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गरीबी

12 जून 2022

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गरीबी)

 .....गरीबी दर-दर भटकती रही।
      कभी यहाँ, कभी वहाँ,
.....उम्मीदों की ख्वाहिश में, बाहर निकलने की जिद में, खुद से लड़ती रही।
......गरीबी दर-दर भटकती रही।
कही आपनो की ठोकरे खाकर, कही दुसरो के ताने सुनकर, रोज संघर्ष करती रही, बाहर निकलने की जिद करती रही।
... गरीबी दर-दर भटकती रही।
हर अमीर दरवाजे पर रोते हुये हाथ फैलाती रही, कही उसकी मदद का हाथ थामने वाला मिल जाये, पर ना मिला कोई, फिर भी मुस्कुराते हुये, आगे बढ़ने का प्रयत्न करती रही,
....गरीबी दर-दर भटकती रही।
उम्मीदों का दामन थामे आगे बढ़ती रही,
 .....गरीबी दर-दर भटकती रही।
     कभी यहाँ, कभी वहाँ,
....उम्मीदों की ख्वाहिश में, बाहर निकलने की जिद 
में, खुद से लड़ती रही।
....गरीबी दर-दर भटकती रही।
......…......................रामबाबु सोलंकी.....

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बहुत सटीक लिखा है आपने, लेकिन थोड़ा अलग अलग पक्तियों में लिखिए

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हा जी मार्गदर्शन देने के लिये धन्यवाद

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