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तो क्यों धन संचय

16 नवम्बर 2019

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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)


हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,

"पूत कपूत तो क्यों धन संचय

पूत सपूत तो क्यों धन संचय"

जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्मे अमिताभ बच्चन अब धन संचय का कार्य रोक देंगे और प्रयागराज के स्वर्णिम इतिहास का अनुसरण करते हुए अपनी समस्त संचित निधियां दान पुण्य में लगा देंगे महाराज हर्ष की भांति और सिर्फ एक उत्तरीय अपने नश्वर शरीर पर रखेंगे ,इस फोटो की अपेक्षा की ही जा रही थी कि पता लगा क़ि ये फोटोसेशन किसी अगली फिल्म के प्रचार का हिस्सा है।

लेकिन कुछ अल्प बुद्धि लोग सवाल उठा रहे हैं कि साबुन,मंजन,तेल,अगरबत्ती बेच रहे अमिताभ बच्चन किसके लिये इस बुढ़ापे में धन संचय के इतने उपाय और पाला बदल कर रहे हैं ,पिछली सर्दियों में वो सेहत का राज डाबर च्यवनप्राश बता रहे थे ,और इस सर्दी में अपनी सेहत का राज झंडू का च्यवनप्राश बता रहे हैं टीवी पर।मगर वास्तव में शाम को फेसबुक पर लिख कर बताते हैं कि डॉक्टर ने बताया है कि शरीर की हालत बेहद खराब है ,आराम करो वरना शरीर दगा दे सकता है ।उधर बेटे ने भी कहा है कि वो माँ ,दीदी और खुद मिलकर घर को संभाल लेंगे ,,दरअसल उनका आशय शूटिंग के शेडयूल से है ।लेकिन अमिताभ बच्चन धन संचय के अपने अभियान पर जुटे ही हैं । एक उस्ताद शायर ने फरमाया है

"उम्र तो सारी कटी इश्के बुता में मोमिन

आखिरी वक्त में क्या खाक मुसलमां होंगे "


वैसे पूत के लिये धन संचय का अभियान चंहुँ ओर जारी ही है ,जो लोग समय की धूल फांक कर बड़े हुए हैं वो चाहते हैं कि चांदी के चिम्मच वाले उनके पूत को जनता वैसे ही स्वीकृति दे दे जैसे उनकी है ,लेकिन ये धृतराष्ट्र सरीखा पुत्र प्रेम लोकतंत्र में दूर तक कारगर नहीं होता ,ये पुत्र प्रेम धन का संचय भी कराता है और उसका क्षय भी कराता है ।धन सिर्फ रुपया ,पैसा ही नहीं होता बल्कि नाम और विचारधारा भी एक पूंजी होती है जिसको पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजा जाता है ।लेकिन पद और सत्ता के लिये सबसे पहले विचारधारा की बलिवेदी पर पूंजी का संचय स्वाहा होता है जिसमें सन्तान मोह दहाड़ते हुए शेर को सर्कस का पालतू शेर बना देती है ,जंगल का शेर अपने भोजन का बंदोबस्त खुद करता है तब मदमस्त चलता है ,बेपरवाह लेकिन सर्कस का शेर जानता है इस बाड़े में भोजन देने वाला आदमी ही मेरा तारनहार है सो वो उस रिंगमास्टर के कहेनुसार ही "नाच जमूरे नाच "की तर्ज पर सोते जागते बर्ताव करता है । तारीख शाहिद है कि पुत्र मोह के इस धन संचय ने अतीत में भी इस महान सभ्यता को ऐसे घाव दिए हैं जिनसे हम अभी तक उबर नहीं सके हैं।गन्ने और सरकंडे का फर्क ना जानने वालों ने किसान आंदालनों को ऐसे पाताल में पहुंचाया है कि पूछिये मत।

इस पुत्र मोह की धन संचय वाली सोच ने वो स्यापा किया साहब ,,कि

केशव कथा कहि ना जाए।

जमूरे की नाच बड़ी दूर तक है अब देखिये ना दिल्ली के छात्रों का प्रदर्शन उनके संवैधानिक अधिकार हैं और बनारस के छात्रों का प्रदर्शन उनकी धर्मान्धता है ,कुछ ऐसा ही दिखा रहा है मीडिया का बहुत बड़ा हिस्सा। किसी ने जानने की जहमत नहीं उठायी कि धर्म विज्ञानं नाम की एक शाखा होती है तालीम की जो भाषा की तालीम से थोड़ी अलहदा होती है ।

बनारस के छात्र गंगा नहाने जाएँ तो वैचारिक पिछड़ापन माना जायेगा ,लेकिन दिल्ली के छात्र पार्थसारथी चट्टानों पर रात भर ज्ञान प्राप्त हेतु मांग कर रहे हैं तो क्या गिला ,?,सही बात है भई,, बनारस के गंगा तट पर गंगा आरती हो तो पुरातन पिछड़ापन लेकिन दिल्ली के किसी शिक्षा संस्थान में गंगा ढाबे पर "शक -सुबहा "करना लिखा और माना जाए तो वो ब्रह्मवाक्य । वैसे ये भी हैरानी की ही बात है कि जहाँ धर्म को अफीम समझा जाता हो वहाँ गंगा,पार्थसारथी,विवेकानंद जैसे नाम चल रहे हैं ये भी बहुत बड़ी बात है ।जहाँ सीताराम नाम के विद्यार्थी मुफ्त में पढ़ लिख तो सकते हैं लेकिन खबरदार अगर किसी ने उनके नाम में राम या सीता खोजने की या उनसे जोड़ने की कोशिश की तो ये उचित नहीं होगा ।

"ये क्या जगह है दोस्तों "जहाँ अफीम का नशा करके,गांजे की चिलम फूँकते हुए धर्म को अफीम कहा जाता है ।आंटी की उम्र वाली एक छात्रा ने अपने से कम आयु एक टीवी चैनल की पत्रकार को "आंटी"कहकर खिल्ली उड़ाई और फिर कहा कि "ए हिंदी वाली पत्रकार ,तुम्हारा काम हमारे लिये मजा लेने की चीज है ",।किसी के शब्दों पर मीमांसा करने वाले ये लोकतंत्र के उच्च शिक्षा प्राप्त प्रहरी किसी महिला रिपोर्टर से मार पीट और धक्का मुक्की से तनिक भी परहेज नहीं करते।एक शिक्षा संस्थान में उच्च शिक्षा की छात्राएं अपनी शिक्षिका के कपड़े तक फाड़ने को आमादा हो जाती हैं मानो पढ़ने वालों के ही लोकत्रांतिक अधिकार पता हैं ,पढ़ाने वालों को थोड़े ही ना हैं। कविवर नीरज के शब्दों में

"चील कौवों की अदालत में है कोयल

देखिये वक्त भला क्या सजा देता है "।

कुछ तो होगा उस धुंए में जो आग का बायस बना ।आखिर क्यों जो सब कुछ देश की आँखों में खटकता है ,दिल्ली में कुछ लोगों का दिल उसी पर धड़कता है ।सस्ता भोजन,छत इंसान को चाकर बना के रख देती है और इसको छूटने की जब नौबत आती है तो विचारधारा का मुलम्मा चढ़ा लिया जाता है ,ये सहूलियत छोड़ना आसान नहीं है ,सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के शब्दों में

"दिल्ली हमका चाकर कीन्हा "

सो दिल्ली की चाकरी और अमेरिका की नौकरी का मोह जितनी जल्दी छूट जाए उतना ही बेहतर।इस संघर्ष का जन से कोई जुड़ाव नहीं ,जो स्व तक सीमित हो ,देश का आम छात्र तुमसे कहता है

"मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ

तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है

कि जो तुम्हारे लिये विष है

मेरे लिये अन्न है "

हाँ तुम जिसे पीड़ा का सबब बता रहे हो ,देश के आम छात्र के लिये वो परिस्थितियां वरदान सरीखी हो सकती हैं अगर सबको मिले तो ,,।लेकिन वे मुक्तिबोध की विचारधारा को अपनी सुविधानुसार ही प्रयोग करते हैं।उन्हें गढ़ और मठ तोड़ने हैं मगर अपने गढ़ और मठ को बचाये रखते हुए।

और इस हलाहल में ये जो विवेकानन्द की प्रतिमा क्षतिग्रस्त हुई है ,ये चोट वास्तव में भारत की आत्मा पर लगी है ,,विवेकानंद तो भारतीयता के पर्याय हैं ये बात कभी गांधी और जवाहर लाल को पढ़ते तो जान पाते । और रहा सवाल विचारों के संघर्ष का , और तुम्हारी ऐसी तालीम का जिसकी गूढ़ता तुम्हारे सिवा कोई नहीं समझता ।उस पर तुर्रा ये कि तुममें से कुछ सब कुछ खारिज करने पर आमादा हैं ,तो सुन लो ,


"हम उन किताबों को काबिल ए जब्ती समझते हैं

जिन्हें पढ़कर लड़के बाप को खब्ती समझते हैं "

समाप्त ,☺️😢,,,,कृते,,,दिलीप कुमार

"

दिलीप कुमार की अन्य किताबें

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जूतों के अच्छे दिन

29 नवम्बर 2018
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ऊँची नाक का सवाल (व्यंग्य)

24 जुलाई 2019
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डाल डाल की दाल (व्यंग्य)

28 जुलाई 2019
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"दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ "बहुत बहुत वर्षों से ये वाक्य दोहरा कर सो जाने वाले भारतीयों का ये कहना अब नयी और मध्य वय की पीढ़ी को रास नहीं आ रहा है।दाल की वैसे डाल नहीं होती लेकिन ना जाने क्यों फीकी और भाग्य से प्राप्त चीजों की तुलना लोग दाल से ही करते हैं और अप्रा

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अदीब@मेला

30 जुलाई 2019
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पुस्तक मेले में सब हमारी किताबें लपक रहदिल्ली में हर बार की भाँति पुस्तक मेला लगा, दिल्ली देश का दिल है ,अवार्ड वापसी वाले लेखक बहुत परेशान हैं कि जितनी ख्याति उनको अवार्ड लौटाकर नहीं मिली थी उससे ज्यादा प्रचार-प्रसार तो इस मेले में लेखकों का हो रहा है। एक अनुमान के तौर पर सिक्किम की आबादी के जितनी

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हम हिन्दीवाले

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हम हिन्दीवाले (व्यंग्य )अपने कुनबे में हमने ही ये नई विधा इजाद की है ।एकदम आमिर खान की मानिंद "परफेक्शनिस्ट",नहीं,नहीं भाई कम्युनिस्ट मत समझिये।भई कम्युनिस्ट से जब जनता का वोट और सहयोग कम होता जा रहा है तब हम जैसा जनता के सरोकारों से जुड़ा साहित्यकार कैसे उनसे आसक्ति रख सकता है ।एक उस्ताद शायर फरमा ग

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अब आगे क्या

11 अगस्त 2019
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"अब आगे क्या "(व्यंग्य) तड़ाक,तड़ाक,तड़ाक ,ये थप्पड़ नहीं एक आवाज है जो कहीं कहीं सुनायी पड़ रहा है। जैैसे हवा भी होती है पर दिखती नहीं है।पिछले हफ्ते देश में पहले तो तीन तलाक पर ये तड़ाक का साया पड़ा और अब जम्मू कश्मीर में ,370,35-A, और स्पेशल स्टेटस

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तब क्यों नहीं

18 अगस्त 2019
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तब क्यों नहीं ,(व्यंग्य)"ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थीपाँव जब जलती हुई शाखों से उतारे हमने इन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबर उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने "ये सुनाते हुए उस कश्मीरी विस्थापित के आँसूं निकल पड़े जो अपने घर वापसी के लिये दिल्ली से जम्मू की ट्

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लोहा टू लोहा

25 अगस्त 2019
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लोहा टू लोहा (व्यंग्य )आजकल देश में मोटा भाई कहने का चलन बहुत बढ़ गया है।माना जाता है कि बंधुत्व और दोस्ती का ये रिश्ता लोहे की मानिंद सॉलिड है। पहले ये शब्द भैया कहा जाता था ,लेकिन जब से अमर सिंह ने अमिताभ बच्च्न को भैया कहने के बाद हुए अपने हादसे का दर्द बयान किया तब से लोग भैया के बजाय मोटा भाई ही

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नाट आउट @हंड्रेड

8 सितम्बर 2019
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हैप्पी हिंदी डे

15 सितम्बर 2019
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"हैप्पी हिन्दी डे " (व्यंग्य )हे कूल डूड ऑफ़ हिंदी ,टुडे इज द बर्थडे ऑफ़ हिंदी ,ईट्स आवर मदर टँग एन प्राइड आलसो ,सो लेटस सेलेब्रेट ।यू आर कॉर्डियाली इनवाटेड।लेट्स मीट एट 8 पीएम ,इंडीड देअर विल भी 8 पीएम,वेन्यू,,ब्लैक डॉग हैंग आउट कैफे, ब्लैक डॉग ,,,योर फेवरेट ब्रो "मोबाईल पर ये खबर मिली ज

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तब्दीली आयी रे

22 सितम्बर 2019
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"तब्दीली आयी रे " (व्यंग्य)"हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है तब कहीं जाकर होता चमन में एक बिदनवार पैदा" यही शेर आजकल पाकिस्तान में बच्चा बच्चा कह रहा है क्योंकि जो ऊपर वाले ने ऐसा छप्पर फाड़ कर दिया कि पाकिस्तानियों को अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा है कि "या इलाही ये माजरा क्या है

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बोलो मियां नियाजी

29 सितम्बर 2019
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"बोलो मियां नियाजी " (व्यंग्य)"ख्वाबे गफलत में सोये हुए मोमिनों ऐशो इशरत बढ़ाने से क्या फायदा आँख खोलो याद रब को करो उम्र यूँ ही गंवाने का क्या फायदा "अल्लामा इक़बाल का ये शिकवा आजकल जनाब इमरान खान नियाजी साहब पर खूब सूट करता है जो यूनाइटेड नेशन के मंच से दुनिया भर के लोगों का आह्वन कर रहे हैं कि य

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पानी रे पानी

6 अक्टूबर 2019
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पानी रे पानी (व्यंग्य)"कोस कोस पर बानी बदले चार कोस पर पानी" बानी यानी बोली -भाषा तो हमारे यहाँ बदल ही जाती है। हिंदुस्तानी आदमी अपनी पूरी जिंदगी बोली सीखने में ही लगा देता है फिर भी उसे ये बात खटकती ही रहती है कि काश मुझे ये जुबान भी आती ।अंग्रेजी का स्थायी दुःख तो है ही ,प्रान्तीय भाषा सीख लेने स

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13 अक्टूबर 2019
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नजर लागी राजा (व्यंग्य)"नजर नवाज नजारा ना बदल जाए कहीं जरा सी बात है ,मुँह से ना निकल जाए कहीं "जी हाँ बात जरा सी थी मगर बहुत सुर्खियां बटोर लायी है ।रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राफेल पर नींबू की नजर क्या उतारी ,सोशल मीडिया में एक से एक तमाशे शुरू हो गए।राजनाथ सिंह को लोगो

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गोली नेकी की

20 अक्टूबर 2019
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"गोली नेकी वाली (व्यंग्य)"ये दौरे सियासत भी क्या दौरे सियासत है चुप हूँ तो नदामत है ,बोलूँ तो बगावत है" आम वोटर चुनाव के वक्त ऐसे ही सोचता है कि वो क्या बोले ,सब कुछ तो बोल दिया है नेताजी ने।नेताजी जवान हैं ,स्टाइलिश कपड़े पहनते हैं ,कभी मीडिया के लाडले हुआ करते थे ,सबको कान के नीचे बजाने की घुड़की दि

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मन का रावण

27 अक्टूबर 2019
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मन का रावण (व्यंग्य)हा, तुम्हारी मृदुल इच्छाहाय मेरी कटु अनिच्छा था बहुत माँगा ना तुमने ,किंतु वह भी दे ना पाया ।था मैंने तुम्हे रुलाया ,,ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण को पुष्पित -पल्लवित नहीं होने दिया ।इस बार का दशहरा बहुत फीका फीका रहा।,फेसबुक के कॉलेज

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हैप्पी बर्थ डे

3 नवम्बर 2019
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"हैप्पी बर्थ डे ",,(व्यंग्य)"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला "ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के दिन अब लद गये।अब अल

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मेला आन ठेला

9 नवम्बर 2019
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मेला ऑन ठेला ,(व्यंग्य)"सारी बीच नारी है ,या नारी बीच सारीसारी की ही नारी है,या नारी ही की सारी"जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का है ।मेले में ठेला है ,ये ठेले पर मेला है ।बकौल शायर "नजर नवाज नजार

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तो क्यों धन संचय

16 नवम्बर 2019
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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

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अबकी बार तीन सौ पार

24 नवम्बर 2019
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अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

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ये कैसे हुआ

30 नवम्बर 2019
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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

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पापा नहीं मानेंगे

8 दिसम्बर 2019
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पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

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कौआ कान ले गया

14 दिसम्बर 2019
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"कौआ कान ले गया "(व्यंग्य)"हुजूर ,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदनमेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए ,गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए"इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर धर्म को अफीम मानने वाले लोगों ने लोगों को राजधर्म याद

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आपको क्या तकलीफ है

21 दिसम्बर 2019
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"आपको क्या तकलीफ है " (व्यंग्य)रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला ।रिपोर्टर ,बच्चे से-"बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है"?बच्चा हँसते हुये-"अच्छा है,अंकल इस ठण्ड में सुबह सुबह उठकर स्कूल नहीं जाना पड़ता

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डर दा मामला है

29 दिसम्बर 2019
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डर दा मामला है (व्यंग्य)"सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है ,हमें एक उम्र से मालूम है --हरिशंकर परसाई"।फिल्मों की "द फैक्ट्री "चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर फेम शाहरुख़ खान को तो नहीं ला पाये ,लेकिन डर को लेकर उन्होंने

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लोग सड़क पर

5 जनवरी 2020
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"लोग सड़क पर " ( व्यंग्य)"नानक नन्हे बने रहो, जैसे नन्ही दूबबड़े बड़े बही जात हैं दूब खूब की खूब "श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर कर सिख श्रद्धालुओं पर पत्थर बाज़ी की गयी और एक कमज़र्फ ने धमकी दी कि वो ये करेगा,

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मेरा वो मतलब नहीं था

11 जनवरी 2020
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"मेरा वो मतलब नहीं था " (व्यंग्य)"जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बतायवाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय"देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में तो वे देश को आमूलचूल बदल ही द

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कागज़ नहीं दिखाएंगे

19 जनवरी 2020
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"कागज़ नहीं दिखाएंगे "(व्यंग्य)"युग के युवा,मत देख दाएंऔर बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलेंन अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रणसामने तेरे पड़ा, युग का जुआ "युग का जुआ युवाओं को अपने कंधों पर लेने की हुंकार देने वाले कविवर हरिवंश राय बच्चन अपने अध्यापन के दिनों में

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खिचड़ी बनाम बिरयानी

26 जनवरी 2020
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"खिचड़ी बनाम बिरयानी "(व्यंग्य)"मालिन का है दोष नहीं ,ये दोष है सौदागर का जो भाव पूछता गजरे का और देता दाम महावर का" ऐसा ही कुछ आजकल के धरना प्रदर्शनों का है जो किसी अन्य वजहों की वजह चर्चा में आ जाते हैं बजाय उसके जो वजह उन्होंने चुनी है ।धरना ,वैचारिक मतभेदों को लेकर है

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अंकल कम्युनलिज़्म

10 फरवरी 2020
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अंकल कम्यूनलिज्म (व्यंग्य)"वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगेअजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे"पोस्ट ट्रुथ के बाद ये फिलहॉल एक नया फैंसी शब्द है जो अपने को डिफेंड करते हुए बाकी सभी के ज्ञान को सतही और छिछला साबित करता है

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ब्लैक स्वान इवेंट

22 फरवरी 2020
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ब्लैक स्वान इवेंट (व्यंग्य)"तुलसी बुरा ना मानिएजौ गंवार कहि जाय जैसे घर का नरदहाभला बुरा बहि जाय "फ़िलहाल देश की आम सहनशील जनता आजकल एक दूसरे को समझाते हुये यही कहती है कि जो बहुत बोल रहे हैं ,बोलते ही जा रहे हैं ,लगातार बोलते रहने से उन्हें ये इल्हाम हो रहा है कि जब सुनें

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कर्फ्यू

27 फरवरी 2020
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कर्फ्यू,(लघुकथा)शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह

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नीचे का खुदा

3 मार्च 2020
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3- नीचे का खुदादोनों सिपाहियों की ड्यूटी थी ,वो दोनों स्नाइपर थे और वो दोनों दुश्मनों के निशाने पर भी थे ।आबिद और इकबाल।वैसे इकबाल हिन्दू था और नाम था इकबाल सिंह ,जबकि आबिद का नाम आबिद पटेल था ।इकबाल को सब इकबाल कहकर ही बुलाते थे ताकि लोगों को लगे के वो मुसलमान है क्योंकि वो शक्ल सूरत और रव

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वर्क फ्रॉम होम

10 मार्च 2020
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वर्क फ्रॉम होम ,(व्यंग्य)आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की नौकरी पर एक दिन वेतन पाने वाला फार्मूला अब आदिम लगन

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घर बैठे बैठे

21 मार्च 2020
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"घर बैठे -बैठे"(व्यंग्य)"पुल बोये से शौक से उग आयी दीवारकैसी ये जलवायु है हे मेरे करतार"दुनिया को जीत लेने की रफ्तार में ,चीन ने ये क्या कर डाला ,जलवायु ने सरहद की बंदिशों को धता बताते हुए सबको घुटनों पर ला दिया है ।इस स्वास्थ्य के खतरे ने भस्मासुर की भांति सबको लपेटा और

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मेहँदी लगा कर रखना

4 अप्रैल 2020
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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे

25 अप्रैल 2020
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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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वादा तेरा वादा

10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

14 जून 2020
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चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

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