दर्दे दिल तुम
छूपाया करो,
अश्क अपने यूँ न
जाया करो।
मुश्किल है रुठों
को मनाना यहाँ,
वक़्त है रूठा तो
उसे मनाया करो।
मिलेगी सेज फूलों
की तुम्हें मगर,
पहले तेज़ धूप में
बदन जलाया करो।
यहाँ पल में बदलते
हैं रिश्ते ऐ
“राज”
सोच-समझ कर दिल को
लगाया करो।
14 नवम्बर 2015
दर्दे दिल तुम
छूपाया करो,
अश्क अपने यूँ न
जाया करो।
मुश्किल है रुठों
को मनाना यहाँ,
वक़्त है रूठा तो
उसे मनाया करो।
मिलेगी सेज फूलों
की तुम्हें मगर,
पहले तेज़ धूप में
बदन जलाया करो।
यहाँ पल में बदलते
हैं रिश्ते ऐ
“राज”
सोच-समझ कर दिल को
लगाया करो।
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जो दिल को बहला जाती थी वो मीठी तकरार कहाँ है, कोई हमसे पूछ रहा है पहले जैसा प्यार कहाँ है......... वो दिन कब के बीत चुके जब "ना" के पीछे "हाँ" होती थी, इकरारों की खुशबू लाये ऐसा इंकार कहाँ है......D