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पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020

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पंडी आन द वे (व्यंग्य)

जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना नहीं हो सकता। गालिबन इन पंडों से पुस्तक मेलों की रौनक बनती है , ये पंडे-पण्डियां अव्वल तो किसी ना किसी के निमंत्रण पर पहुंचते हैं, लेकिन अगर इन्हें कोई ना बुलाये तो भी बिन बुलाए हर जगह पहुँच जाते हैं। ऐसे ही एक व्याकुल पंडी इंदौर से इंद्रप्रस्थ पहुंची जहाँ पुस्तक मेला लगा था, बेचारी आजिज थी कि उसे किसी ने बुलाया नहीं, कोई ठिकाना नहीं सो कब तक राह तकती, लोगों ने चेताया भी कि बिन बुलाए मत जाओ दिल्ली-

ये सरा सोने की जगह नहीं बेदार रहो

हमने कर दी खबर तुमको, खबरदार रहो,

मगर पंडी अपने अधीरथी पति के साथ राजधानी के पुस्तक मेले में पहुँच गयी। पंडी को कोई ठिकाना नहीं मिल रहा था क्योंकि विगत वर्ष वो जिस जजमान के घर ठहरी थी इस वर्ष वो इनकी आमद भाँप कर पलायन कर गयी। राजधानी में रहने के लिये, पंडी अति व्याकुल थी। क्योंकि पंडीगिरी करने के बाद भी अगर किराया देकर रहना पड़े तो ये उसके हुनर का अपमान होता, वो कहीं जाती तो सम्भावित नई पण्डियों के घर ही रुकती थी कभी कभी पंडों के घर भी पहुँच जाती थी अपने पति के साथ।पंडी अस्त व्यस्त सी राजधानी के पंडों पण्डियों के घर रुककर पुस्तक मेला घूमने का जतन बनाती रही लेकिन दिल्ली अब सिर्फ दिलवालों की नहीं रही, बल्कि नए पंडों-पण्डियों की भी है जो दगे कारतूसों को महत्व नहीं देते।पिछले बरस वो जिस जजमानी में पति के साथ ठहरी थी और दान-दक्षिणा लेकर विदा हुई थी। दो साल बाद अब वो जजमानिन्न खुद पंडी बनने की राह पर है और योग, ध्यान और फिटनेस की पंडी बनने कहीं सुदूर पहाड़ों पर चली गई है जो दिल्ली लौट कर योग,ध्यान और फिटनेस की पण्डागीरी करेगी। दिल्ली में गेस्ट पंडी ने बहुत प्रयास किया कि रोहिणी,उत्तम नगर,शालीमार बाग के आस पास उसे कोई रहने का ठिकाना मिल जाये ताकि वो पुस्तक मेला भी जा कर रंग जमा सके और अपने रोजगार का सामान भी पीरागढ़ी से खरीद ले थोक के भाव की मेहंदी। गेस्ट पंडी व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी से दीक्षा लेने के पूर्व घर घर जाकर मेहंदी लगाती और बेचती थीं ,अब भी या तो किताब बेचती हैं मेहंदी के डिज़ाइन। बस बिक्री ही उनका खुदा और जो ना खरीदे वो दुश्मन। पंडी ने ईस्ट ऑफ कैलाश में भी रहने की एक जुगत भिड़ाई लेकिन अब उस पंडी को कौन बताये कि उस पाश एरिया की पण्डियां अंग्रेज़ी की पुस्तकें पढ़ती हैं और दिल्ली की गेस्ट पंडी तो ट्रेन और स्टेशन के नाम तक अंग्रेज़ी में नहीं पढ़ पाती। भले ही वो डोर टू डोर मार्केटिंग करती है,लेकिन यहाँ की सम्भावित पण्डियों ने उसे घास नहीं डाली वो दिल्ली की साहित्यिक -पण्डे-पण्डियों की संगत में रहना चाहती हैं। अंत में फरीदाबाद की एक पंडी ने उसे पनाह दी लेकिन इस शर्त पर कि इंदौर की पंडी, फरीदाबाद की पंडी को इंदौर बुलाकर साहित्यरत्न टाइप की कोई उपाधि या सम्मान देगी। सौदा पांच हजार में पटा कि फरीदाबाद की पंडी , इंदौर की पंडी और उनके पति को घर में रहने भी देगी और पाँच हजार रुपये भी देगी बस उसे साहित्य रत्न की उपाधि मिल जाये किसी तरह क्योंकि अभी तक उसके साहित्य की खिल्ली ही उड़ाई गई थी,। गेस्ट पंडी के पति को रहने का ठिकाना मिला तो इस सर्दी में तो उनकी जान में जान आई। बड़े बेबस थे गेस्ट पंडी के पति, क्या करें बेचारे। उधर दोनों पण्डियां इस म्यूच्यूअल रिश्ते पर निहाल थीं ,वो दोनों सुर में सुर मिलाकर गाने लगीं –

नारि विवस नर सकल गुंसाई

नाचहिं नर मर्कट की नाई

जित्थे देख्या तवा परात

उत्थे नच्या सारी रात

फरीदाबाद की पंडी के पति जो एक भद्र पुरुष थे उन्होंने गेस्ट पंडी से पूछा, “आपके दिल्ली आने की वजह क्या है, बुक स्टाल तो हर जगह है , किताबें ऑनलाइन भी मिल जाती हैं, फ़िर सिर्फ किताब खरीदने के लिये दिल्ली आने की क्या तुक थी?”

गेस्ट पंडी ने गर्व से कहा, “जी सिर्फ किताब खरीदने -बेचने की बात नहीं है, वो तो मैं इंदौर में अपनी किटी पार्टियों में भी बेच लेती हूँ। यहाँ तो मैं एक विधा के उद्धार हेतु आयी हूँ जो यमुना में डूब गई थी उसे मैं पाताल से निकालकर पुनः गौरान्वित हो जाऊंगी। वो विधा है

लघुकथा”

भद्र पुरुष ने इंदौरी के पति को देखते हुए पूछा

, “लघुकथा,वो वो क्या होती है?”

गेस्ट पंडी ने होस्ट पंडी की तरफ पहले अचरज फिर क्रोध से देखते हुए अंततः उसके पति से कहा

, “मेरा पति अगर लघुकथा के बारे में ना जानता तो उसकी ऐसी की तैसी कर देती मैं। जो लघुकथा ना जाने उसका जीवन व्यर्थ है फ़िर भी सुनिये जब पचीस लोग बतकुच्चन करके सात -आठ लाइन की रचना निकालें तो उसे लघुकथा कहते हैं। ये मोह माया से मुक्त करती है , मुझे देखिये कुछ वर्ष पहले पाई पाई को मोहताज थी आज लघुकथा की बदौलत मेरे पास बैंक में लाकर तक हो गया है और पंडीगिरी का इतना बड़ा नेटवर्क है कि पूछिये मत”?

भद्र पुरुष पुलक उठे कि उनकी पत्नी ने सही व्यापारिक भागीदार चुना है।

गेस्ट पंडी भी मुस्कराई,वो जानती थी कि दिल्ली पण्डे पण्डियों से भरी पड़ी है और दिल्ली के बाहर का हर साहित्यिक पंडा ये समझता है कि वो दिल्ली में होता तो पुस्तक मेले में चार चांद लग जाता भले ही वो अपनी गली में अमावस के चाँद की मानिंद गुम रहती हो।

गेस्ट पंडी ने अपने पति के साथ पुस्तक मेले में प्रवेश किया एक बहुत बड़े झोले के साथ। वैसे तो वो ग्राहक दिखती थीं लेकिन मौका मिलते ही झोले से निकालकर अपनी पुस्तक भी बेच लेती, वो भी बिना स्टाल के।जबकि पुस्तक मेले में कई दुकानदार स्टाल का शुल्क चुकाकर मख्खी मार रहे थे और गेस्ट पंडी चलते चलते किताब भी बेच लेती और मेहंदी के पैकेट भी। गेस्ट पंडी एक कस्टमर द्वारा किताब खरीदने से इनकार करने के बाद उसे मेहंदी खरीदने के लिये कन्विन्स कर रही थी एक बलखाती हुई रमणी नागिन वाली बिंदी लगाए हुए पहुंची और इतराते हुए गेस्ट पंडी से कहा

, “मैंम,व्हेर इज योर स्टाल? वी डु ऑफर ऑन आल टाइप ऑफ ब्यूटी प्रॉडक्ट्स एंड सर्विसेज। व्हाट डू यू वांट?”

गेस्ट पंडी अंग्रेज़ी सुनकर हक्का-बक्का हो गई। रमणी समझ गयी कि इसे अंग्रेज़ी नहीं आती। वो गेस्ट पंडी का मजाक उड़ाते हुए बोली-

, “हम सिर्फ ब्यूटी की बुक्स सेल नहीं करते बल्कि पुस्तक मेले में लोगों को सजाते -सँवारते हैं। पूरी गारंटी है लोकार्पण से पहले मेकअप नहीं उतरेगा और सेल्फी में चेहरे के दाग धब्बे नहीं दिखेंगे। इवन जेंट्स भी हमारी सर्विसेज ले रहे हैं। बाई द वे आप क्या बेचते हो”?

गेस्ट पंडी हकलाते हुए बोली,

“मेहंदी, नहीं, नहीं किताब, साझा संकलन”।

रमणी ने नागिन की तरह जीभ लपलपाकर कहा-

“ब्लडी हेल, हु केयर्स, बट लिसेन, अगर तुम्हारी किताब ना बिक रही हो तो हमसे मेक अप करवा लो हम शुभ हैं”।

गेस्ट पंडी ने कहा

, “मगर पहले तुम हमसे मेहंदी खरीद लो तुम्हारी ब्यूटी वाला काम चल जाएगा, हम भी शुभ हैं”।

फिर गेस्ट पंडी ने होस्ट पंडी से बिक्री के गुर सीखने-सिखाने शुरू कर दिए, तब तक हांफते हुए गेस्ट पंडी के पति पहुंचे और छूटते ही बोले-

“मैंने मेले का पूरा चक्कर लगाकर हर दुकान से एक कैटेलॉग, एक ब्रोशर ले लिया है। इसे बाहर बेचकर हमारा पुस्तक मेले का टिकट-भाड़ा और फरीदाबाद तक का किराया निकल जायेगा और बाहर इसे छोले वाले को देंगे तो नाश्ता भी फ्री मिल जाएगा।”

ये सुनकर होस्ट पंडी हँस पड़ी और गेस्ट पंडी की शक्ल अब देखने लायक थी। वो पैर पटकते हुए वहाँ से चल दीं, नेपथ्य में कहीं अमिताभ का गाना बज रहा था, “मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है”?

समाप्त

कृते -दिलीप कुमार

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मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

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अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

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8 दिसम्बर 2019
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पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

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14 दिसम्बर 2019
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21 दिसम्बर 2019
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"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

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29 दिसम्बर 2019
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5 जनवरी 2020
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मेरा वो मतलब नहीं था

11 जनवरी 2020
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"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

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कागज़ नहीं दिखाएंगे

19 जनवरी 2020
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"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

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खिचड़ी बनाम बिरयानी

26 जनवरी 2020
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"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

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अंकल कम्युनलिज़्म

10 फरवरी 2020
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अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

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ब्लैक स्वान इवेंट

22 फरवरी 2020
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ब्लैक स्वान इवेंट (व्यंग्य)"तुलसी बुरा ना मानिएजौ गंवार कहि जाय जैसे घर का नरदहाभला बुरा बहि जाय "फ़िलहाल देश की आम सहनशील जनता आजकल एक दूसरे को समझाते हुये यही कहती है कि जो बहुत बोल रहे हैं ,बोलते ही जा रहे हैं ,लगातार बोलते रहने से उन्हें ये इल्हाम हो रहा है कि जब सुनें

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कर्फ्यू

27 फरवरी 2020
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कर्फ्यू,(लघुकथा)शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह

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3 मार्च 2020
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3- नीचे का खुदादोनों सिपाहियों की ड्यूटी थी ,वो दोनों स्नाइपर थे और वो दोनों दुश्मनों के निशाने पर भी थे ।आबिद और इकबाल।वैसे इकबाल हिन्दू था और नाम था इकबाल सिंह ,जबकि आबिद का नाम आबिद पटेल था ।इकबाल को सब इकबाल कहकर ही बुलाते थे ताकि लोगों को लगे के वो मुसलमान है क्योंकि वो शक्ल सूरत और रव

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वर्क फ्रॉम होम

10 मार्च 2020
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वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

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घर बैठे बैठे

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"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

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मेहँदी लगा कर रखना

4 अप्रैल 2020
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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020
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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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वादा तेरा वादा

10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

14 जून 2020
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चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

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