चाँद और रोटियां (व्यंग्य)
प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे कि सरकार ने ऐसा क्यों किया ?कोई अगर भूले भटके उनसे पूछ लेता उनकी फ़ेसबुक वाल पर तो उसे वे तुरन्त ब्लॉक कर देते थे।सड़क पर चल रहे मजदूरों की व्यथा से विकल उन्होंने समान धर्मा लोगों की एक मीटिंग बुलायी।
मीटिंग लॉक डाउन का लिहाज करके दिन में तीन बजे खत्म कर देने का उनके इसरार पर दोस्तों ने इकरार कर के हामी दी।
तय शुदा वक्त पर उनकी मंडली पहुंची ।उनके नौकर ने स्टार्टर रख दिया ।फिर मुर्ग मुसल्लम,मटन से कमरे में खुशबू भर गयी ,उन्होंने खाना शुरू करने से पहले तंदूरी रोटी को देखा और मोबाइल पर गीत लगा दिया
"इक बगल में चाँद होगा ,एक बगल में रोटियां "।
रोटियों के गीत सुनकर और तंदूरी रोटी की खुश्बू से उनकी मंडली खाने पर टूट पड़ने वाली थी कि उन्होंने वोदका पेश कर दी ।मंडली के चेहरे निहाल हो उठे,।डफली बजाकर सड़कों पर गीत गाने वाले रोटी मैन के नाम से मशहूर मजहर साहब ने पाये का टुकड़ा मुंह में डालते हुए कहा -
"कहाँ से मिली आपको ,इस बंदी में भी।लास्ट टाइम जब हम फ़र्टिलाइज़र फैक्ट्री के खिलाफ स्ट्रीट प्ले और प्रोटेस्ट कर रहे थे ,तब ऱाइवल कम्पनी ने पूरा क्रेट वोदका हम लोगों को दिया था ,लेकिन कमीने ने फाइनल पेमेंट के टाइम वोदका की हर बोतल के पैसे काट लिए थे ,देखो अब ऐसे बेहतरीन ऑफर वाले प्रोटेस्ट करने के मौके दुबारा मिलें या न मिलें "ये कहते हुए वोदका का पूरा गिलास गटक लिया उन्होंने और गुनगुनाने लगे
"इंकलाब लाना है साथी इंकलाब लाना है "।
मुर्गे के लेग पीस को दांतों से खींचकर उसे सटकने के बाद हल्की सी सिप लेते हुए गिलास को बगल में रखकर संध्या वादिनी जी बोलीं -
"आपके कहने पर ये लेग पेस खा लिया मैंने।शहर के सारे जानवर मर रहे हैं ,खास तौर से पोल्ट्री ।अब ये मर रहे हैं तो इनको मरना ही है ।हमारी गोवरर्नमेंट इंसानों को ही बचाने में उलझी है ।यू नो एनिमल्स डोंट कास्ट देअर वोट्स ।हे भगवान इन पोल्ट्री की रक्षा करना ।मैं तो एक प्रार्थनासभा भी करूंगी इन बेजुबानों के लिये।हमारी एनजीओ की फेसबुक पेज पर फोटो देखकर ऑस्ट्रेलिया से हमको एक ग्रांट मिली थी । कुछ महीने पहले ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में जो आग लगो थी ,उस पर हमने यहां कितनी रैली,सांग,स्लोगन किये थे।किसी कम्बख्त ने ऑस्ट्रेलियन एनजीओ को मेल कर दिया कि हमारी एनजीओं को गवर्नमेंट ने ब्लैक लिस्ट में डाल दिया था।अब ये बंदी के दिन बीत जाएँ तो किसी अफसर से कह सुन कर मुझे ब्लैक लिस्ट से निकलवायें।करुण जी आप तो कवि हैं मिनिस्ट्री में बहुत से कवि हैं।कवियों के बड़े कॉन्टेक्ट्स होते हैं ।प्लीज डु समथिंग करुण जी यू हैव टू हिल्प मी ,आई विल गिव यू टेन परसेंट ऑफ़ ग्रांट ,यू नो इन डॉलर ।हे भगवान मैं जब पोल्ट्री प्रोडक्ट्स के लिये प्रार्थना सभा करूंगी तो आपको टैग भी करूंगी ।बाद में आप भी इसे अपने फेसबुक पेज पर शेयर कर दीजियेगा तो मेरी एनजीओ का इमेज मेकओवर हो जायेगा।आप रिटायर हैं तो क्या थे तो बहुत बड़े अफसर।बेचारे इनोसेंट बर्ड्स"ये कहकर वो सुबकने लगीं ।वो सुबकते सुबकते उठा कर एक लेग पीस मुंह में रख लेतीं और फिर पोल्ट्री उत्पादों के बारे में सोचकर सिहर उठातीं और फिर सुबकने लगतीं।
कुमार कालजयी साहब अब तक तीन पैग नीट पी चुके थे ।कुमार कालजयी साहब बहुधन्धी व्यक्ति थे।लेकिन फिलहाल वो खुद को जन्मजात चित्रकार बताते थे मगर इस वक्त चाइल्ड राईट एक्टिविस्ट के तौर पर चांदी कूट रहे थे ।उन्हें दुनिया भर के बच्चों की बेहद फ़िक्र थी ,अपने व्हाट्सअप और फेसबुक पेज पर अयलान की डीपी लगा रखी थी ।जब से देश -दुनिया में बंदी का माहौल शुरू हुआ है तब से वो लोगों के फेसबुक पेज पर से यात्रा कर रहे बच्चों की तस्वीरें उठा लेते हैं उनमें थोड़ा बहुत रद्दोबदल करके उसका स्केच बनाकर रंग भरते हैं और उन्हें दुनिया भर की वेबसाइट्स पर बेचने की कोशिश करते हैं जिसमें वो फिलहॉल विफल हैं ।उन्हें बच्चों से इतना ज्यादा प्रेम है मगर न जाने क्यों अपने बच्चों को अपने पास नहीं रखते और उनके पालन पोषण की जिम्मेदारी सुदूर गांव में अपने माँ -बाप को दे रखी है ।उन्होंने चौथा पैग नीट भरा और बोले "अब दुनिया भर की वेबसाइट्स बच्चों के अधिकारों को लेकर संवेदनहीन हो गयी हैं।एक भी पेंटिंग नहीं ली किसी ने बच्चों की।अब ग्राउंड जीरो पर भी बच्चों के लिये काम करने की गुंजाइश नहीं दिख रही ।अरे जब दुकानों ,कारखानों में बच्चे काम नहीं करेंगे तो उनकी रिलीज और रिहैब के लिये हमें ग्रांट कौन देगा इस बंदी में मेरा भी नौकर भाग गया।पिपलोनिया की ग्लास इंडस्ट्री में सोलह नाबालिग थे ।मैंने पुलिस के साथ रेड में कोऑपरेशन किया था ।पिपलोनिया ने पुलिस को क्या लिया दिया,उसका तो पता नहीं ।मगर उस सोलह नाबालिगों में से एक लड़का मेरे घर काम करने को भेज दिया।काम वो मेरे घर करता था ,तनख्वाह पिपलोनिया देता था ।इस बंदी में पिपलोनिया के सारे नौकर भागे तो मेरे यहां वाला लड़का भी भाग गया।अब मेरी वाइफ को घर का सारा काम करना पड़ता है ,और वो मेरा काम तमाम करने को आमादा है।अब कौन देगा हमें मुफ्त का नौकर ,हे भगवान "ये कहते हुए उसने चौथा पैग नीट पी लिया।
"सेम हियर ,कुमार डियर "ये करुण स्वर किरणमयी आनंदी मैडम का था।उन्होंने शीशे के गिलास पर सिप करने से शराब के जाम पर इंपोर्टेड लिपस्टिक के निशान दिख रहे थे ।उन्होंने उस निशान को पेपर से पोंछा और मटन का पीस खाने लगीं।वे स्त्रियों के पश्चिमी सौंदर्य उत्पादों के उपयोग के खिलाफ एक अभियान बरसों से चला रहीं हैं।वो स्त्रियों को पश्चिमी सौंदर्य प्रसाधनों के दुरूपयोगों के बारे में बताने के लिये आन लाइन मुहिम चला रही थीं जिससे वे काफी पापुलर हो गयी थीं ।किसी भी बिंदी कार्नर,,ब्यूटी पार्लर पर वो छापा मार देती थीं और उन्हें केमिकल से बने पश्चमी उत्पादों के प्रयोग से आगाह करतीं।उनसे सब डरते थें।उनकी स्वदेशी की चेन और मुल्ती लेवल मार्केटिंग शुरू ही होने वाली थी कि ये बंदी आ गयी।संकटकाल में सौंदर्य की किसे सुधि,स्त्री हो या पुरुष।गले में फंसे मटन को वोदका से नीचे उतार कर वे बोलीं "-
"कितने बरसों से मुझे अपना कोई निजी जरूरत का कोई सामान नहीं खरीदना पड़ा।हर इम्पोर्टेड ब्रांड सबसे पहले मेरे घर भिजवा देते थे ये ब्यूटी पार्लर वाले और बिंदी कार्नर वाले।मुझे देख कर कांपते थे ये लोग।कोई भी ब्यूटी प्रोडक्ट हमारे इलाके में मुझसे बात किये बिना नहीं बिक सकता था ।मेरी स्वदेशी ब्यूटी प्रोडक्ट चेन शुरू ही होने वाली थी कि ये बंदी आ गयी ।अब क्या होगा ?करुण सर आप मेरा कुछ स्वदेशी प्रोडक्ट किसी गवर्नमेंट सप्लाई में लगवा दीजिये ना "ये कहकर शीशे के गिलास में उन्होंने अपने चेहरे के पीओपी को दुरुस्त किया जो इम्पोर्टेड क्रीम से लिपा पुता उनकी उम्र की सिलवटों को ढके था।
"ओके एन्जॉय द पार्टी।आइ विल सी ।गवर्नमेंट इस बंदी पर मेरी कवितओं और स्टेटमेंट्स से काफी परेशान है।कल मुझे बुलाया गया है ,मैं देखता हूँ कि तुम लोगों की क्या मदद कर सकता हूँ।लेट्स एन्जॉय,चीयर्स"करुण साहब ने हर्ष के अतिरेक में कहा।
खा पीकर सब चलने लगे तो करुण जी ने मजहर को वोदका,सन्ध्यवादिनी को टिफ़िन भर के मटन,दिया और गिरते पड़ते उलटी करते कुमार कालजयी को अपने बारह साल के नौकर को गाड़ी में बैठाने को कहा ।वो सब गाड़ी में बैठ गए तब उन्होंने किरणमयी आनंदी को एक इम्पोर्टेड मेकअप किट गिफ्ट की ।वो जब अपनी बीएमडब्लू में अपने मित्रों को छोड़ कर लौटे तो उनके दरवाजे पर कुछ लोग खड़े थे ।
करुण जी ने दरयाफ्त की तो पता लगा कि ये लोग मोहल्ले के दूसरे छोर पर मोहल्ले वालों की मदद से एक लंगर चला रहे हैं जो पैदल जा रहे मजदूरों को खाना पानी आदि देते हैं ।करुण जी मोहल्ले के सबसे रईस आदमी थे उनके पास सबसे बड़ी उम्मीद से आये थे ।करुण जी ने उनकी बात को ध्यान से सुना फिर करुणा मिश्रित स्वर में बोले -
"आपकी बात तो ठीक है ,लेकिन इन मजदूरों की मदद करने का काम सरकार का है ।आप लोग अगर इनकी मदद करना चाहते हैं तो इनको अगले नुक्कड़ पर जो स्कूल है वहां भेज दें ।मैं फोन कर दूंगा ,इनकी मदद हो जायेगी"।
",जी इन्हें रहना नहीं है ,बस हम रास्ते में मजदूरों को खाना दे रहे हैं ।आप कुछ अनाज या पैसों से मदद कर देते तो ",भीड़ से एक उम्मीद भरी आवाज़ निकली ।
"बोला ना ये काम गवर्नमेंट का है।फिर मैं तो पेंशनर हूँ ।मैं कहाँ से मदद कर पाउँगा।सरकार ने खुद मेरी सुधि नहीं ली है एक सीनियर सिटीजन किस हाल में है।लेकिन मैं इस मुद्दे को आज अपनी फेसबुक पर उठाऊंगा जरूर और प्रसाशन पर दबाव बनाऊंगा।देखना आप लोग ।अब जाइये आप लोग ,अगर आपके पास कोई फोटो या वीडियो होगा इस इवेंट का तो मुझे भेजना ।सरकार पर दबाव बनाने के काम आएगा"ये कहते हुए उन्होंने गेट बंद कर लिया ।जो लोग दरवाजे पर खड़े थे उनको एक गीत सुनायी दे रहा था
"इक बगल में चाँद होगा ,इक बगल में रोटियां "।
समाप्त
कृते दिलीप कुमार