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कौआ कान ले गया

14 दिसम्बर 2019

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"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)

"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदन

मेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,

गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है

जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"


इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद दिलाने की कवायद शुरू कर दी।नागरिकता संशोधन बिल संसद में पास हुआ तो देश में बहुतों ने इसे अपने आपने हिसाब से लेना शुरू कर दिया ।वैसे तो इस संशोधन बिल का भारत के नागरिकों से कोई लेना -देना नहीं है ,अलबत्ता कुछ नए लोगों को नागरिकता देने की कवायद है मगर हमारे देश में कौआ कान ले गया की बात यूँ ही नहीं कही जाती है कि किसी ने कहा कौआ कान ले गया तो लोग कौए के पीछे पत्थर लेकर दौड़ पड़ेंगे ना कि पहले एक बार कान की तस्दीक कर लें और कॉमन सेन्स का प्रयोग करें कि कान ना तो तो ले जाए जा सकते हैं और ना ही खोले जा सकते हैं ।कान हमेशा खुले ही रहते हैं और कानों में तेल डालने से सुनायी पड़ना बंद हो जाता है भले ही वो चीखें बरसों से सताए ,बेबसी का जीवन बिता रहे अपने ही बन्धु बांधवों की है ।अब ये तो समय ही बताएगा कि इन चीखों को इनके हामी रहे लोगों के कानों से अंतरात्मा तक पहुंचने के लिये जो तेल इस्तेमाल हुआ है वो टके के मोल खरीदा गया है या रूपिया में ,वैसे सुना है बामियान से जो पिस्ता ,बादाम आता है उसे बहुत वर्षों तक खाते रहने से अंतरात्मा की आवाज़ कुछ मानुषों को सुनायी पड़नी बन्द हो जाती है। बड़ी सुरक्षा के घेरे में पिस्ता-बादाम खाते रहे लोग कहते हैं अवाम से कि सुनो,सुनते रहो, कान खुले रखो ,लेकिन बोलते रहने दो हमें।अवाम ने पूछा -माजरा क्या है ,जवाब मिला -खतरा है ।

अवाम ने पूछा -कैसा खतरा,किससे खतरा ?

जवाब मिला "प्रोटेस्ट करो, बाकी बातें हम बाद में बताएंगे।अवाम का एक हिस्सा जो उनसे प्रभावित है ,प्रोटेस्ट करने निकल पड़ा और कृतज्ञ भी है ।क्या कहने-


"वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं,

सुनो तो सीने की धड़कन रवाब हो जाये"

ऐसा नहीं है कि इस सीएबी बिल के पास होने से सिर्फ राजनैतिक लोगों का लेना देना है ,बल्कि उन लोगों का भी काफी लेना देना है जिन्होंने इसकी अपनी अपनी परिभाषाएं गढ़ ली हैं।हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इसको लेकर तरह तरह की क्यासें लगायी जा रही हैं।करन जौहर जो धर्मा प्रोडूक्शन्स नाम की कंपंनी चलाते हैं लेकिन कभी भी कोई धार्मिक फिल्म नहीं बनायी और वो बेहद डेमोक्रेटिक इंसान माने जाते हैं ,उन्होंने कहा है कि ,कंगना रनौत को फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म वाला बयान वापस लेना होगा ,क्योंकि बपौती की तर्ज पर चलने वाली फिल्म इंडस्ट्री में कंगना घुसपैठिया हैं ,सिर्फ प्रतिभा नहीं ,बाप दादा का यहां का होना भी एक जरूरी शर्त है।आलिया भट्ट की ख़ुशी का कोई पारावार नहीं है उनका लॉजिक है दीपिका पादुकोण को लेडी सुपरस्टार की कुर्सी खाली करके बंगलौर में बैडमिंटन खेलना चाहिये ,क्योंकि वो भी फिल्मोद्योग में घुसपैठिया मानी जाएँगी।वरुण धवन ने अपनी सभी ना चलने वाली फिल्मों का जिम्म्मेदार आयुष्मान खुराना को माना है और दलील ये भी है कि आयुष्मान जैसे बेहद साधारण घरों के लड़के अभिनय में घुसपैठ ना करते तो कुछ फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड उनको भी मिलते।तुषार कपूर ने कहा है कि अरशद वारसी जैसे लोगों की वजह से वो बरसों से मूक अभिनेता बने हुए हैं ,उन्होंने अपनी पारिवारिक मित्र स्मृति ईरानी से पूछने की योजना बनायी है कि क्या इस बिल में ऐसा कोई प्रावधान है कि वो रोहित शेट्टी को गोलमाल सीरीज में श्रेयस तलपडे को कास्ट करने से रुकवा सकें और खुद उस रोल के लिये अप्लाई करें।हद तो तब हो गयी जब आमिर और सलमान खान ने शाहरुख़ खान को साफ़ कह दिया कि वे फ़िल्मोद्योग में किसी के भाई भतीजे नहीं हैं इसलिये सुपरस्टार की अपनी बादशाहत छोड़ें और दिल्ली के दरियागंज में जाकर अपना कॉफी स्टाल वाला पुराना काम देखें।इधर विश्वसनीय ब्रांड के ब्रांड एम्बेसडर माने जाने वाले अमिताभ बच्चन ने सरकार से अपील की है कि चाहे शरणार्थियों के लिये घर बनाना हो या घुसपैठियों के लिये डिटेंशन सेंटर ,सरिया और सीमेंट उसी ब्रांड का खरीदा जाये जिसका विज्ञापन वो करते हैं।उनके सरिया और सीमेंट भी किसी जाति, या धर्म के नहीं हैं जैसे कि वो खुद दावा करते रहे हैं।

इस नागरिकता बिल ने कुछ लोगों की सोच का नजरिया भी बदल दिया है ।वैसे तो भारत के इतिहास में 2014 का वर्ष कुछ लोगों के लिये विरोध का कट ऑफ डेट बना हुआ है लेकिन बिल में 2014 के कट ऑफ से कुछ लोग बड़े आशान्वित और उत्साहित हैं।राजधानी मेंआंदोलनरत कुछ प्रौढ़ युवाओं ने पूछा है कि जिस होस्टल में वे 2014 से पूर्व रह रहे थे क्या उनको उस कमरे का स्थायी नागरिक मान लिया जाएगा या नहीं ,उन्हें उम्मीद है कि उनको वहां सदा सदा रहने के लिये अनुमति मिल जायेगी। शैक्षिक संस्थानों के कुछ अपेक्षाकृत नए घुसपैठियों ने पूछा है कि कैंपस में जो डिटेंशन सेंटर बनेंगे उनमें एयर कंडीशनर होंगे या नहीं,आइ फोन की चार्जिंग और फ्री वाइ फाई होगा या नहीं और सबसे खास बात उनके डफली प्रोटेस्ट को मीडिया कवरेज मिलेगा या नहीं ,सबसे बड़ी चिंता की बात तो यही है ।इधर साहित्य में भी तमाम लोगों ने ऐसा माना है कि अब हिंदी विभाग में सभी नियुक्तियों पर पहला हक परिवार वालों का होगा ,सीधी और खुली भर्ती से नियुक्त हुए लोगों को कुछ लोग मन ही मन घुसपैठिया मान चुके हैं और हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद को जन्म सिद्ध अधिकार ,क्योंकि उनके परिवार के लोग पहले से ही इस विभाग में नियुक्त थे सो असली दावेदार वही हैं,प्रतिभा वगैरह बाद में आती है,

किसी ने उन्हें याद दिलाने की कोशिश की है ,


"अक्ल को तंकीद से फुर्सत नहीं,

इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख"

इस सीएबी बिल के आने से क्रिकेट जगत में भी अजीब अजीब कयासें हैं स्टुअर्ट बिन्नी के हामी सोच रहे हैं कि क्या शिवम दुबे और दीपक चाहर को इस बिल से प्रभावित करके उनको टीम में लाया जा सकता है या नहीं ,रोहन गावस्कर के शुभचिंतकों के मन में टीस होगी कि उनके पिता भारतीय क्रिकेट के चेयरमैन रह चुके हैं तो इस बिल के परिणामों से क्या वो चयनकर्ता क्यों नहीं बन सकते ,रवि शास्त्री ने भी चैन की साँस ली कि अब वो दो हजार अठाइस के वर्ल्ड कप तक जुड़े रह सकते हैं इस बिल की मनमानी व्याख्या करके ,क्योंकि वो सबसे पुरातन हैं।भले ही उनको बनाये रखने के लिये क्रिकेट प्रशंसक जैसा कोई पद सृजित कर दिया जाये वो भी मोटी तनख्वाह पर।

इन सबकी धींगामुशती से आजिज होकर और कैब कैब सुनकर एक प्रौढ़ लड़का जो ढाई हजार पांच सौ रुपये गिनकर बैठा ही था उसने अपनी माँ से हैरानी में पूछा

"मम्मी कैब वालों के लिये बिल आया तो ऑटो वालों को क्यों छोड़ दिया,ये तो बहुत गलत बात है ना "

उनके आस पास खड़े सिपहसालारों ने अपने कानों पर हाथ फिरा कर तस्दीक की है कि उनके कान सलामत हैं या सचमुच कौआ कान ले गया ।😊

समाप्त,,

कृते ,,दिलीप कुमार ,



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मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

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तो क्यों धन संचय

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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

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24 नवम्बर 2019
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अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

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30 नवम्बर 2019
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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

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पापा नहीं मानेंगे

8 दिसम्बर 2019
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पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

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कौआ कान ले गया

14 दिसम्बर 2019
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"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद

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21 दिसम्बर 2019
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"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

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डर दा मामला है

29 दिसम्बर 2019
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डर दा मामला है (व्यंग्य)"सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है --हरिशंकर परसाई"।फिल्मों की "द फैक्ट्री "चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने

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लोग सड़क पर

5 जनवरी 2020
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"लोग सड़क पर " ( व्यंग्य)"नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूबबड़े बड़े बही जात हैं दूब खूब की खूब "श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर कर सिख श्रद्धालुओं पर पत्थर बाज़ी की गयी और एक कमज़र्फ ने धमकी दी कि वो ये करेगा,

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मेरा वो मतलब नहीं था

11 जनवरी 2020
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"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

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कागज़ नहीं दिखाएंगे

19 जनवरी 2020
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"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

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26 जनवरी 2020
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"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

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अंकल कम्युनलिज़्म

10 फरवरी 2020
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अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

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22 फरवरी 2020
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ब्लैक स्वान इवेंट (व्यंग्य)"तुलसी बुरा ना मानिएजौ गंवार कहि जाय जैसे घर का नरदहाभला बुरा बहि जाय "फ़िलहाल देश की आम सहनशील जनता आजकल एक दूसरे को समझाते हुये यही कहती है कि जो बहुत बोल रहे हैं ,बोलते ही जा रहे हैं ,लगातार बोलते रहने से उन्हें ये इल्हाम हो रहा है कि जब सुनें

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कर्फ्यू,(लघुकथा)शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह

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3 मार्च 2020
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3- नीचे का खुदादोनों सिपाहियों की ड्यूटी थी ,वो दोनों स्नाइपर थे और वो दोनों दुश्मनों के निशाने पर भी थे ।आबिद और इकबाल।वैसे इकबाल हिन्दू था और नाम था इकबाल सिंह ,जबकि आबिद का नाम आबिद पटेल था ।इकबाल को सब इकबाल कहकर ही बुलाते थे ताकि लोगों को लगे के वो मुसलमान है क्योंकि वो शक्ल सूरत और रव

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वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

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"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

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मेहँदी लगा कर रखना

4 अप्रैल 2020
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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020
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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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वादा तेरा वादा

10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

14 जून 2020
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चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

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