अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)
"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे
वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगे
अजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"
पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है ।एक बड़ी मशहूर कहावत है कि सबसे ज्यादा बहरा वो होता है जो कुछ सुनना ही ना चाहे।तो ये अंकल वाली फिलॉसफी उन्ही लोगों द्वारा ईजाद की गयी है जिसमें उनका नारा है
"खाता ना बही ,जो हम कहें वही सही "
जैसे डंकल अंकल इस देश की खेती किसानी को धीरे से झटका दे गए वैसे ही अब नए नए अंकल नयी नयी फिलॉसफी ला रहे हैं ।जैसे पद्मश्री से सम्मानित और एक होटल में बगल बैठे व्यक्ति से मारपीट करके उसकी नाक तोड़ देने वाले सैफ अली खान ने सवाल उठाया है कि भारत कभी देश के तौर पर एक था क्या ?वो तो अच्छा है कि इस देश में लोग लवर बॉय टाइप के अभिनेताओं की राजनैतिक समझ को सीरियसली नहीं लेते वरना विवाद खड़ा हो जाता । ये भी अच्छा हुआ कि अभिनेत्री कंगना रनौत ने उनसे पलट कर पूछ लिया कि "अगर भारत नहीं था तो महाभारत कैसे हुआ"?
जैसे एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दों पर वेटरन अभिनेत्री पूजा भट्ट आजकल लोगों को आगाह करती फिर रही हैं ,लोगबाग हैरान हैं जो एनआरसी अभी ड्राफ्ट के रूप में देश के सामने ही नहीं आया ,उसकी व्याख्या वो कितनी डिटेल में लोगों को समझा रही हैं ये सबब -ए-हैरानी है।आसाम के एनआरसी के अनुमान के आधार पर पूरे देश की एनआरसी की परिकल्पना करना ऐसे ही है जैसे जो स्क्रिप्ट आलिया भट्ट के लिये सही है वही स्क्रिप्ट पूजा भट्ट के लिये उपयुक्त होगी इस बात की कल्पना करना।वैसे इन घटनाओं ने बहुतों को बहुत अच्छी खासी टीआरपी दे दी ।पूजा भट्ट एक अरसे से लाइमलाइट से दूर रहीं अचानक ही खूब मीडिया अटेंशन पाने लगीं।स्वरा भास्कर को कभी भी किसी फिल्म में मुख्य अभिनेत्री का लीड रोल नहीं मिला ,उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पहुंचते पहुंचते दम तोड़ जाती हैं ।मगर सीएए विरोधी प्रदर्शनो में वो लीड रोल में नजर आयीं।उनकी फिल्मों से दर्शक भले नदारद हों ,मगर इंदौर में उन्हें सुनने काफी लोग आये ,और उनकी राग लंतरानी सभी ने लुत्फ़ लेकर सुनी ।पायल रोहतगी का भी यही हाल है ।सिनेमा में वो भले ही कामयाब हीरोइन नहीं बन पायीं ,मगर अपने देशप्रेम के सार्वजनिक अभिव्यक्तियों से वो बहुतों का दिल जीतने में कामयाब रहीं।उन्होंने शबाना आज़मी को इस बात पर बहुत माकूल जवाब दिया था कि राम शख्स नहीं बल्कि भगवन थे।ये वही शबाना आज़मी हैं जिनके वालिद और अजीम शायर ने राम को लेकर दूसरा वनवास जैसी कालजयी नज़्म लिखी और सोमनाथ के शिव को लेकर अपनी उम्दा रचनायें लिखीं।खैर इस सीएए के कानून ने क्या दिलचस्प नजारा पेश किया है ।एक तरफ तो अपनी धुर विरोधी शबाना आज़मी के कार दुर्घटना में घयल होने पर प्रधानमंत्री मोदी जी उनके शीघ्र स्वस्थ हो जाने का शुभकामना सन्देश ट्विटर पर देते हैं,दूसरी तरफ वही शबाना आज़मी घायल, बीमार और देश से बाहर होने के बावजूद मोदी विरोध और सीएए जारी रखने का वीडियो ट्विटर पर डालती हैं।लोकतंत्र में असहमति का ये बड़ा दिलचस्प वाकया है ,वरना तो लोग लोकतंत्र में डंडे से पिटते हुए देखेने की इच्छा पालने वाले लोग भी मौजूद हैं।बुद्धिजीवियों की एक ऐसी जमात है जो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं है ,बस कहती रहती है कि ये खतरे में है ,वो खतरे में है ।वैसे ये खतरे उन लोगों को तब महसूस नहीं हुये जब कश्मीरी पंडितों की जलावतनी हुई थी तब इन लोगों ने अखबार में सताए हुए लोगों की खबरें पढ़कर कंधे उचकाए कि "इनकी देखभाल तो सरकार का काम है "।अब जब सरकार कोई काम करती है तो सड़कों पर जलजले ला देते हैं लोग ।देश दुनिया के लोगों की दलीलें देंगे कि अब भारत ऐसा होता जा रहा है ,अब भारत वैसा होता जा रहा है ।दूसरों को कम्यूनल ना बनने की नसीहतें देने वाले लोग ना जाने कब "अंकल कम्यूनलिज़्म" का शिकार हो गए ,उनको पता ही नहीं चला ।किसको पता था अपनी आज़ादी की दुहाई देते देते लोग कब दिल्ली की एक खुली सड़क को "नो इंट्री जोन"बना देंगे जहाँ भारत के सभी नागरिक नहीं जा सकते बल्कि उनकी पसन्द और सुविधा के अनुसार के लोग ही आ जा सकते हैं।उन्होंने सड़क बन्द कर रखी है क्योंकि बकौल उनके,उन लोगों के साथ हकतल्फी की उम्मीद है ।महज पांच सात सौ लोग दस पन्द्रह लाख लोगों के आवागमन के हक की हकतल्फ़ी जो मुसलसल कर रहे हैं उसका क्या ,सवाल के जवाब में तिरंगा लहराते हैं और संविधान दिखाते हैं ।संविधान पर मानो उन्हीं लोगों का कॉपीराईट है ,उनका दुःख ,दुःख ,दूसरे का दुख तो बस ऐंवे ही "।पत्रकार भी अपनी पसंद के चाहिए,रिपोर्टिंग भी अपनी ही शर्तों पर हो ,क्या कहने ?कहने को तो आंदोलन में महिलाओं की ही भागीदारी है ,मगर एक महिला यूट्यूबर जब कुछ हाल खबर लेने पहुंची तो उसके ऊपर लोग हमलावर हो गए।बलिहारी है आपकी आज़ाद ख्याली की सोच को ,जो एक महिला यूट्यूबर पर बहुत भारी पड़ी जो बहुत दुखद हाल में वहाँ से लौटी।
वैसे अंकल कम्युनलिज्म का एक और नजारा हाल के दिनों में देखने को मिला ,जब राजेश खन्ना,दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन,शाहरुख़ खान के सिनेमा में योगदान को ख़ारिज करने वाले नसीरुद्दीन शाह ने अभिनय की पढ़ाई के गोल्ड मेडलिस्ट अनुपम खेर को ख़ारिज कर दिया ,उन्हें हल्का फुल्का व्यक्ति और उनके काम की खिल्ली उड़ाई।इन दोनों बेजोड़ अभिनेताओं की आभासी लड़ाई में रोमांच तब आया जब अनुपम खेर ने नसीरुद्दीन शाह के इस बयान के लिये उन्हें नहीं,बल्कि उन पदार्थों को जिम्मेदार माना और कहा कि ये फ्रस्टेशन उन पदार्थों के सेवन का नतीजा है जिनका प्रयोग नसीरुद्दीन शाह बरसों से करते रहे हैं।जानकार लोग जानने का प्रयास कर रहे हैं कि वे पदार्थ क्या हैं जिनका प्रयोग करके लोग क्या से क्या हो जाते हैं। अक्सर भारत में बढ़ती असहिष्णुता पर लोगों की खिंचाई करने वाले और युवा खिलाड़ियों की गाली गलौज के लिये विराट कोहली को जिम्मेदार ठहराने वाले नसीरुद्दीन शाह इस बात पर चुप हैं कि उनकी बेटी ने पशुओं के चिकित्सा क्लीनिक में के स्टाफ से मार पीट क्यों की ,वो भी इस तुर्रे के साथ वहां के स्टाफ की हिम्मत कैसे हुई उन्हें इंतजार कराने की।वो क्यों नहीं जानती कि वो कौन हैं किसकी सुपुत्री हैं ?और उस पर फिर स्वर्णिम चुप्पी नसीरुद्दीन शाह की ,क्या कहने ?
"कोई बात ऐसी अगर हुई
कि तुम्हारे जी को जो बुरी लगी
तो बयां से पहले ही भूलना
तुम्हें याद हो कि ना याद हो "😊
समाप्त
कृते -दिलीप कुमार