shabd-logo

पापा नहीं मानेंगे

8 दिसम्बर 2019

474 बार देखा गया 474








पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)

"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें,

हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"




एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नहीं था कि खुदा किसी को ख़ाक करने की बद्दुआ कभी कुबूल नहीं करते ,अलबत्ता इश्क़ करने वालों को तो खुदा का ही आसरा रहा है ,अपनी दुआ,बद्ददुआ, इल्तजा सब खुदा के हवाले।मगर ये उस दौर की कहानी थी जब लड़कियों के पिता की सख्त निगरानी में लड़की से संपर्क करना मुश्किल था ।लेकिन अब दौर दूसरा है ,कोई भी किसी से सम्पर्क कर सकता है ,अपनी बात कह सकता है ।ईमेल ,फेसबुक,व्हात्सप्प,मेसेंजर में हाल ए दिल कह सकता है और तुरंत जवाब भी पा सकता है बिना लड़की के पापा के बीच में आये ।एक वक्त था जब लोग इश्क़ का इजहार करते थे और लड़की की उसमें रूचि नहीं रहती थी तो वो डरते डरते कहती थी कि "पापा जान जाएंगे तो ?" यानी उसके बाद ठुंकायी, कुटाई,और ना जाने क्या क्या ?लेकिन अब दौर बदल गया है अब इश्क़ में भी ऑप्शन का जमाना है ,गये वो जमाने जब इश्क के लिये एक अदद प्यारे दिल की ही जरूरत हुआ करती थी । जिंदगी दो जून की रोटी ,सर छुपाने की छत और तन ढकने के दो कपड़ों पर इश्क परवान चढ़ा करता था ,तब पापा जान जाएंगे से पहले लोग फरार हो जाते थे और उत्साह से कहते थे कि नदिया किनारे रहेंगे और रूखी सूखी खाकर दुनिया की नजरों से दूर रहेंगे ,ताकि पापा जान ना जाएँ हम कहाँ हैं ?

फाकामस्ती में मंजनू गाया करते थे

'ये गिजा मिलती है लैला तेरे दीवाने को

खूने दिल।पीने को और लख्ते जिगर खाने को "


लेकिन जिस तरह से आर्थिक उदारीकरण ने आर्थिक मंदी का दंश दिया वैसे ही बदलते दौर में पापा फिर नये तरीके से आये।पापा जान जाएंगे से पापा नहीं मानेंगे का रास्ता यूँ ही नहीं तय हुआ ।पापा यूँ ही नहीं हैं ऐसे ,पापा ने वक्त की चक्की में,जरूरत के पाटों में हर वादे को पिसते देखा है ,और जमाने से जूझते पापा अपनी औलाद के बेहतर भविष्य के लिये ,,बकौल पापा-

"मेरे सर पे है जब तक जिम्मेदारियों का पहाड़

मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते "

यकीनन ये दौर ही ऐसा है जब पापा, बेटी-बेटा दोनों से उसकी ज़िन्दगी को सेटल करने में राय मश्विरा करते हैं।लेकिन ये समस्या सिर्फ औलाद की हो, कि पापा उसकी बात नहीं मानेंगे ,बल्कि पापा भी कभी कभी सर्वथा औलाद को अपनी विरासत देने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।पापा नहीं माने तभी तो गावस्कर ने अपने बेटे को बैटिंग,बच्चन ने अपने बेटे को एक्टिंग करायी भले ही उसका नतीजा कुछ भी हो ।पापा के ना मानने की जिद थी कि यश चोपड़ा के बेटे उदय चोपड़ा और अभिनेत्री तनूजा की बेटी ,,,,तनिष्का मुखर्जी ने कुछ साल पहले एक फिल्म बनायी थी

"नील एन निक्की "यशराज बैनर की इस कालजयी फिल्म को देखने के बाद फिल्म क्रिटिक्स ने लिखा था कि तीन घण्टे की इस पूरी फिल्म देखने को लिये विशेष प्रोत्साहन राशि की घोषणा करनी चाहिए थी और इसके अलावा फिल्म को बगैर सोये सफलता पूर्वक देखने के लिये ऐसे उत्साही सिने प्रेमियों के लिये दादा साहब फाल्के सम्मान के समान किसी पुरस्कार की घोषणा करनी चाहिये ।जब पापा नहीं मानते और मेहनत से हासिल की गयी अपनी राजनीतिक विरासत अपनी सन्तान को ही सौंपते हैं भले ही उसमें नेतृत्व के गुण हों या ना हो।लेकिन राजा की अंतिम इच्छा यही होती है कि राजा अपने बेटे को ही राजा बनाये।हमारा इतिहास इन पापाओं के बात ना मानने से रक्तरंजित होता रहा है ,लेकिन इतिहास से किसने सबक लिया था।पिता दशरथ के दो वर ,अपनी जुबान की लाज रखने के लिए उनके जी का जंजाल बन गए और अंततः उनके प्राण लेकर ही माने। मेघनाथ ने रावण को लाख समझाया कि सीता जी को राम को वापस करके उनसे संधि कर लें ,लेकिन पापा रावण कहाँ माने ,अपनी जिद से अपना और अपने कुल का नाश कराया। पापा नहीं माने तभी तो महाभारत के बीज पड़े ,पहले देवव्रत ने अपने पिता की इच्छा पूरा करने के लिये भीष्म प्रतिज्ञा की ,और फिर उनकी यही भीष्म प्रतिज्ञा तमाम अधर्म के कृत्यों का आवरण बनी। कहीं पापा नहीं माने कहीं बेटा नहीं माने। जब जब राष्ट्र पर पापा की बुद्धि पर पुत्र मोह हावी हुआ तब तब कहीं ना कहीं महाभारत हुई। वरना हमारी दुनिया इस रक्तपात से रक्तरंजित ना हुई होती।जॉर्ज बुश सीनियर के बेटे जॉर्ज बुश जूनियर ने इस दुनिया को अपने ऐड्वेंचर के लिये इन जंगों में ना झोंका होता। जूनियर बुश के पापा सीनियर बुश नहीं माने पहले अरब में आग लगायी और फिर वॉर ऑन टेरर के नाम पर पूरे मध्य एशिया और दक्षिण एशिया को कुरुक्षेत्र बना रखा है । पापा नहीं माने तभी तो पूर्वी भारत के एक बहुत बड़े नेता वर्षों से जेल में हैं मगर खुद को अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करवा लिए।वैसे इनके मेधावी पुत्र अपने अंग्रेजी ज्ञान और इतिहास के ज्ञान से देश के लोगों का खासा मनोरंजन करते रहते हैं। ये पापा की बेटे को राजा बनाने वाली पूरे देश के हर प्रान्त में है और पापा हैं कि मानते ही नहीं।यहां हम माँ के लॉडलों का जिक्र इसलिये नहीं करेंगे क्योंकि माँ के लॉडलों को "ममा,ज बॉय "कहकर माफ़ कर दिया जाता है ,वरना इतिहास में इस अनुभवहीनता बात का जिक्र बड़ी दबी जुबान में होता है जब अपने ही देश से गये लोगों को रेस्क्यू करने के बजाय उनको मारने के लिये सेना भेज दी गयी हो ,


लम्हों ने खता की थी ,सदियों ने सजा पायी ।

पापा लोगों की भी समस्या है आजकल कोई समय से रिटायर ही नहीं होता ,मरते दम तक राज भोगना चाहता है ।कुछ समय पहले तक छत्तीस राजनैतिक पद वाले एक परिवार में भी ये समस्या आन खड़ी हुई थी , नये को राज लेना था पुराना छोड़ने को तैयार नहीं था ।रुस्तम और सोहराब आमने सामने,,,

ना कम रघुवर, ना कम कन्हैया (नॉट कुमार )। बड़ा धर्मसंकट था,,

"कैद ये है कि बज़्म में हो होंठ सिले

हुक्म ये है कि हर बात जुबानी कहिये"


इसको निपटाने के लिये एक बीच का रास्ता निकाला गया, रुस्तम राष्ट्रीय अध्यक्ष,,,सोहराब ,,कार्यकारी अध्यक्ष,,,, तुम्हारी भी जै जै,हमारी भी जै जै,ना तुम हारे,ना हम हारे ,,तो फिर हारा कौन,,,?इस आधुनिक समर में कोई कुछ नहीं खोता ,कुछ खोती है तो सिर्फ जनता ,अपने सपने,अपनी उम्मीदें ।

वरना जिस विचारधारा को लेकर पश्चिम भारत में लोगों ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया ,जिनसे लड़ने जूझने के लिए ही जो बने थे , वही विचारधारा दूसरी विचारधारा से ऐसे घुल मिल गयी जैसे दूध में शक्कर । दूध में शक्कर मिल जाए तो अगली स्टेज रबड़ी मलाई ही होती है , लेकिन जिन्होंने लाठियाँ खायीं,संन्घर्ष किया उनका क्या ,वो हैरान हैं ,दूसरे हैरान शख्स ने उसे समझाया है कि

"तुझे कसम है ,खुदी को बहुत हलाक ना कर

कि तू इस मशीन का पुर्जा है ,पूरी मशीन नहीं "

लोग कहते हैं कि पुत्रों को पापा,पिता और मम्मी की विचारधारा को मानना चाहिये,,ये बहुत सही बात है ,बड़ों का आदर करना ही चाहिए।पापा मानें या ना मानें ,पापा तो मना ही लिए जाते हैं जैसे बिलावल भुट्टो आसिफ अली जरदारी को इस बात को मनाने के लिये तैयार कर ले गए हैं कि जरदारी जेल में ही रहेंगे मगर स्विस खातों की डिटेल सरकार को नहीं देंगे।

पापा नहीं मानेंगे के अपने अपने मायने हैं सियासत,फिल्म,खेल के अलावा अब ये साहित्य में भी अपना जलवा बिखेर रहा है ।क्रॉनिक बैचलर और किस्सों की सड़क के लेखक अभिषेक सूर्यवंशी भी इस क्रॉनिक डिजीज से त्रस्त हैं ।सूत्र बताते हैं कि बचपन में लड़कियां उनका टिफिन खा लेती थीं ,और अपनी बारी आने पर टिफिन शेयर करने से मना कर देती थीं ये कहकर कि पापा नहीं मांनेंगे।लेखक मिजाज को विज्ञान पढ़वा डाला कि तुम पढ़ लो,तब मैं मिलूंगी ,वरना पापा नहीं मानेंगे।लड़का पढ़ लिख कर नौकरी करने लगा और जब जब उन सबको उनकी अहद याद दिलाता है तो पहले तो शर्माती हैं लेकिन थोड़ी देर बाद "पापा नहीं मांनेंगे "कहकर गुडबॉय कर जाती हैं। सुना है वो किस्सागो पापा नहीं मानेंगे के ताबड़तोड़ हमलों से त्रस्त होकर अगली पुस्तक शायरी की लिखेगा ,जिसमें इस टाइप के शेर होंगे

"भूल शायद बहुत बड़ी कर ली

दिल ने इक बेवफा से दोस्ती कर ली

वो मोहब्बत को खेल समझती रही

हमने बर्बाद जिंदगी कर ली "

खुदा या खैर इस लेखक पर।

अचानक मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा "सुनो,तुमने पापा से बात की थी ना ,वो जो मम्मी वाला बड़ा सा हार फ़ालतू में रखा है उसे मैं तुड़वा कर नए डिजाईन के गहने बनवा लूँ ,,मेरे मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा "पापा नहीं मांनेंगे "😊

समाप्त ,,कृते ,,दिलीप कुमार





दिलीप कुमार की अन्य किताबें

1

जूतों के अच्छे दिन

29 नवम्बर 2018
0
0
0

2

ऊँची नाक का सवाल (व्यंग्य)

24 जुलाई 2019
0
4
4

इस दौर में जब देश में बाढ़ का प्रकोप है तो नाक से सांस लेने वाले प्राणियों में नाक एक लक्ष्मण रेखा बन गयी है ,पानी अगर नाक तक ना पहुंचा तो मनुष्य के जीवित रहने की संभावना कुछ दिनों तक बनी रहती है,बाकी फसल और घर बार उजड़ जाने के बाद आदमी कितने दिन जीवित रहेगा ये उतना ही बड़ा सवाल है जितनी कि हमारे देश म

3

डाल डाल की दाल (व्यंग्य)

28 जुलाई 2019
0
1
0

"दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ "बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है।दाल की वैसे डाल नहीं होती लेकिन ना जाने क्यों फीकी और भाग्य से प्राप्त चीजों की तुलना लोग दाल से ही करते हैं और अप्रा

4

डाल डाल की दाल (व्यंग्य)

28 जुलाई 2019
0
3
2

"दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ "बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है।दाल की वैसे डाल नहीं होती लेकिन ना जाने क्यों फीकी और भाग्य से प्राप्त चीजों की तुलना

5

अदीब@मेला

30 जुलाई 2019
0
2
3

पुस्तक मेले में सब हमारी किताबें लपक रहदिल्ली में हर बार की भाँति पुस्तक मेला लगा, दिल्ली देश का दिल है ,अवार्ड वापसी वाले लेखक बहुत परेशान हैं कि जितनी ख्याति उनको अवार्ड लौटाकर नहीं मिली थी उससे ज्यादा प्रचार-प्रसार तो इस मेले में लेखकों का हो रहा है। एक अनुमान के तौर पर सिक्किम की आबादी के जितनी

6

हम हिन्दीवाले

4 अगस्त 2019
0
0
0

हम हिन्दीवाले (व्यंग्य )अपने कुनबे में हमने ही ये नई विधा इजाद की है ।एकदम आमिर खान की मानिंद "परफेक्शनिस्ट",नहीं,नहीं भाई कम्युनिस्ट मत समझिये।भई कम्युनिस्ट से जब जनता का वोट और सहयोग कम होता जा रहा है तब हम जैसा जनता के सरोकारों से जुड़ा साहित्यकार कैसे उनसे आसक्ति रख सकता है ।एक उस्ताद शायर फरमा ग

7

अब आगे क्या

11 अगस्त 2019
0
1
1

"अब आगे क्या "(व्यंग्य) तड़ाक,तड़ाक,तड़ाक ,ये थप्पड़ नहीं एक आवाज है जो कहीं कहीं सुनायी पड़ रहा है। जैैसे हवा भी होती है पर दिखती नहीं है।पिछले हफ्ते देश में पहले तो तीन तलाक पर ये तड़ाक का साया पड़ा और अब जम्मू कश्मीर में ,370,35-A, और स्पेशल स्टेटस

8

तब क्यों नहीं

18 अगस्त 2019
0
1
0

तब क्यों नहीं ,(व्यंग्य)"ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थीपाँव जब जलती हुई शाखों से उतारे हमने इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने "ये सुनाते हुए उस कश्मीरी विस्थापित के आँसूं निकल पड़े जो अपने घर वापसी के लिये दिल्ली से जम्मू की ट्

9

लोहा टू लोहा

25 अगस्त 2019
0
0
0

लोहा टू लोहा (व्यंग्य )आजकल देश में मोटा भाई कहने का चलन बहुत बढ़ गया है।माना जाता है कि बंधुत्व और दोस्ती का ये रिश्ता लोहे की मानिंद सॉलिड है। पहले ये शब्द भैया कहा जाता था ,लेकिन जब से अमर सिंह ने अमिताभ बच्च्न को भैया कहने के बाद हुए अपने हादसे का दर्द बयान किया तब से लोग भैया के बजाय मोटा भाई ही

10

नाट आउट @हंड्रेड

8 सितम्बर 2019
0
0
0

नॉट आउट @हंड्रेड (व्यंग्य)"ख्वाबों,बागों ,और नवाबों के शहर लखनऊ में आपका स्वागत है" यही वो इश्तहार है जो उन लोगों ने देेखा था जब लखनऊ की सरजमीं पर पहुंचे थे। ये देखकर वो खासे मुतमइन हुए थे । फिर जब जगह जगह उन लोगो ने ये देखा कि "मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं "तो उनकी दिलफ़रेब मुस्कराहटें कान कान

11

हैप्पी हिंदी डे

15 सितम्बर 2019
0
0
0

"हैप्पी हिन्दी डे " (व्यंग्य )हे कूल डूड ऑफ़ हिंदी ,टुडे इज द बर्थडे ऑफ़ हिंदी ,ईट्स आवर मदर टँग एन प्राइड आलसो ,सो लेटस सेलेब्रेट ।यू आर कॉर्डियाली इनवाटेड।लेट्स मीट एट 8 पीएम ,इंडीड देअर विल भी 8 पीएम,वेन्यू,,ब्लैक डॉग हैंग आउट कैफे, ब्लैक डॉग ,,,योर फेवरेट ब्रो "मोबाईल पर ये खबर मिली ज

12

तब्दीली आयी रे

22 सितम्बर 2019
0
0
0

"तब्दीली आयी रे " (व्यंग्य)"हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है तब कहीं जाकर होता चमन में एक बिदनवार पैदा" यही शेर आजकल पाकिस्तान में बच्चा बच्चा कह रहा है क्योंकि जो ऊपर वाले ने ऐसा छप्पर फाड़ कर दिया कि पाकिस्तानियों को अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा है कि "या इलाही ये माजरा क्या है

13

बोलो मियां नियाजी

29 सितम्बर 2019
0
1
0

"बोलो मियां नियाजी " (व्यंग्य)"ख्वाबे गफलत में सोये हुए मोमिनों ऐशो इशरत बढ़ाने से क्या फायदा आँख खोलो याद रब को करो उम्र यूँ ही गंवाने का क्या फायदा "अल्लामा इक़बाल का ये शिकवा आजकल जनाब इमरान खान नियाजी साहब पर खूब सूट करता है जो यूनाइटेड नेशन के मंच से दुनिया भर के लोगों का आह्वन कर रहे हैं कि य

14

पानी रे पानी

6 अक्टूबर 2019
0
0
0

पानी रे पानी (व्यंग्य)"कोस कोस पर बानी बदले चार कोस पर पानी" बानी यानी बोली -भाषा तो हमारे यहाँ बदल ही जाती है। हिंदुस्तानी आदमी अपनी पूरी जिंदगी बोली सीखने में ही लगा देता है फिर भी उसे ये बात खटकती ही रहती है कि काश मुझे ये जुबान भी आती ।अंग्रेजी का स्थायी दुःख तो है ही ,प्रान्तीय भाषा सीख लेने स

15

नजर लागी रे

13 अक्टूबर 2019
0
0
0

नजर लागी राजा (व्यंग्य)"नजर नवाज नजारा ना बदल जाए कहीं जरा सी बात है ,मुँह से ना निकल जाए कहीं "जी हाँ बात जरा सी थी मगर बहुत सुर्खियां बटोर लायी है ।रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राफेल पर नींबू की नजर क्या उतारी ,सोशल मीडिया में एक से एक तमाशे शुरू हो गए।राजनाथ सिंह को लोगो

16

गोली नेकी की

20 अक्टूबर 2019
0
0
0

"गोली नेकी वाली (व्यंग्य)"ये दौरे सियासत भी क्या दौरे सियासत है चुप हूँ तो नदामत है ,बोलूँ तो बगावत है" आम वोटर चुनाव के वक्त ऐसे ही सोचता है कि वो क्या बोले ,सब कुछ तो बोल दिया है नेताजी ने।नेताजी जवान हैं ,स्टाइलिश कपड़े पहनते हैं ,कभी मीडिया के लाडले हुआ करते थे ,सबको कान के नीचे बजाने की घुड़की दि

17

मन का रावण

27 अक्टूबर 2019
0
0
0

मन का रावण (व्यंग्य)हा, तुम्हारी मृदुल इच्छाहाय मेरी कटु अनिच्छा था बहुत माँगा ना तुमने ,किंतु वह भी दे ना पाया ।था मैंने तुम्हे रुलाया ,,ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण को पुष्पित -पल्लवित नहीं होने दिया ।इस बार का दशहरा बहुत फीका फीका रहा।,फेसबुक के कॉलेज

18

हैप्पी बर्थ डे

3 नवम्बर 2019
0
1
0

"हैप्पी बर्थ डे ",,(व्यंग्य)"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला "ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के दिन अब लद गये।अब अल

19

मेला आन ठेला

9 नवम्बर 2019
0
1
0

मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

20

तो क्यों धन संचय

16 नवम्बर 2019
0
2
0

तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

21

अबकी बार तीन सौ पार

24 नवम्बर 2019
0
1
0

अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

22

ये कैसे हुआ

30 नवम्बर 2019
0
1
0

"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

23

पापा नहीं मानेंगे

8 दिसम्बर 2019
0
1
0

पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

24

कौआ कान ले गया

14 दिसम्बर 2019
0
0
0

"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद

25

आपको क्या तकलीफ है

21 दिसम्बर 2019
0
1
1

"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

26

डर दा मामला है

29 दिसम्बर 2019
0
0
0

डर दा मामला है (व्यंग्य)"सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है --हरिशंकर परसाई"।फिल्मों की "द फैक्ट्री "चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने

27

लोग सड़क पर

5 जनवरी 2020
0
1
0

"लोग सड़क पर " ( व्यंग्य)"नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूबबड़े बड़े बही जात हैं दूब खूब की खूब "श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर कर सिख श्रद्धालुओं पर पत्थर बाज़ी की गयी और एक कमज़र्फ ने धमकी दी कि वो ये करेगा,

28

मेरा वो मतलब नहीं था

11 जनवरी 2020
0
0
0

"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

29

कागज़ नहीं दिखाएंगे

19 जनवरी 2020
0
2
0

"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

30

खिचड़ी बनाम बिरयानी

26 जनवरी 2020
0
1
1

"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

31

अंकल कम्युनलिज़्म

10 फरवरी 2020
0
1
0

अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

32

ब्लैक स्वान इवेंट

22 फरवरी 2020
0
1
0

ब्लैक स्वान इवेंट (व्यंग्य)"तुलसी बुरा ना मानिएजौ गंवार कहि जाय जैसे घर का नरदहाभला बुरा बहि जाय "फ़िलहाल देश की आम सहनशील जनता आजकल एक दूसरे को समझाते हुये यही कहती है कि जो बहुत बोल रहे हैं ,बोलते ही जा रहे हैं ,लगातार बोलते रहने से उन्हें ये इल्हाम हो रहा है कि जब सुनें

33

कर्फ्यू

27 फरवरी 2020
0
2
0

कर्फ्यू,(लघुकथा)शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह

34

नीचे का खुदा

3 मार्च 2020
0
2
0

3- नीचे का खुदादोनों सिपाहियों की ड्यूटी थी ,वो दोनों स्नाइपर थे और वो दोनों दुश्मनों के निशाने पर भी थे ।आबिद और इकबाल।वैसे इकबाल हिन्दू था और नाम था इकबाल सिंह ,जबकि आबिद का नाम आबिद पटेल था ।इकबाल को सब इकबाल कहकर ही बुलाते थे ताकि लोगों को लगे के वो मुसलमान है क्योंकि वो शक्ल सूरत और रव

35

वर्क फ्रॉम होम

10 मार्च 2020
0
1
0

वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

36

घर बैठे बैठे

21 मार्च 2020
0
0
0

"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

37

मेहँदी लगा कर रखना

4 अप्रैल 2020
0
0
0

" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

38

पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020
0
0
0

पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

39

वादा तेरा वादा

10 मई 2020
0
1
0

“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

40

चाँद और रोटियां

14 जून 2020
0
1
0

चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

---

किताब पढ़िए