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सोच, व्यव्स्था बदलाव की

26 नवम्बर 2023

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लगभग वर्ष 1973 की बात है,मेरी आयु भी 17 वर्ष के आस पास थी;अपने निवास स्थान से थोड़ी दूर स्थित बृजेन्द्र स्वरूप पार्क में सुबह शाम टहलना हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा  हुआ करता था।यह एक ऐसा सार्वजनिक स्थल था, जहां समृद्धशाली वर्ग से लेकर कमजोर वर्ग तक के सभी लोग अपने निहित उद्देश्य से आते ही रहते थे।पास में वेलफेयर सेंटर था, वहां की लाइब्रेरी में विभिन्न प्रकार की पत्रिकाएं, समाचार पत्र तो आते ही थे साथ ही साथ बगल में डिस्पेंसरी होने के कारण लोग उपचार के लिए भी आते थे। हर वर्ग के विद्यार्थी स्वाध्याय के लिए वहीं स्थित गुलाब के बगीचे में लगभग दिवस पर्यंत बने रहते थे।इसके अतिरिक्त अलग से निर्मित अखाड़े में दंगल और स्टेडियम में खिलाड़ियों की टीम फुटबाल की प्रेक्टिस करती थी। स्थानीय आर्य नगर मोहल्ले से सर्वोदय मंडल के संचालक श्री ओमप्रकाश चतुर्वेदी पार्क में बने उद्यान के कोने में मंडल का बैनर लगाकर आगंतुक किशोरों के समूह का गोला बनाकर तरह तरह के खेल खिलाते, विभिन्न प्रेरक कहानियां, चुटकुले बच्चों से सुनते और सुनाते इसके अतिरिक्त गांधी जी के भजन, सर्व धर्म प्रार्थना,सेवा मंत्र और भोजन मंत्र इत्यादि बुलवाते थे। मैं कई दिनों तक एक पेड़ के पास खड़े होकर उनके क्रियाकलापों को देर तक देखता रहता,पर स्वभाव से संकोची होने के कारण उस समूह में शामिल होने की हिम्मत न जुटा पाता। संयोग से एक दिन संचालक चतुर्वेदी जी ने मुझे बुलाकर समूह में शामिल किया।मुझे अच्छा लगा,सो नियमित रूप से उनके पास जाने लगा।धीरे धीरे उनके कार्यालय जाता और उसमें स्थित लाइब्रेरी में पुस्तकों का अध्ययन करता। वहां गांधी जी के वांग्मय,संत विनोबा जी के भूदान आंदोलन के समाचार पत्र,गीता प्रवचन, गोपाल कृष्ण गोखले ,रामकृष्ण मिशन की पुस्तकें और अन्य सत्साहित्य की पुस्तकें पढ़ता।कुछ समय पश्चात मैं संत विनोबा जी की संस्था"तरुण शांति सेना"का सदस्य बन गया। हमें इस माध्यम से कई बार संत बिनोवा से मिलने का सौभाग्य मिला। दो सप्ताह के अंतर में स्थानीय तिलक नगर में स्थित "तिलक हाल" में सभा होती वहां श्री जे०बी० कृपलानी अन्य राष्ट्रीय नेताओं से मुलाकात होती;उन्हीं दिनों सर्वोदयी नेता श्री जयप्रकाश नारायण का सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरोध में आन्दोलन चला रखा था। उन्होंने युवाओं को समग्र क्रांति के लिए देश के युवाओं को "यूथ फार डेमोक्रेसी" संस्था में आमंत्रित किया मुझे लगा कि हमें भी समाज को समान न्याय और अधिकार दिलाने की सोच लिए ऐसी संस्था में आना चाहिए अतः बिना किसी राजनैतिक मंशा के स्वच्छ मानसिकता लिए शामिल हो गया,उस समय हमारी इस जिला यूनिट के संयोजक श्री सरफराज आलम हुआ करते थे।वहां प्रायः श्री जयप्रकाश नारायण से वार्तालाप होती । चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओं के विचार सुनने को मिलते।  मई-जून के महीने में जिला मुख्यालय सिविल लाइंस में स्थित "गांधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र" के माध्यम से  युवाओं की टीम में हम भी  इस अभियान से जुड़ गये।इस केन्द्र के संचालक श्री विनय भाई प्रतिदिन कार्यक्रम की रूपरेखा बनाते थे।कई टीमों को बनाया जाता था, किसी सदस्य को कोई नुक़सान या परेशानी न हो, उसके लिए प्रत्येक टीम में लगभग पांच सदस्य रखें जाते थे,साथ सुरक्षा की दृष्टि से कोर्ट के वकील और स्थानीय थाने के पुलिस फोर्स को इत्तिला करते थे साथ साथ मदद भी लेते थे। किसी प्वाइंट पर जाने के समय हम सभी सदस्य शर्टनुमा कागज के पोस्टर पहने रहते थे।उस पर लिखा होता था।
             "सच कहना,अगर बगावत है,
                तो समझो हम भी बागी हैं।।१।।
                             या
                  जागे युवक,हुए तैयार,
                 अब न सहेंगे भ्रष्टाचार।।२।।......... इत्यादि।।
टीम के लक्ष्य पर जिला न्यायालय में स्थित स्टाफ, पुलिस थाने,नगर निगम के दफ्तर, अवैध शराब के ठेके और बड़े व्यापारियों के गोदाम होते थे।हम किसी टीम में शामिल हो जाते थे और टीम के दिशा निर्देशों के अनुसार हम सारे  सदस्य एक साथ रहकर कार्य करते थे। जैसे कोर्ट में चल रहे मुकदमे की प्रक्रिया में अर्दली और पेशकार मुवक्किल से घूस लेने की चेष्टा करते थे हमारी टीम उनके कलाई पकड़ लेती थी और इस व्यवहार को न करने की समझाइश देती थी।यदि कोई थानेदार दूर से मैनुअल रिक्शे पर बैठकर अपने थाना कार्यालय आता था तो रिक्शेवाले को बिना मजदूरी दिये जब गेट से प्रवेश करता था,तो हमारी टीम थानेदार को ऐसा न करने का अनुरोध करती थी, रिक्शे वाले को मजदूरी दिलाने के बाद ही वहां से हटती थी, पुलिस और फूड इंस्पेक्टर या सप्लाई मजिस्ट्रेट की मदद लेकर हम लोगों की टीम  बड़े व्यापारियों के गोदाम पहुंच जाती थी ‌। माल की जमाखोरी पर हमारी टीम का लीडर पूंछताछ करता ,सम्बन्धित अधिकारी और मजिस्ट्रेट को सूचना देता और उनसे समुचित कार्यवाही की मांग करता।
धूम्रपान के लिए बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू उत्पादन करने वाली संस्थानों में जाते और निर्माता से कहते कि इस तरह के उत्पादों पर रोक लगायें और इसके सेवन से होने वाले कुप्रभाव के बारे में लोगों को जागरूक करें ;यही नहीं, माननीय जिलाधीश को भी इसकी शिकायत करते और ऐसी बस्तुओं के उचित मूल्य निर्धारण की बात करते। क्योंकि उन दिनों इन बस्तुओं पर एम आर पी नहीं लिखा होता था। हमारी टीम शराब की दुकानों से अवैध शराब, (जिसमें स्पिरिट की मात्रा अत्यधिक होती थी) को बाहर निकाल कर चौराहे पर ले जाते और आग के हवाले कर देते। आवश्यक खाद्य बस्तुओं का न्यूनतम मूल्य निर्धारण और उनके समुचित वितरण की बात "खाद्य नियंत्रण अधिकारी" से होती जिसमें कागज बनाने वाली मिलें भी शामिल होती थीं। उन दिनों दैनिक जागरण और दैनिक आज के समाचार पत्रों में फ्रंट पर इन सभी कार्यवाही की फोटो और समाचारों से पूरे कानपुर नगर में हलचल मची रहती थी।हम लोग जगह जगह पर साप्ताहिक समाचारपत्र और सत्साहित्य की पुस्तकें "YOUTH FOR DEMOCRACY"जिला न्यायालय , जे के मन्दिर के गेट पर और मुख्य चौराहे पर जनता में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से  बेचते। जिला न्यायालय और उसका स्टाफ हमारी विभिन्न टीमों के इस प्रकार की कार्यवाही से नाखुश थी । अतः धमकाने और परेशान करने के अनेक तरीके ढूंढती । न्यायालय के कैम्पस में इस तरह के क्रियाकलापों पर प्रतिबंध ( Contempt of Court) लगा दिया गया।और न्याय प्रक्रिया में बाधा करने  की धारा में गिरफ्तार कर लेने का आदेश दे दिया गया। अब तो न्यायालय में स्थित बार एसोसिएशन और लायर एसोसिएशन ने हमारी सभी टीम को समर्थन देना प्रारंभ कर दिया। उन लोगों ने कहा कि इजलास ( न्यायालय का कमरा, जहां जज अथवा मजिस्ट्रेट बैठते हैं) में आप लोग हमारे साथ ही अंदर चलेंगे ताकि गिरफ्तार करने की हालत में  हम जमानत लेकर छुड़वा लेंगे पर आप सभी इन सभी के दबाव में नहीं आयेंगे। अतः इस तरह के प्रतिबंध के बावजूद हमारी टीमें निर्बाध रूप से काम करती रही। पर एक दिन की घटना ने पूरे कोर्ट परिसर को हिला दिया। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक टीम जिसमें मैं भी था, जिला न्यायाधीश के न्यायालय में प्रवेश किया , वहां उपस्थित पेशकार और अर्दली ने एक पार्टी से घूस बतौर रकम जैसे ही लिया हमारी टीम के लीडर श्री शिवनारायण तिवारी ने उनके हाथ पकड़ लिए और नारेबाजी करने लगे, तभी दूसरे कमरे से न्यायालय के कर्मचारी आ गये और श्री तिवारी को घेर कर पिटाई कर दी।उसी समय वकीलों ने हम सभी सदस्यों को बाहर कर दिया। बार एसोसिएशनों ने इसका विरोध भी किया, दूसरे दिन  हमारे समर्थन में सभी वकीलों ने कोर्ट का बहिष्कार कर दिया। सभी मुकदमों की सुनवाई ठप हो गई। बात इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंच गई। अंत में हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस श्री अस्थाना जी को कानपुर कोर्ट आना पड़ा। हमारी टीम और वकीलों के साथ उनकी मीटिंग हुई।
अंत में उन्होंने जिला न्यायालय को निर्देश दिया कि कोर्ट परिसर में घूस लेने देने जैसी भ्रष्टाचार बढ़ाने वाली कोई क्रिया नहीं होनी चाहिए और इसे रोकने का ब्यापक प्रचार होना चाहिए। तब कोर्ट के सभी प्रकार के न्यायालयों में " घूस देना वो लेना दोनों ही दण्डनीय अपराध की श्रेणी में आते है। अतः सम्बन्धित व्यक्ति के शिकायत पर कारावास का प्रावधान है" इस आशय के बोर्ड लगाए गए।इन सबसे एक बात साफ निकल कर आई कि सच्चाई या भलाई के रास्ते पर चलने से लोगों का समर्थन अवश्य मिलता है , हालांकि यह रास्ता उतना ही कांटों भरा भी है। नेता जयप्रकाश नारायण के समग्र क्रांति के आह्वान पर हम सभी पटना सहित कई शहरों में गये। बाद में इस आंदोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था।

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रचनाएँ
वक्त की रेत पर
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इस पुस्तक में अधिकांश ऐसे वर्ग के परिवारों की कहानियों का संग्रह है जो समाज की आर्थिक संरचना की दृष्टि में लगभग पेंदे पर है , सामान्य तौर पर लोगों की नज़र इनकी समस्याओं पर न तो पड़ती है और न ही तह तक जाकर समझना चाहती ।देश के कानून के अनुसार किसी वर्ग में नहीं आता क्योंकि राजनैतिक पार्टियों का मतलब केवल वोट बैंक से है जो धर्म,जाति या क्षेत्रवादिता पर आधारित है जो उनके शक्ति देने में सहायक है। यह अछूते हैं क्योंकि इनकी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है।आरक्षण का मूल आर्थिक न होने के कारण इनसे कोई हमदर्दी भी नहीं है।इस अनछुए वर्ग के लोगों की मानसिकता भी ऐसी है जिसमें आत्मविश्वास या विल पावर न के बराबर दिखती है ये समस्याओं में ही जीते और उसी में मर जाते हैं। इनमें इतनी भी कला नहीं होती कि किसी के समक्ष कुछ कह सके।इस पुस्तक के कहानियों के माध्यम से लेखक समाज को ठेकेदारों को यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि देश का वास्तविक विकास इन अनछुए वर्ग को समस्याओं से निजात देने में निहित है। कुछ विचारोत्तेजक लेख भी समाहित हैं जो सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि हम सब ,चाहे जितना सबल हों,नियति का हाथ हमेशा ऊपर रहता है,आखिर होनी ही तो है जो हर मनुष्य के किस्मत के साथ जुड़ी होती है, होनी और किस्मत मिलकर मनुष्य के सोच( विचार) का निर्माण करते हैं,सोच में ही तो सर्वशक्तिमान हर प्राणी में कुछ कमियां और खूबियां छोड़ देता है।वही मनुष्य के चाहे अथवा अनचाहे मन की विवशता से भवितव्यता की ओर ठेल ( धकिया)कर ले जाता है।चाहे मूक रूप से धर्मयुद्ध का शंखनाद हो या होनी के आगे कर्ण की विवशता।
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