आया रक्षाबंधन परम पावनबहन भाई के स्नेह का प्रतीक हर्षित करता युगल मन भाई वो जो बहन का साथ न छोडे भाई वो जो बहन से मुख न मोड़े बहन वो जो करे हर कर्तव्य वहन&
अनोखा भी है, निराला भी है, तकरार भी है तो प्रेम भी है, बचपन की यादों का पिटारा है, भाई-बहन का यह प्यारा रिश्ता है।
परवाह न कर, तमाशे तों होते ही रहेंगे ताउम्रतू बस यें ख्याल रख, कि किरदार बेदाग रहें
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा।आओ प्यारे वीरों आओ,देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,एक साथ सब मिलकर गाओ,प्यारा भारत देश हमारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा।तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा।
नन्हे - नन्हे प्यारे - प्यारे, गुलशन को महकाने वालेसितारे जमीन पर लाने वाले, हम बच्चे है हिंदुस्तान के। नए जमाने के दिलवाले, तूफ़ानो से ना डरने वालीकहलाते हैं हिम्मत वाले, हम ब
रक्षासूत्र बांधना मात्र अंधानुकरण नहीं है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों मे उल्लेख है ।वैज्ञानिक कारण ******अधिकतर अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती
येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः।तेन त्वाम् प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचलः ।।श्लोक का अर्थ इस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था उसी रक्षासूत्र के बंधन से मैं तु
ये लेखमाला 3 भाग की है "प्यार के दो तार से संसार बांधा है ।बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है।"ये "रेशम की डोरी" फिल्म ही नही वरन् आदि काल से चली आ रही दो स्नेह मान के धागे से जुड़ा सम्पूर्ण इ
अगर मैं उन दरिंदों की दरिंदगी की शिकार ना होती । आज मैं भी रक्षाबंधन की खुशियां मना रही होती। बांधती राखी अपने भईया के बाजुओं में रक्षा पाने के लिए।लेकिन आज पछतावा कर रहा होगा मेरा भाई रक्षा
ज़हरीली हो गई है बाहर की हवाएं,माँ मुझे फिर से अपने आंचल में छुपा लो
विषय :- फिर एक निर्भया आंखें नम हो जाती है , दरिंदों के अंजामों से। वासनाएं क्यों फूट रही , दरिंदगी के मुकामों से। सपनों की दुनिया में जो, पंख उगाने निकली थी । माता-पिता के सपनों की , एक बगि
भाई बहनो में प्यार उमड़ आया छोटी सी डोरी भी जग काम आया अटूट रिश्ता त्योहार रक्षाबंधन का। आया है त्योहार रक्षाबंधन का। कितनी भी दूरी रहे बहन अब तक नही भुला भाई की कलाई पर राखी बाँधना प्यार
रानी कर्णावती ने जब राखी भेजी थी, दिल में उमड़ी थी चिंता की लहर, मेवाड़ की आन-बान की खातिर, भाई हुमायूं को पुकारा था वो सफर। दुश्मनों की बर्बरता से रक्षा हो, मेवाड़ का मान ना कभी झुके