्मी से निजात पाने "अनुभव"अपने हवेली की खुली छत पर खुली हवा में सांस लेते हुए अपनी दोनों आंखें फाड़े हुए नीले व्योम के विस्तार को भरपूरता से देख रह

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शहरों से न्यारा मेरा गांव

16 जनवरी 2024
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मनराखन बाबू फर्श पर बिछी चटाई पर बैठे थे और लकड़ी की चौकी पर कांसे की थाली में उनके लिए भोजन परसा जा रहा था। नैसर्गिक और छलहीन प्रेम और बड़े सम्मान के स

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जेहि जब दिसिभ्रम होइ खगेसा........

19 मार्च 2024
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रेडियो में बड़े ध्यान से बगल की घरैतिन "लक्ष्मी " पुरानी मूवी "मदर इंडिया" का गीत"नगरी नगरी द्वारे द्वारे........" को अपने लय में गाये जा रहीं थीं जैसे लगता मुसीबत की मारी "नर्गिस" का रोल इन्हीं

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शकुनि कब तक सफ़ल रहेगा?

23 मार्च 2024
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पता नहीं लोग उजाले को ही क्यों देखते हैं,हमने माना कि ज्ञान सूर्य तुल्य है , शक्ति से परिपूर्ण है , वैभवशाली है और आकर्षक है पर सम्पूर्ण नहीं है । आखिरकार इसक

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तेज कदमों से बाहर निकलते समय

21 अप्रैल 2024
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हमें जिंदगी में लाना होगा भरोसा जो कदम कदम पर जिंदगी की आहट को उमंगो की तरह पिरो दे, और वह अर्थ खोजना होगा जो मनुष्य को मनुष्य होने की प्रेरणा दे।वह लम्हे चुरा

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कोई भी मनुष्य अपने जीवन को परिपूर्ण तथा महत्तम आनन्दमय बनाने लिए मनपसंद मार्ग चुनने के लिए स्वतंत्र है पर उस मार्ग की दशा और दिशा का पूर्णतः निर्धारण नियति ही

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