घुल रही है जहर आज
हवाओं में,
कांटे ही कांटे
हैं हर तरफ राहों में।
मुल्क तो आज़ाद है, मगर अफसोस,
महफूज नहीं हम
अपने ही मकानों में।
घिर गई खतरों में माँ-बहनों की
इज्ज़त यहाँ,
सवालें ही सावलें
हैं आज देखो इनके आहों में।
औरत की कोख को
मैला करने वालों,
बेटा न देना, कहेंगी खुदा से माँ दुआओं में।
खुद को बदलो, एक दिन वक़्त भी बादल जाएगा,
कुछ और नहीं दिल
बहलता है सिर्फ बातों में।
भलों की भलाई, इन्सानों की इंसानियत ऐ “राज”
ढूँढेंगे कल
इन्हें हम दादी-नानी की कहानियों में।