पानी रे पानी (व्यंग्य)
"कोस कोस पर बानी बदले
चार कोस पर पानी"
बानी यानी बोली -भाषा तो हमारे यहाँ बदल ही जाती है। हिंदुस्तानी आदमी अपनी पूरी जिंदगी बोली सीखने में ही लगा देता है फिर भी उसे ये बात खटकती ही रहती है कि काश मुझे ये जुबान भी आती ।अंग्रेजी का स्थायी दुःख तो है ही ,प्रान्तीय भाषा सीख लेने से पराये प्रान्त में रोजी रोटी कमा रहे लोगों पर हमले की आशंका कम रहती है विवाद की स्थिति में।सो बानी की ललकार और "सन ऑफ़ साइल "के बाद पानी का नंबर था ।
अप्रैल से ही टीवी चैनलों ने सूखे और भूजल के स्तर को लेकर इतनी आर्तनाद की कि इंद्र का सिंहासन डोल गया ।वो कुछ समझ पाते इससे पहले चैनल चलाने वालों ने रिपोर्टरों को नोटिस दे दिया कि कब तक सूखे की खबरें दिखाओगे ,कुछ वैरायटी लाओ वरना डिसमिस कर दिए जाओगे ।यहाँ तक कि एक लेडी मिनिस्टर ने तो सूखे के साथ अपनी सेल्फी भी अपलोड की थी फेसबुक पर पहले ।जिनकी नौकरी पर खतरा हुआ उन्होंने बहुत पूजा -अर्चना की ,बहुत से टोटके भी किये जैसे मेढक -मेढकी का विवाह आदि ।इंद्र देव पसीझ उठे।उन्होंने अपने अपने सहयोगियों को पानी देने का आदेश दिया लेकिन जिस तरह हमारे देश में पांच मंजिल की परमीशन मिलने पर आठ मंजिल की इमारत बनते बनते बन जाती है उसी तरह पानी भी निश्चित मात्रा में आते आते ज्यादा आ गया ।ना जाने क्यों इस बार इंद्र देवता इतने कुपित हुए कि चारों तरफ पानी पानी कर दिया ।शहरों मेंं बाढ़ आ गयी ।वी आई पी मोहल्ले डूब गये।ये पानी भी कम्बख्त अजीब है प्रोटोकॉल नहीं समझता ,कहीं भी घुस गया ,वो भी बिना अपॉइंटमेंट और बिना परमिशन।वैसे पानी पूरे साल उस वीआईपी इलाके में प्रोटोकॉल से ही गया है कभी बन्द बोतलों में तो कभी आरओ मशीन के जरिए बूंद बूंद टपका है लेकिन इस बार बेधड़क ऐसे घुस गया कि लोग हैरान हैं ।अव्वल तो पानी को उधर घुसना ही नहीं था उसकी मजाल कैसे हुई ।पानी को दूर दराज इलाके में फूस ,कच्चे मकानों में जाना चाहिये था वो बेचारे हाथ जोड़कर अपने सपनों और अपनों को गंवाते और बिलख बिलख रोते, मगर इस बार पानी ने राजधानियों की सैर शुरू कर दी ।जहाँ पानी का जलस्तर टीवी की खबर और एडवेंचर की लाइव स्ट्रीमिंग का अवसर देती थी ।अमीरों,अघाये लोगों को पूड़ी सब्ज़ी और पुराने कपड़े बांटने का अवसर देती थी जिससे उनके "सोशल काज " पर उनकी स्टेटस बढ़ जाया करती थी ।मगर इस बार तो कुदरत ने अजब गजब कर दिया ,सबको उबारने का दावा करने वाले खुद ही डूबते डूबते बचे ।सोशल मीडिया में लोग चुटकी ले रहे हैं कि जिस तरह वीआईपी लोग एक बार बंग्लो में जाकर वहाँ से निकलना भूल जाते हैं उसी तरह पानी भी उन बंगलों में घुसकर निकलना भूल गया,शायद मकानों ने पानी से कह दिया हो कि तुम भी मकीनों की तरह यहीं रह जाओ ।बस पानी वहीं रुक गया अब देखिये क्या क्या रुक गया ।बाढ़ को तब तक विपदा नहीं माना जायेगा जब तक वो नेशनल डेली टाइप के अखबारों और नेशनल लेवल के टीवी चैंनलों के दफ्तरों तक दस्तक ना दे ।वैसे किसी को याद है क्या कि एक बाढ़ पीड़ित राजधानी के नेताजी कुछ समय पहले विदेश गये थे सीवेज और ड्रेनेज की समस्या का अध्ययन करने ,अब उनकी विद्या के प्रयोग का ये बिलकुल सही समय है ,जनता के सेवक जनता की चीत्कार सुनें , वरना जनता तो खुद को रामभरोसे किये बैठी है
"इशरत ये कतरा है दरिया में फना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना "।
वैसे सिर्फ नेता और प्रशासन ही नहीं हैं बहुतों ने ट्वीट करके अपनी सम्वेदना जाहिर की है ।ट्वीट इतने हुए कि पानी कम होना शुरू हो गया ।कुछ लोगों को ट्वीट करना बहुत सतही लगा ,वो बाढ़ के इस समर का जायजा लेने खुद निकल पड़े ।
"पिक्चर सेज इट आल " सो लगे हाथ पानी में सेल्फी और फोटो शूट भी करा डाला ।लोगों ने नुक्ताचीनी की तो दलील ये सामने आयी कि ये तो प्रशासन को जगाने ,आगाह करने के लिये किया गया था ।हमारे बड़े बुजुर्ग ठीक ही कह गए हैं कि हर विपत्ति में एक अवसर छिपा होता है ।इस पर एक स्वयम्भू संविधान विशेषज्ञ महिला ने कल बताया है कि ये कहाँ का कानून है कि बाढ़ में फोटो नहीं खींचवाई जा सकती है । एक लेडी ने तो यहाँ तक कहा है कि "
जब महाराष्ट्र की लेडी सूखे की सेल्फी ले सकती है तो बिहार की लेडी बाढ़ की सेल्फी क्यों नहीं ले सकती "
कहीं पानी नहीं ,कहीं पानी ही पानी ।मैं कुछ सोच रहा हूँ कि बाढ़ पीड़ित लोगों की मदद कैसे की जाए ,कहीं दूर रेडियो से आवाज़ आ रही है
"पानी रे पानी तेरा रंग कैसा "ये सुनकर मेरी भी आँख गीली हो रही है 😢।
समाप्त,,,,कृते,,, दिलीप कुमार