बेबस है, लाचार है, आज आदमी, आदमी से
डरा-डरा सा रहताहै आदमी, आदमी से,क्या रिश्तानिभाएगा आदमी, आदमी से। उसके दिल में कुछहै, जुबां पे कुछ और,जानता सब है फिरभी अंजान है आदमी, आदमी से। कौन रोके ये अपहरण, हत्या, लूट, बलत्कार,बेबस है, लाचार है, आज आदमी, आदमी से। समाज को बदलने कीबातें यहाँ रोज होती है,करता है बस बातेंही, आदमी, आदमी से। हाथों