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फिल्मी दुनिया और असलियत का फर्क

12 जुलाई 2024

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फिल्मी दिमाग 

अक्सर हम अपनी निजी
जिंदगी को फिल्मी जिंदगी से मेल करके देखते है। खासकर वह लोग इसके ज्यादा शिकार
होते है। जिन लोगों को नॉलेज का अभाव होता है। 

 फिल्मों
में कुछ ऐसे इफ्ेक्ट, बैकग्राउड़ संगीत, ध्वनि, बेवजह की आवाजें जो अगर आप पहली बार सुनोगें
तो आपके सिर में दर्द ही होगा और कुछ नहीं। जैसे जैसे हम इनके प्रति नजदीकी को
बढ़ावा देते है 

 तो
ये हमारे सर चढ़कर बोलती है। इनका वास्तव में हमारी निजी जिंदगी से कोई तालमेल नहीं
होता है। हम रिश्ते नाते फिल्मी तर्ज पर बनाने लगें है। हमारे सारे कार्य कही न
कही आज के युग में फिल्मी हीरों से मेल खाते है। 

 कहीं
सड़क पर बाईक चला रहें है तो मन में विचार आया उस हीरों की तरह चलाउ बस यह ख्याल
आना था कि अचानक से कोई गाड़ी हमारी बगल से गयी और हमारे सारे ख्याली पुलाव धरे के
धरे रह जाते है।  

तो दोस्तों हम अपनी रियल
लाईफ को फिल्मी जीवन के सहारे नहीं जी सकते है जो हीरों होते है उनकी रियल जिंदगी
में भी इतने रंग नहंी होते है वास्तव में वह भी कही न कही किसी दुख से जूझ रहे
होते है।  

यह एक मनोरंजन परपस से
बनाई गई होती है। जिससे हमारा मन थोड़ी देर के लिए प्रसन्न हो जाए हम अपने गम को
थोड़ी देर के लिए भुला सके।  

अगर आप इसे अपनी निजी
जिंदगी से जोड़कर चलोगें तो एक पैर आगे नहीं बढ़ा पाओगे धड़ाम से नीचे गिर जाओगे।  

फिल्मी गाने और डॉयलाग 

हमारे जीवन में फिल्मी
डॉयलाग और फिल्मी गानों का बहुत ज्यादा असर होता है। यह भी केवल दोस्तों मनोरंजन
परपस से ही है इनका हमारे दैनिक जीवन और हमारी निजी जिंदगी से कोई लेना देना नहीं
है। 

 यह
बात आपको अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए। अब हम चलते है इनको बोलो पर हमारी हम सभी की
जिंदगी में कुछ ऐसे पल होते है जो कि हर किसी की जिंदगी में आते है। जैसे संघर्ष
करना।  

बेरोजगारी की समस्या इसके
कारण हमें तरह-तरह की यातनाएं सहनी पड़ती है। दुख हमारी सभी की जिंदगी में आता है। 

 प्यार
इसमें कोई दोहराए नहीं है कि ज्यादातर लोग धोखा ही खाते है तो इन्हीं ध्यान में
रखते हुए ऐसे संगीत ऐसी फिल्म को बनाया जाता है जिसे लोग देखे अपने से रिलेट कर
सकें। यही सबसे पहला काम होता है।  

अब फिल्म उद्योग इसी की
बुनियाद पर खड़ा है अगर हम इस तरह का कंन्टेट नहीं लायेगें तो देखेगा कौन। 

कहां से इनकी कमाई होगी।
अगर हम ये फिल्में देखना ही छोड़ दे कल्पना कीजिए कि अगर हम में से कोई एक भी व्यक्ति
फिल्म न देखें तो क्या होगा।  

ये सब रोड़ पर आ जायेगें।
तो दोस्तों ये केवल मनोरंजनपरक इसको केवल मनोरंजन तक ही सीमित रहने दें। आगें अपनी
नीजि जिंदगी में इसे भूल कर भी मत खीचों अन्यथा हमें दुख का सामना ही करना पड़ेगा।  

शादी ब्याह पर फिल्मी असर । 

एक उम्र के बाद सभी को
शादी करनी ही पड़ती है यह हमारी जीवन का सत्य है और वंश को चलाने के लिए यह जरूरी
पहलू है। हम जिस वातावरण में पले बड़े होते है वहां बिल्कुल फिल्मी माहौल होता है।  

अगर आपके माता-पिता आपके
लिए कोई अच्छा रिश्ता भी लाएगें तो आजकल उसको ठुकरा दिया जाता है। क्यों?  

क्यांेकि लड़की एक हीरोइन
जैसी खूबसूरत नहीं है, बाईक
नहीं चला सकती, आपके पीछे दीवानों की तरह नहीं फिर सकती,
तो बहुत सी बातें फिल्मी कहानी देखकर आती है  

पर मैं आपको बताता चलूं
जिन हीरोइन को देखकर आज का समाज मांग करता है। 

 नई
जनरेशन से ही हमारा नया समाज नई सोच बनती है और इस सोच में 99 प्रतिशत भागीदारी इन सीरियलस और फिल्मों की है। दोस्तों आप ही सोचकर देखो
क्या ऐसे जिंदगी चलेगी।  

धीरे-धीरे समय के साथ-साथ
हमारे बड़े हमारे माता-पिता भी इसी दौर से गुजरे हुए है और इन्हें भी यह लगने लगता
है कि यह सब गलत है। फिल्मे गलत नहीं है हमारा देखने का नजरिया गलत है। नजरिया
क्या है।  

यह भी आपको बताउगां।
दोस्तों कोई भी फिल्म हो शुरूआत में यह घोषणा लिखी होती है चेतावनी लिखी होती है
कि यह सब पात्र काल्पनिक है इसमें 

 दिखाये
गयी घटना काल्पनिक है इनका किसी निजी जीवन कोई लेना देना नहीं है यह केवल और केवल
मनोरंजन के अलावा कुछ नहीं है 

 देखो
और कूल रहों। पर इसे अपनी नीजी जिंदगी में मत आजमाओं हां एक दो बातें होगी जो कि
हमारी जिंदगी से मेल खाती होगी। क्योंकि यह कहानी हमारी निजी जिंदगी से ली होती है
पर ऐसा ही हमारी जिदगी में हम ऐसा ही कर सकें यह संभव नहीं है दोस्तों। 

अपनी पढ़ाई का सत्यानाश करना।  

हम बहुत सी फिल्मों मे
देखते है कि हीरों पढ़ता नहीं है और अचानक किसी सेठ के संपर्क में आकर उसके यहां
कार्य करना लगता है। उस पर विश्वास करके वह सेठ उसे अपनी संम्पति का मालिक बना
देता है  

यहां तक कि अपनी बेटी की
शादी भी उसी से कर देता है। यह सब ख्याली पुलाव है। दोस्तों रियल लाईफ में इतनी
जल्दी कोई विश्वास नहीं करता है 

 अपने
घर को तो छोड़ो एक दिन अगर आप वहां रह लिए ना अगले दिन आपको शक की निगाहों से देखा
जायेगा।  

रही बिजनेस की बात अगर
रियल लाईफ में मालिक दस रूपये की चीज भी किसी नौकर से मगाता है ना तो जहां से वह
लाया है वहां पर पहले फोन करके पूछता है कि वह यह चीज इतने की लेकर आया है या
नहीं।  

पूरी संपति देने की बात
बहुत दूर होती है। आजकल तो अपने सगे रिश्तेदार भी अपने पर विश्वास नहीं करते है।  

दोस्तो अपने जीवन की
सच्चाई से कभी मुह मत मोड़ो अपनी पढ़ाई हर नौजवान को करनी चाहिए हर व्यक्ति को पढ़ाई
करनी चाहिए क्योंकि यह वह मित्र है जो हमारे साथ हर सांस में खड़ा है हर क्षण हमारे
ंसाथ है। हर पल हमारे साथ है नींद में भी यही है।  

जागने पर भी यही है
क्योंकि कोई भी कार्य किसी ज्ञान के बिना अधूरा है अधूरा तो है ही उसे किया भी
नहीं जा सकता। तो हमे अपने जीवन मे ज्ञान प्राप्त करने का हर संभव प्रयास करना
चाहिए।  

फिल्मों के कारण रिश्तों मे दरार। 

आजकल किसी बच्चें को कोई
काम बता दो तो वह बड़ी ऊंची आवाज में जवाब देता है कि मेरे पास समय नहीं है दुकान
पर भेजते है तो भी माता-पिता की आवाज बच्चों के कानों के ऊपर से गुजर जाती है।  

आखिरकार फिल्म देख रहे
है। कोई ऐसे वैसी नहीं एक्शन मूवी बच्चें कहते है कि मम्मी मुझे परेशान मत करों मै
एक्शन मूवी देख रहा हूँ।  

अरें मम्मी तो तब याद
आएगी जब तुम इस फिल्म के खत्म होते ही खाना मागोगे।  

अगर मम्मी भी कहे कि इसी
फिल्म में अपने पेट भर लों। सारा दिन माता-पिता बच्चों के लिए मेहनत करेगंे। उनके
लिए दुख दर्द सहेंगंें और बच्चे एक्श्सन मूवी देख रहे है  

अरें भई जिस एलसीडी या
टीवी में आप मूवी देख रहे हो वह भी तो उनकी मेहनत का ही फल है। कि आज आप मूवी देख
रहे हो।  

फिर आपके गंदे भी एक माता
को धोने है आपके लिए स्कूल का टिफन भी तैयार करना है एक बाप को आपके स्कूल की फीस
भी भरनी है अगर आप एक वर्ष फैल भी हो गए तो उसका भार भी माता पिता ही सहेगें  

ये बातें हम पर लागू नहीं
होती है यह बच्चे कहते है आजकल के कि यह तो माता पिता का फर्ज है और उनको करना ही
है।  

चलों मान लेते है कि उनका
फर्ज है तो कल आप लोग भी माता-पिता की श्रेणी मे ंही आने वाले हो और इसी तरह की
बुनियाद आप लोग रख रहे हो आपको ही पेरशान करने वाली है। इसलिए बेटा बड़े लोगों ने
कहा कि जैसे बोओंगें वैसा ही काटोगें। तो दोस्तों ऐसा मत कीजिए।  

अपने माता-पिता को इन
फिल्मों के चक्कर में परेशान मत कीजिए जो माता पिता आपके एक समय का खाना ना खाने
पर पेरशान हो जाते है आपके सिर में दर्द क्या हुआ माता पिता परेशान हो जाते है।  

अरे ! मेरे बेटे को क्या
हो गया परेशान हो जाते है उनकी दुनिया उजड़ जाती है दोस्तों यह सब बातें तब याद आती
है जब हम एक पिता की श्रेणी में आ जाते है अपने माता-पिता को चाहे वह छोटा कार्य
हो या बड़ा करने से मना मत करना। 

 यह
आज प्रण करों कि इन फिल्मों के एक सीन से कही ज्यादा हमारें माता पिता का आदेश है
आज्ञा है। इसी में हमारी भलाई है कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को दुख में नहीं
देखना चाहते है 

 दोस्तों
इतना हमारें माता पिता हमारें साथ है इतना ही हम किसी से भी लड़ सकते है वो दिन याद
करों जब अगर वह हमारें साथ नहीं रहें तो हमें बहुत ज्यादा बहुत ही ज्यादा पछतावा
होगा और इसके सिवा हम कर भी क्या सकते है।  

दोस्तों इतना वह हमारें
साथ है तो उनको खुश रखना। उनको खुश रखोगे तो कभी जीवन में हारोंगे नहीं हार क्या
होती है आपको पता भी चलेगा माता पिता एक ऐसे वृक्ष की तरह होते है  

जो हर भीषण से भीषण गर्मी
को सहन कर लेते है हर सर्दी की मार को सह लेते है पर अपने बच्चों पर आंच नहीं आने
देते है हमारी जिंदगी के असली हीरों हमारें माता-पिता ही है इनको इन फिल्मों के
चक्कर में मत दुदकारों ।  

मेरी आप लोगों से विनती
है हाथ जोड़कर अपने माता-पिता का आज से ही आदर करना शुरू कर दों। तो मै समझूगां कि
मेरा लिखना सफल हो गया।  

फिल्मी फैशन ने तोड़ी गरीबी की कमर।  

आजकल हर कोई फिल्मी कपड़ों, फैशन, घड़ी,
बैल्ट, चाहें जो भी हमारा पंसन्ददीदा हीरों
कुछ भी पहन लें चाहें वह चलन में ना हों जैसे घड़ी का चलन आजकल खत्म सा हो गया है क्योंकि
उसकी जगह हमारें मोबाइल ने ले ली है।  

अगर फिल्मी हीरों ने घड़ी
पहन ली है और वह हमें आकर्षित करती है तो हम अपने माता-पिता से उसी की मांग कर
बैठते है। और यह सब बातें इस तरह सर चढ़कर बोलती है कि हमें किसी की बातें समझ भी
नहीं आती है। बस चाहिए तो चाहिए।  

चाहें हमारें मां-बाप दिन
में 50 रूपये
कमाएं या हजार रूपये कमाएं इससे हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। बस जिंद है तो जिंद
है। एक बच्चें का पिता सरकारी नौकरी करता है वह अपने बच्चें की हर ख्वाहिश को पूरा
करने में सक्षम है।  

वही अगर एक बिजनेस मैन का
लड़का है तो साथ के साथ मंगवा सकता है। वही अगर किसी रिक्शे वाले का लड़का है तो
थोड़ा सोचना पडेगा। वही अगर किसी दिहाड़ी मजदूरी करने वाले का लड़का है तो चीज को मने
भी की जा सकती है क्योंकि दोस्तों उसके बजट से बाहर है।  

कही अगर आप अपने पिता पर
प्रेशर करोगें तो वह जल्द बाजी में कही ज्यादा वजन उठाने के चक्कर में उसको आप खो
भी सकते हों। दोस्तो हमें सबसे पहले इतना ज्ञान होना चाहिए कि हमारे घर की हालत
क्या है? 

सड़क पर दौड़ते वाहनों में दिखती फिल्मी झलक। 

हम रोड़ पर बड़े आराम से चल
रहें होते है कि अचानक एक गाड़ी बहुत तेजी से हमारे पास से होकर गुजरती है और
मयूजिक भी बहुत ही लाउडली बजा रखा होता है अगर हम उसे आवाज भी लगायेगे तो उसे नहीं
सुनेगी। 

 क्योकि
वह तो पहले से ही किसी संगीत के धुन में मस्त है उसे यह लेना देना नहीं कि मैं सड़क
पर चल रहा हूँ उसके सर पर यह नशा होता है कि मेरे पास गाड़ी है मेरे पास पैसा है
पिताजी अच्छी किसी पोस्ट पर है  

अगर कुछ हो गया तो वह
छुड़ा लेगें। यह बातें हमारें दिमाग में चलती रहती है पर हम यह पूरी तरह से भूल
जाते है कि अगर कि भगवान न करें कि कुछ ऐसा हो जाए कि आपको देखकर डॉक्टर कहें कि
सॉरी अब कुछ नहीं हो सकता।  

तो अब मुझे बताओं वह
पोस्ट, पैसा,
रूतबा सब धरा का धरा रह जाएगा। तो दोस्तों ऐसा कार्य नहीं करना
चाहिए कि हम अपनी मस्ती में चूर सड़क पर बेपरवाह होकर चलें। हमें अपना और सामने से
आते हुए व्यक्ति को ध्यान में रखकर ही अपना वाहन चलाना चाहिए।  

भई जो व्यक्ति सामने से आ
रहा है वह भी किसी परिवार का हिस्सा है वह भी तो किसी का बाप, भाई, दोस्त,
पति है। तो दोस्तों इन सब आदतों का आज से ही बदलों और यह फिल्मी भूत
अपने ऊपर हावी न होने दों वो भी जब आप कोई यात्रा कर रहे हों या किसी सफर में चल
रहें हों।  

रिश्तों की डोर हो रही है हल्की। 

फिल्मी दौर ने ऐसा बेड़ा
गर्क किया हुआ ना कि पूछों मत। एक तो रिश्तों पहले से ही शक की बुनियाद पर धरें है
इनका कारण है जो सीरियल चल रहें है इनको देखकर औरतें बिल्कुल ऐसा ही अपनी सास बहु
के साथ करती है। 

 जब
उचित परिणाम नहीं मिलते है तो रिश्तों में दरार पड़ जाती है। और अब तो यह आलम हो
गया है कि एक साल के भीतर ही शादी के बाद मां-बाप का साथ छोड़ दिया जाता है कही
सासु मां मन मुताबिक नहीं मिलती तो कही बहु सास के मन मुताबिक नहीं होती है  

अरें भई कोई किसी के
मनमुताबिक कार्य करना पंसन्द करता है क्या। सबसे पहले तो आपको यह जानने की जरूरत
है कि हम इक्कटठे क्यों रह रहें है एक परिवार में क्यों रह रहे है। इसका अर्थ है
कि हम एक-दूसरे का साथ देना चाहते है एक-दूसरे के काम आना चाहते है सुख या दुख। 

 एक
दूसरे का सहारा बनना चाहते है इसलिए तो हम इतनी पीढ़ीयों से परिवार मे रह रहें है।
आजकल फिल्मों के देखकर इन सबके मायने बदलते जा रहे है रिश्तों की डोर पतली होती जा
रही है। और अब तो पतली होने के साथ-साथ टूटती भी जा रही है।  

   

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लेखनी का एक अलग ही स्वरूप बहुत सुंदर 👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏🙏🙏

18 जुलाई 2024

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