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लोग सड़क पर

5 जनवरी 2020

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"लोग सड़क पर " ( व्यंग्य)


"नानक नन्हे बने रहो,

जैसे नन्ही दूब

बड़े बड़े बही जात हैं

दूब खूब की खूब "

श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर कर सिख श्रद्धालुओं पर पत्थर बाज़ी की गयी और एक कमज़र्फ ने धमकी दी कि वो ये करेगा,वो करेगा ।नफरत से भरी भीड़ ने सड़क पर कब्ज़ा करके गुरुद्वारे पर हमला कर दिया। सिखों और उनके धर्म स्थान को ख़त्म करने की खुले आम धमकी दी। अभी हफ्ते भर पहले ही पाकिस्तान में एक शख्स को ईशनिंदा कानून के तहत फांसी दी गयी है।फिर पता नहीं क्यों, इमरान खान नियाजी के मुल्क में ईशनिंदा कानून भी चुनिंदा लोगों पर लागू होता है ,ये बंटवारा इंसानों पर ही अभी तक लाज़िम था पाकिस्तान में ,अब खुदा पर भी हो गया है शायद।ऐसे ही मारे-पीटे सताए लोग जब भारत आते हैं और उनके आँसूं पोंछने की कवायद होती है ,तो तमाम किस्म की दलीलें देकर कुछ लोग सड़कों पर आ जाते हैं।अभी तक अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या हमारी सड़कों पर कहीं -कहीं पाये जाते थे, अब एलीट क्लास को भी सड़कों पर सम्भावनाएं दिखने लगी हैं।लोग सड़क पर हैं कि फलां को भी अपनाओ,ढिमाका को क्यों छोड़ दिया ।जान बचाकर भागकर आये लोगों और जबर्दस्ती घुस आए लोगों में फर्क होता है।लेकिन जो बेचारे शरणागत हुए हैं हमारे देश में उनका क्या ?सड़कों पर डफली ,डुगडुगी बजती रही और लोग चीखने में इस कदर लोग मशगूल रहे कि देश की शिक्षा नगरी मानी जाने वाली और युवाओं की पसंदीदा पढ़ने का शहर नौनिहालों की मौत से सिहर उठा। सैकड़ों मासूम बच्चों की आहें,कराहें उन लोगों के कानों तक नहीं पहुंच सकी जो सड़कों पर चीख रहे थे।चूँकि बच्चे,वोट नहीं हैं ,बच्चे बोटबैंक नहीं हैं ,गरीब के बच्चे की चीख सड़कों के हल्ले-गुल्ले ने सड़क और हस्पताल का फर्क मिट गया क्योंकि जितनी सर्दी सड़कों पर थी उतनी ही सर्दी हस्पतालों में थी ,लेकिन बीमार नौंनिहाल उतनी सर्दी झेल नहीं सके।देश सिर्फ एक्ट और कानून ही नहीं होता बल्कि असली देश तो ये बच्चे थे जिन्हें कोई सिर्फ सौ बच्चों की मौत कहकर पल्ला झाड़ रहा है ,क्योंकि उनके आंकड़े कह कह रहे हैं कि पहले हजारों मरते थे ,अब सिर्फ सैकड़ों ही मरे हैं ,

क्या कहना ,,सदके जांवा आप पर ,

कविवर अदम गोंडवी के शब्दों में

"तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है "

डफलियां, डुगडुगियां ,कूल डूड और डूडनियां राजधानियों की चौड़ी सड़कों पर मीडिया वैन देखकर ही उद्देलित होने वाली संवेदनाएं क्या सिर्फ लाइमलाइट तक महदूद रहेंगी ,ये सवाल बहुतों के जेहन में है ।सड़कों पर हुड़दंग ,आगजनी ,करने वाले लोगों के लिए कुछ लोगों की संवेदना इतनी उबाल मार रही थी कि कि भारत वर्तमान को उकसा कर सड़कों पर ला दिया ,और देश का भविष्य अस्पतालों में दम तोड़ गया क्योंकि सर्दी में अस्पतालों और सड़कों का फर्क मिट गया,देश के तमाम युवाओं की टोली नकारात्मक ऊर्जा से सड़कों पर जूझ रही थी ,तो दूसरी तरफ देश के कुछ नौनिहाल सर्दी और बीमारी से जूझ रहे थे ,और ज़िन्दगी की जंग हारते जा रहे थे। उन नौनिहालों के परिवारों की टीस,दर्द ,पीड़ा कोई सुनने वाला नहीं था

"चीख निकली तो है,होंठों से मग़र मद्धम है,

बन्द कमरों को नहीं सुनाई जाने वाली ।"

जेरे बहस ये है कि चंदा लगाकर अगर दंगाइयों और उपद्रवियों का सरकारी जुर्माना भरा जा सकता है तो क्या इन बच्चों को बचाने का दायित्व उनका भी हो सकता है जो दर ब दर चंदा मांग रहे हैं भटके और मासूम लोगों का जुर्माना भरने के लिए।बच्चे और बच्चे का फर्क देखकर लोग हैरान हैं

"तुम अभी शहर में क्या नये आये हो

रुक गए राह में हादसा देखकर "

बन्द कमरों में सियासी मीटिंगें और प्रदर्शन के तौर -तरीके डिसकस हो रहे हैं आजकल ना कि नौनिहालों को बचाने का उपाय।बन्द कमरे में पैकेज,पारितोषिक की चर्चा -परिचर्चा होती है ,फिर लोग सड़कों पर प्रोटेस्ट करने निकल पड़ते हैं ,,,किसका प्रोटेस्ट,कैसा प्रोटेस्ट,,,सड़कों वाले लोग इन मुद्दों से नहीं जूझते हैं ,उनको तो बस ,पथराव,आगजनी ,और चीखों से आसमान सर पे उठा लेना है ।वो चीखें तो संवैधानिक हक,संविधान के प्रहरी कुछ कहें तो उनको जुल्म नजर आता है ।सड़कों पर ही इंस्टेंट मेकअप हो जाते हैं ,दुनिया भर में पेरिस,हॉन्गकॉन्ग,के प्रोटेस्ट के फैंसी स्लोगन,ट्रेन्डिंग ड्रेस को फॉलो किया जा रहा है कि जिससे प्रोटेस्ट थोड़ा स्टाइलिस्ट और ट्रेंडी बन सके ।कम्पनियां प्रोटेस्ट जैकेट,प्रोटेस्ट स्कार्फ जैसे उत्पाद बेचने लगी हैं जो कि धड़ाधड़ बिक रहे हैं।योग सिखाने वाले लोगों की दुकान चल निकली है कि खूब देर तक चीखने -चिल्लाने का नारा कैसे लगाएं।ड्राई फ्रूट भी महंगे हो गए क्योंकि सुबह सुबह लोग खूब ड्राई फ्रूट खाकर प्रोटेस्ट करने जाते हैं ताकि स्टैमिना बना रहे ।सड़कों पर पहले लोग एक बिल्ला लगाये घूमते थे जिसमें लिखा रहता था "आस्क फॉर वेट लॉस"।अब बाज़ार विशेषज्ञों ने अपने एग्जीक्यूटिव बाज़ार में उतार दिए हैं जो बिल्ला लगा कर घूमते हैं कि "आस्क फॉर बेटर प्रोटेस्ट ट्रेंड्स"।कंपनियां क्रैश कोर्स ऑफर कर रही हैं कि प्रोटेस्ट से आपके जीवन में नई कामयाबी लाएं।इस शार्ट टर्म कोर्स में बताया जाता है कि क्या खाकर ,क्या पहन कर प्रोटेस्ट करने जाएँ।मेकअप पूरा करें,मुंह खोलें कम ,हिलाए ज्यादा,मेकअप किट साथ रखें ,थोड़ा उस प्रोटेस्ट के बारे में पढ़कर जाएँ ,संविधान के दो चार जरूरी उपबंधों को याद रखें क्योंकि जब रिपोर्टर के प्रश्न समझ में ना आएं तो "संविधान खतरे में है "कहकर रिपोर्टर के सामने उन उपबंधों का हवाला दे दें ।रिपोर्टर के सामने बाइट देते हुए कितना मुंह खोलें ,वरना चेहरे की पीओपी बिगड़ी हुइ आएगी।क्लींन शेव और नहाए धोये लड़के हर्गिज़ नजर ना आएं ,हजामत चार छह दिन पुरानी हो और बालों में हेयर जेल का प्रयोग बिलकुल ना करें ,बाल बिखरे हों तो सो फॉर सो गुड।पंप शूज पहनें ,और मोटी जैकेट भी ताकि लाठी चार्ज हो तो भागने में आसानी हो।फेसबुक और इंस्टाग्राम की फोटो खुद ना खींचे बल्कि एक दूसरे की खींचे और एक दूसरे की वाल पर शेयर करें ,सोशल मीडिया की फोटो के साथ क्रांति के गीतों की कैप्शन और इंकलाब से जुड़ी शायरियां जरूर लिखें।अपने साथ पट्टी और हैंडीप्लास्ट जरूर रखें और कुछ प्रोटेस्ट में लगाकर जाएँ ,बाकी प्रोटेस्ट ख़त्म होने के बाद लगाएं। डफली,डुगडुगी बजाने की दोनों हाथों से प्रैक्टिस कर लें।कैमरा आस पास ना हो तो पुलिस वालों से बहुत शालीनता से "सर और अंकल जी कहकर बात करें,उन्हें बता भी दें कि जब कैमरा आयेगा तो आप चीख कर उनसे उलझ पड़ेंगे बाइट के लिए।इसके लिए उनसे बता भी दें और एडवांस में माफ़ी भी मांग लें।अपने रिज्यूमे में जरूर लिखें कि आपने कितने प्रोटेस्ट किये हैं ,कितनी डफली बजायी है ,इससे नौकरी और तरक्की की संभावना बढ़ जायेगी। देशद्रोह का मुकदमा झेल रहे एक ओवरएज युवक को तो इसी के बदौलत लोकसभा का टिकट और नौकरी भी मिल चुकी है।अब हमारे टॉप संस्थानों से सिर्फ देश निर्माण का सपना लिए युवा नहीं निकलेंगे,बल्कि वो डफली -डुगडुगी से देश को जगायेंगे ,बाँध और फ्लाईओवर तो वे हमेशा से बनाते ही आये हैं।लड़के -लड़कियों ने मम्मी पापा को बता दिया है कि वो कालेज बन्द होने के बावजूद सड़कों पर इसलिये डटे हैं क्योंकि इस बार के कैम्पस प्लेसमेंट सड़कों पर ही होंगे ,कोई किसी राजनैतिक दल के आईटी सेल में जाएगा तो कोई प्रवक्ता बनेगा और पैकेज क्या होगा ,,,,?"बेस्ट इन द इंडस्ट्री"।माँ -बाप समझा दिए गए हैं कि इकोनॉमी की हालत बुरी है ,अब नौकरी सड़कों पर ही बहादुरी दिखाने से मिलेगी ,मीडिया इंडस्ट्री में रोजगार की बहार है वरना देश के टॉप संस्थानों में सब्सिडी पर पढ़ रहे टॉप इंजीनियर सड़कों पर डफली -डुगडुगी लिए ना खड़े होते ,ये वही लोग हैं जो देश के संस्थानों में भारी सब्सिडी लेकर पढाई पूरी करते ही विदेशों की इकोनॉमी संवारने चले जाते हैं।लोग सड़कों पर हैं तो सड़कों और फुटपाथों पर रहने सोने वाले लोग कहां जाएँ

वे लोग परेशान हैं कि सड़कों का शौक लोगों का ख़त्म हो तो वे फुटपाथ पर अपनी रोजी रोटी चला सकें उन्हें क्रांति के नारे नहीं जंचते क्योंकि अपना रोजगार ना कर पाने की वजह से वे भूखे हैं इस सब में,

"ना कुछ देखा राम भजन में,ना कुछ देखा पोथी में

कहत कबीर सुनो भाई साधो,जो देखा दो रोटी में"

,,,सवाल तो लाज़िम है ,फिर भी लोग सड़क पर हैं।

समाप्त,,,,,कृते ,,,दिलीप कुमार

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मन का रावण (व्यंग्य)हा, तुम्हारी मृदुल इच्छाहाय मेरी कटु अनिच्छा था बहुत माँगा ना तुमने ,किंतु वह भी दे ना पाया ।था मैंने तुम्हे रुलाया ,,ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण को पुष्पित -पल्लवित नहीं होने दिया ।इस बार का दशहरा बहुत फीका फीका रहा।,फेसबुक के कॉलेज

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"हैप्पी बर्थ डे ",,(व्यंग्य)"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला "ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के दिन अब लद गये।अब अल

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मेला आन ठेला

9 नवम्बर 2019
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मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

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तो क्यों धन संचय

16 नवम्बर 2019
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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

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अबकी बार तीन सौ पार

24 नवम्बर 2019
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अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

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ये कैसे हुआ

30 नवम्बर 2019
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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

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पापा नहीं मानेंगे

8 दिसम्बर 2019
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पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

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कौआ कान ले गया

14 दिसम्बर 2019
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"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद

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21 दिसम्बर 2019
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"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

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डर दा मामला है

29 दिसम्बर 2019
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डर दा मामला है (व्यंग्य)"सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है --हरिशंकर परसाई"।फिल्मों की "द फैक्ट्री "चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने

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लोग सड़क पर

5 जनवरी 2020
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"लोग सड़क पर " ( व्यंग्य)"नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूबबड़े बड़े बही जात हैं दूब खूब की खूब "श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर कर सिख श्रद्धालुओं पर पत्थर बाज़ी की गयी और एक कमज़र्फ ने धमकी दी कि वो ये करेगा,

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मेरा वो मतलब नहीं था

11 जनवरी 2020
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"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

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कागज़ नहीं दिखाएंगे

19 जनवरी 2020
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"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

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26 जनवरी 2020
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"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

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10 फरवरी 2020
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अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

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22 फरवरी 2020
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ब्लैक स्वान इवेंट (व्यंग्य)"तुलसी बुरा ना मानिएजौ गंवार कहि जाय जैसे घर का नरदहाभला बुरा बहि जाय "फ़िलहाल देश की आम सहनशील जनता आजकल एक दूसरे को समझाते हुये यही कहती है कि जो बहुत बोल रहे हैं ,बोलते ही जा रहे हैं ,लगातार बोलते रहने से उन्हें ये इल्हाम हो रहा है कि जब सुनें

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27 फरवरी 2020
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कर्फ्यू,(लघुकथा)शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह

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3 मार्च 2020
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3- नीचे का खुदादोनों सिपाहियों की ड्यूटी थी ,वो दोनों स्नाइपर थे और वो दोनों दुश्मनों के निशाने पर भी थे ।आबिद और इकबाल।वैसे इकबाल हिन्दू था और नाम था इकबाल सिंह ,जबकि आबिद का नाम आबिद पटेल था ।इकबाल को सब इकबाल कहकर ही बुलाते थे ताकि लोगों को लगे के वो मुसलमान है क्योंकि वो शक्ल सूरत और रव

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वर्क फ्रॉम होम

10 मार्च 2020
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वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

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घर बैठे बैठे

21 मार्च 2020
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"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

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मेहँदी लगा कर रखना

4 अप्रैल 2020
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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020
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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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वादा तेरा वादा

10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

14 जून 2020
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चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

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