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गोली नेकी की

20 अक्टूबर 2019

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"गोली नेकी वाली (व्यंग्य)



"ये दौरे सियासत भी क्या दौरे सियासत है

चुप हूँ तो नदामत है ,बोलूँ तो बगावत है"

आम वोटर चुनाव के वक्त ऐसे ही सोचता है कि वो क्या बोले ,सब कुछ तो बोल दिया है नेताजी ने।नेताजी जवान हैं ,स्टाइलिश कपड़े पहनते हैं ,कभी मीडिया के लाडले हुआ करते थे ,सबको कान के नीचे बजाने की घुड़की दिया करते थे। मगर समय ने ऐसा चक्र ऐसा घुमाया कि आजकल खुद बेचारे कानून की चौखट पर हैं ।कानून से भिड़ना इनका प्रिय शगल हुआ करता था कभी ,खुद कम भिड़ते थे लोगों को भिड़वाते ज्यादा थे लेकिन हवा बदल गयी ।

उन्होंने इस बार आपने लिये जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका चुनी है और उस पर तुर्र्रा ये कि ये उनका नया ट्रेंडसेटर आइडिया होगा ,क्या कहने ?

अब कल को देश में यही जिम्मेदार परिपाटी चल जाये तो राजनीति से कड़वाहट खत्म हो जाये ,लोग सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए लड़ें ना कि सत्ता हासिल करने के लिये ।पहले से ये तय हो जाये कि फलां तो सत्ता हासिल करने के लिए चुनाव लड़ रहा है जबकि फलां तो सिर्फ सचेत करने और सत्ता पक्ष को उसकी जिम्मेदारी का एहसास दिलाये रखने के लिए विपक्ष में जाना चाहता है । अब ये नये किस्म का सत्याग्रह होगा जिसमें जीवन के तमाम क्षेत्र में रचनात्मक विरोध शुरू कर देंगे ।गोया कोई भी इंटेरनेशनल टूर्नामेंट ना जितवा जाने पर नैतिकता के आधार पर रवि शास्त्री टीम इंडिया के कोच का पद त्याग देंगे क्योंकि सौरभ गांगुली क्रिकेट के सर्वोच्च प्रशासक बन गए हैं। गांगुली के ही आने से महेंद्र सिंह धोनी अब लोगों को टीम से अंदर -बाहर करवाने का खेल विरोध स्वरूप छोड़ देंगे और खुद भी वो मैदान के ही बाहर रिटायर होंगे ,जैसे कि उन्होंने गम्भीर ,सहवाग,युवराज जैसे खिलाडियों को मैदान के बाहर बाहर ही रिटायर करवा दिया ,मैदान पर खेलते हुए रिटायर नहीं होने दिया । रचनात्मक विरोध से ऐसा सदाचार फैलेगा कि बिग बास के घर में लोग साथ में शयन की बाध्यता को त्यागकर धर्म,अध्यात्म पर चर्चा करेंगे । सिंघम सिनेमा के विलेन प्रकाशराज कदाचित किसी दिन दिल्ली की रामलीला में अभिनय करते नजर आएं भले ही रावण का ही ,तब शायद उन्हें डर लगना बन्द हो जाए क्योंकि वो खुद को अल्पसंख्यक बताते हैं और कहते हैं कि पुष्पक विमान टाइप हेलीकॉप्टर से उतरते राम,लक्ष्मण ,सीता के किरदारों को देखकर उनके जैसे माइनॉरिटी डर जाते हैं। किसी ने उन्हें डर लगने पर हनुमान चालीसा पढ़ने की सलाह दी है ,क्योंकि सदियों से भारतवासियों का डर हनुमान चालीसा पढ़ने से दूर होता रहा है ।रचनात्मक विरोध का अगला कदम ये होगा कि रामायण विला में रहने वाली शत्रुघ्न पुत्री सोनाक्षी सिन्हा सबको खामोश बोल कर सुन्दर काण्ड का पाठ करेंगी ।ये मुहिम यहीं नहीं रुकेगी प्रणव मुखर्जी को देश का प्रधानमंत्री बताने वाली आलिया भट्ट टीवी चैंनलों पर बतौर संविधान विशेषज्ञ बुलायीं जाएंगी और लोगों को संविधान के उपबंधों का स्पष्ट करेंगी।ये सदाचार जारी रहेगा रितेश देशमुख एडल्ट कॉमेडी से युवाओं को दूर रहने के लिये जागृत करेंगे और थियटर करके लोगों को फिल्मों में एक्टिंग कैरियर बनाने की गाइडेंस देंगे ।ये कारवां चलता रहेगा जिसमें सनी लियोनी विरोध स्वरूप "बेबी ढोल "के गाने पर डांस करने के बजाय एकादशी के व्रत के बखान बताएंगी।ये रचनात्मक विरोध यूँ रंग लायेगा कि ढिंचक पूजा अब यूट्यूब पर गाने अपलोड करने के बजाय स्टेनोग्राफी का कोर्स करेंगी और लड़कियों को कंप्यूटर पर टाइपिंग स्पीड बढ़ाने का लाइव डेमो देंगी।

रचनात्मक विरोध का ये स्वर्णयुग हिंदी साहित्य में भी दस्तक देगा तब फेमिनिस्ट पुरुषों को पानी पी पीकर कोसने के बजाय स्त्रियों को अपनी कार्यकुशलता और दक्षता बढ़ाने पर गाइडेंस देंगी । जिस तरह से हाल में कुछ लेखिकाओं पर कुछ लोगों ने अश्लील और भद्दे कमेंट किये हैं इसके बजाय खार खाये लेखक पुनः लेखिकाओं को बहन जी ,दीदी जैसे शब्दों से संबोधित करना शुरू कर देंगे ।सदाचार का ये कारवां प्रकाशकों की दहलीज तक पहुंचेगा वो लेखक के खर्चे पर पुस्तक छापने और फिर उसे खरीदने पर बाध्य करने के बजाय उसकी पुस्तक निशुल्क छापेंगे उसे रॉयल्टी देंगे और इष्ट मित्रों में बांटने के लिए पर्याप्त प्रतियां भी देंगे ।तब कोई सिर्फ इस वजह से बड़ा साहित्यकार नहीं माना जाएगा कि वो कितनी किताबें खरीदवा या बिकवा सकता है । नेकी की ये गोलियां वामपंथी साहित्यकार भी खा लेंगे तो बाबर और औरंगज़ेब का बखान बन्द करके मध्यकाल के कुछ अन्य महान नेताओं का जिक्र करेंगे। यही नहीं सावरकर और गोवलकर जैसे लोगों का स्वन्त्रता संग्राम पर क्या योगदान है ,इस पर इतिहास का पुनर्लेखन करेंगे ।ये रचनात्मक विरोध पाकिस्तान तक पहुँचेगा जहाँ की नेशनल असेंबली में महात्मा गांधी की मूर्ति लगायी जायेगी।पाकिस्तान में अब मूतालिया ए पाकिस्तान और टू नेशन थ्योरी के बजाय साझा इतिहास पढ़ाया जायेगा जो 1947 के पहले का होगा जिसमें स्कूलों में लियाकत अली नहीं बल्कि भगत सिंह पढ़ाये जाएंगे ।

नेकी की ये गोलियां शिक्षा संस्थानों तक भी जाएंगे जहां कन्हैया कुमार जैसे लोग देश द्रोह का मुकदमा लेकर नहीं निकलेंगे ,जहां टुकड़े टुकड़े गैंग नहीं बल्कि राष्ट्र सेवा दल जैसी योजनाएं लेकर निकलेंगे इस देश के युवा। मैं ये सब ख्वाब देख ही रहा था कि

"भारत माता की जय "के नारों से मेरी आँख खुल गयी।कुछ बच्चों ने प्रभात फेरी निकाली थी ,,उनका हुजूम देखा तभी किसी ने मुझसे कहा "जय श्री राम "।

मैं सोचने लगा कि ये गोली नेकी वाली कहाँ मिलती है लेकर सबसे पहले मैं खाता और लोगों में बांटता।

उस गोली को याद करके एक शेर याद आया

"ये नूरे खुदायी है या कोई करिश्मा

वल्लाह कोई लूट ना ले मासूमियत तुम्हारी "

ये गोली नेकी वाली कहां मिलती है ,आपको मालूम है क्या ,,,,?☺️,,,,समाप्त ,,,कृते ,,दिलीप कुमार

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मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

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24 नवम्बर 2019
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अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

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ये कैसे हुआ

30 नवम्बर 2019
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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

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8 दिसम्बर 2019
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पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

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14 दिसम्बर 2019
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"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद

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21 दिसम्बर 2019
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"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

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डर दा मामला है

29 दिसम्बर 2019
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डर दा मामला है (व्यंग्य)"सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है --हरिशंकर परसाई"।फिल्मों की "द फैक्ट्री "चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने

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5 जनवरी 2020
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मेरा वो मतलब नहीं था

11 जनवरी 2020
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"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

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कागज़ नहीं दिखाएंगे

19 जनवरी 2020
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"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

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26 जनवरी 2020
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"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

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10 फरवरी 2020
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अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

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वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

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21 मार्च 2020
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"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे

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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

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