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आत्ममुग्धता, वातायन की

23 नवम्बर 2023

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          मैंने न जाने कितने तुम्हारे छुपे हुए दीवानापन, बेगानापन, अल्हड़पन और छिछोरापन के अनेकों रूप देखें हैं।मेरी आड़ में सामने निधडक खड़े,बैठे,सोये,अपने धुन में मस्त दूसरों के अंजानेपन का फायदा उठाकर तुम्हारे अंदर छिपी शरारती  नज़रों को देखा है। छुप छुप कर बातें सुनते और दूसरों पर कंकड़ उछालते देखा है तुम लोगों के जीवन के हर पहलू से जुडकर यह अपने अस्तित्व का अहसास करवाना चाहती हूं कि तुमने न जाने कितनी बार मेरी आड़ लेकर कितना लड़कपन किया है।पर मैंने ये राज किसी को नहीं बताया इससे  तुम्हारे नज़र में अपनी गरिमा बनाये रखी है और तुम्हारा आत्मसम्मान बचाया है ।
         हमारे एक फुट के लम्बे चौड़े मुखड़े से ,जिसमें शायद एक फुट की लम्बी लोहे की तीन पतली सरिया लगी होंगी, कभी लोहे की लम्बी लम्बी ये छड़ें सहायक तो कभी बाधक हुई होंगी, पर इनसे झांक झांक कर अपने में कौतूहल पैदा किया होगा। तुम्हें पता हो या न हो,पर कई गहरे राज मेरे इस छोटे से चेहरे ने जाने हैं,मेरे इस मुखौटे से अंतरिक्ष की आंखों ने तुम्हें भरपूर देखा है,समझा है, इधर से गुज़रती हुई हवाओं ने तुम्हें बहकते हुए देखा है,जब लकड़ी के बने खुले चौखटों से तेंदू पत्ते से बने बीड़ी को सुलगाकर तुमने सुट्टे से धुएं का छल्ला छोड़ा था।मेरे सामने चल रहे प्रेमी युगलों के रोमांस के देशी तरीकों को  समझने के लिए ,मेरे कोने की आड़ लिया है ,बनावटी या नैसर्गिक प्रेम के दोनों पहलुओं  पर छिछलापन या गहराई के अर्थ को वासना और समर्पण के कोण से समझने की कोशिश की है। तुम्हें याद हो या न हो पर आज कितनी सफलता या असफलता,सपाट या टेढ़ी मेढी राहों पर चलकर जाने कितनी आशाओं और निराशाओं के बाद तुम जिस मुकाम पर खड़े हो, उसमें मेरी भूमिका कम नहीं है।
      मेरे झरोखे के ऊपर बने लम्बे जीर्ण शीर्ण लकड़ी के टूटे हुए भाग का उपयोग करते हुए  चिड़ियों के जोड़े ने तिनके से जो घोंसला बनाया,काले चोंच के चिरौटे ने चीं चीं  करते हुए गहुंए रंग की चोंच वाले चिड़ी का सहयोग कर घरौंदे को खुशहाल बनाया, शायद तुमको याद होगा,तुमने और तुम्हारे भाई ने चावल के दानों को उनके समीप छोड़ा था,और मैंने तुम दोनों को कुछ दूर चुपचाप टकटकी लगाए देखा भी है,शायद यह जानने के लिए वे दोनों नर और मादा चिड़े कैसे अपने बच्चों को चावल के कठोर दानें खिलाते,इस रहस्य को बचपनी कौतूहल से अपनी मां से यह जाना कि उन दानों को अपने कठोर चोंच ,पर अंदर से नम और रसीले विशेष द्रव से मुलायम कर लेते हैं  ,और दोनों ने अपने चोंच से उन कोमल दानों को नीड़ में पड़े बच्चों को खिलाते देखा है ,उन लोगों को दाना चुगाते हुए मैंने अवलोकन किया कि वे कई बार चौखट से बाहर और अंदर आते क्यों हैं,शायद वे संभावित खतरे सेखुद और अपने नवजात शिशुओं को सावधान किया करते हैं पर कुछ भी हो ,उन्होंने अपना ही नहीं मेरे चौखटे को रोशन करते हुए तुम्हारे घर को भी अपने खुशियों की चहचहाहट से भर दिया ,जीवन में खुशियों का अर्थ , तरीकों को सिलसिलेवार तरीके से समझाया भी। उस जोड़े ने आफत के उस झंझावात को भी झेला है जब घर में पली हुई बिल्ली ने उनके घोंसले को न केवल तहस नहस किया बल्कि अंडे बच्चों को अपने कालरूपी पंजे में लिया,कभी मेरे चौखट से गुजरती तेज हवा के झोंकों की वजह से घरौंदे से चिड़े के बच्चे फर्श पर गिर गये और छोटी-छोटी चींटियों ने उसके शरीर पर जब चिपकाने लगे तब उसके मुंह में दूध की कुछ बूंदें डालते हुए, कपड़े के छोटे कपड़े पर लिटाते हुए, उसके तड़पन पर आंसू बहाते हुए  तुम्हारे उस बाल स्वभाव सहानुभूति भी देखा है। 
      मैंने अपने चौखट से अपने मन पर उभरते दृश्य, पर वास्तव में दबी हुई भावनाओं की तलहटी से तुम्हारी ही नहीं, बल्कि तुमसे जुड़े परिवार के अन्य सदस्यों के भाव भंगिमाओं को आत्मसात किया है।

ओमप्रकाश गुप्ता की अन्य किताबें

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने सर मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां पढ़कर अमूल्य समीक्षा व लाइक दे दें 😊🙏

24 नवम्बर 2023

ओमप्रकाश गुप्ता

ओमप्रकाश गुप्ता

25 नवम्बर 2023

हमनें किसी कारण से पूरी नहीं पढ़ी है।जितना पढ़ पाया उससे महसूस हुआ कि आप लिखी कथा वस्तु बहुत दिल के अंतरतम को छूती है,लगता यह आस पास की कहीं घटना है। आपने व्यक्तित्व एक मंजे हुए कलाकार जैसी है,पाठक बरबस आपके कथा वस्तु बंधा रहता हैं।

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रचनाएँ
वक्त की रेत पर
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इस पुस्तक में अधिकांश ऐसे वर्ग के परिवारों की कहानियों का संग्रह है जो समाज की आर्थिक संरचना की दृष्टि में लगभग पेंदे पर है , सामान्य तौर पर लोगों की नज़र इनकी समस्याओं पर न तो पड़ती है और न ही तह तक जाकर समझना चाहती ।देश के कानून के अनुसार किसी वर्ग में नहीं आता क्योंकि राजनैतिक पार्टियों का मतलब केवल वोट बैंक से है जो धर्म,जाति या क्षेत्रवादिता पर आधारित है जो उनके शक्ति देने में सहायक है। यह अछूते हैं क्योंकि इनकी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है।आरक्षण का मूल आर्थिक न होने के कारण इनसे कोई हमदर्दी भी नहीं है।इस अनछुए वर्ग के लोगों की मानसिकता भी ऐसी है जिसमें आत्मविश्वास या विल पावर न के बराबर दिखती है ये समस्याओं में ही जीते और उसी में मर जाते हैं। इनमें इतनी भी कला नहीं होती कि किसी के समक्ष कुछ कह सके।इस पुस्तक के कहानियों के माध्यम से लेखक समाज को ठेकेदारों को यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि देश का वास्तविक विकास इन अनछुए वर्ग को समस्याओं से निजात देने में निहित है। कुछ विचारोत्तेजक लेख भी समाहित हैं जो सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि हम सब ,चाहे जितना सबल हों,नियति का हाथ हमेशा ऊपर रहता है,आखिर होनी ही तो है जो हर मनुष्य के किस्मत के साथ जुड़ी होती है, होनी और किस्मत मिलकर मनुष्य के सोच( विचार) का निर्माण करते हैं,सोच में ही तो सर्वशक्तिमान हर प्राणी में कुछ कमियां और खूबियां छोड़ देता है।वही मनुष्य के चाहे अथवा अनचाहे मन की विवशता से भवितव्यता की ओर ठेल ( धकिया)कर ले जाता है।चाहे मूक रूप से धर्मयुद्ध का शंखनाद हो या होनी के आगे कर्ण की विवशता।
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महा धर्मयुद्ध का शंखनाद

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इतिहास गवाह है कि प्रत्येक क्रांतिकारी युगपरिवर्तन के लिए धर्मयुद्ध हुआ है उसका स्वरूप चाहे जैसा भी हो।कभी कभी अस्तित्व के लिए परिस्थियों से संघर्ष,कुछ संवेगो और आवेगों को

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छठी की वो काली रात

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- अंधविश्वास के चक्कर में जान गंवाने या जान लेने के हादसे बहुत दर्दनाक होते हैं खासतौर से नाबालिग बच्चों की मौत,काला जादू और चुड़ैलों के कपोल कहानियों के चलते&nb

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कुछ तो गूढ़ बात है!

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ओम के दिमाग में पता नहीं,कब होश आया? कब विचार कौंधा? उसने अपनी दिनचर्या में उस नगर निगम के वृजेन्द्र स्वरूप पार्क में रोज सुबह शाम टहलने का विचार बनाया। विचार तो नैसर्गिक ह

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हां,वो मां ही थी!

27 मई 2023
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दो बच्चों के स्वर्गलोक सिधार जाने के बाद तीसरे बच्चे के रूप में किशोर(नामकरण के बाद रखा नाम) जब गर्भ में आया तो उसकी मां रमाबाई अज्ञात डर और बुरी

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बहुतायत में लोग कहते हैं कि प्राणी का जन्म मात्र इत्तेफाक ही नहीं होता, पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाले लोग इसके साथ प्रारब्ध, क्रियमाण भी जोड़ देते हैं

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वे ऐसा क्यूं कर रहे?

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बीते दिनों को क्यूं लौटें,इससे क्या फायदा?जो होना था,वह सब कुछ हो गया।समझ में नहीं आता कि इतिहास का इतना महत्व क्यूं दिया जाता? वेंकट उन सारे मसलों को अपने विचारों क

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जब अपने सपनों की मंजिल सामने हो और हासिल करने का जज्बा हो।इसके अलावा जज्बे को ज्वलंत करने के मजबूत दिमाग और लेखनी में प्रबल वेग से युक्त ज्ञानरुप

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चल चला के बीच,लगाई दो घींच

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आखिर उस समय उन्होंने अस्पताल में एडमिट मां के बेड के सामने, जो खुद अपने बिमारी से परेशान है , इस तरह की बातें क्यों की?इसके क्या अर्

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8 नवम्बर 2023
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चाहे काली रात हो,या देदीप्यमान सूर्य से दमकता दिन। घनघोर जंगल में मूसलाधार बरसात जिसके बीच अनजान मंजिल का रास्ता घने कुहरे से पटा हुआ जिस पर पांच कदम आगे बढ़ाने पर भ

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आत्ममुग्धता, वातायन की

23 नवम्बर 2023
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सोच, व्यव्स्था बदलाव की

26 नवम्बर 2023
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लगभग वर्ष 1973 की बात है,मेरी आयु भी 17 वर्ष के आस पास थी;अपने निवास स्थान से थोड़ी दूर स्थित बृजेन्द्र स्वरूप पार्क में सुबह शाम टहलना हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा हुआ करता था।यह एक ऐसा सा

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19 दिसम्बर 2023
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भारतीय परिवेश में 'घर' एक समूह से जुड़ा हुआ शब्द समझा जाता है जिसमें सभी सदस्य न केवल एक ही रक्त सम्बन्ध से जुड़े होते हैं बल्कि परस्पर उन सभी में उचित आदर,संवेदन, लिहाज़ और सहनश

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दुखड़ा किससे कहूं?

6 जनवरी 2024
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पता नहीं क्यों,आज दिन ढलते ही गर्मी से निजात पाने "अनुभव"अपने हवेली की खुली छत पर खुली हवा में सांस लेते हुए अपनी दोनों आंखें फाड़े हुए नीले व्योम के विस्तार को भरपूरता से देख रह

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शहरों से न्यारा मेरा गांव

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मनराखन बाबू फर्श पर बिछी चटाई पर बैठे थे और लकड़ी की चौकी पर कांसे की थाली में उनके लिए भोजन परसा जा रहा था। नैसर्गिक और छलहीन प्रेम और बड़े सम्मान के स

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जेहि जब दिसिभ्रम होइ खगेसा........

19 मार्च 2024
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रेडियो में बड़े ध्यान से बगल की घरैतिन "लक्ष्मी " पुरानी मूवी "मदर इंडिया" का गीत"नगरी नगरी द्वारे द्वारे........" को अपने लय में गाये जा रहीं थीं जैसे लगता मुसीबत की मारी "नर्गिस" का रोल इन्हीं

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शकुनि कब तक सफ़ल रहेगा?

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पता नहीं लोग उजाले को ही क्यों देखते हैं,हमने माना कि ज्ञान सूर्य तुल्य है , शक्ति से परिपूर्ण है , वैभवशाली है और आकर्षक है पर सम्पूर्ण नहीं है । आखिरकार इसक

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तेज कदमों से बाहर निकलते समय

21 अप्रैल 2024
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हमें जिंदगी में लाना होगा भरोसा जो कदम कदम पर जिंदगी की आहट को उमंगो की तरह पिरो दे, और वह अर्थ खोजना होगा जो मनुष्य को मनुष्य होने की प्रेरणा दे।वह लम्हे चुरा

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