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ये कैसे हुआ

30 नवम्बर 2019

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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)

फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की

विमल देखभाल करती है

एक सर्कस लगा है भारत में

जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।

उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जनार्दन बनाती है ,लेकिन ये जनता जनार्दन एक हद तक ही उम्मीद पाल सकती है ,क्योंकि आगे की इबारत तो वही लोग लिखेंगे जो लिखते आये हैं।आप करते रहिये लोकतंत्र में लोक के मन की बात।कहते हैं कि लोकतंत्र ने उस विचारधारा को समाप्त किया जिसमें सत्ता की प्राप्ति की सर्वोच्चता ही उचित मानी जाती थी। जिस विचारधारा में औरंगज़ेब कहते थे कि "किंगशिप नोज ,नो किनशिप" (सत्ता कोई रिश्तेदारी नहीं जानती )।लेकिन लोकतंत्र में जनता में निहित शक्ति की संजीवनी लेकर भी लोग यही कर देते हैं ।

कौन होते हैं ये लोग ,जो सिर्फ बोलते हैं कि हम ये करेंगे,वो करेंगे मगर कभी इस बात का जवाब नहीं देते कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ।सबके सब दुबले हुए जा रहे हैं किसानों की तरक्की के लिये ।जिसे देखिये वो कह रहा है कि किसानों को ये देंगे,किसानों को वो देंगे"।क्या वाकई यही लोग सब कुछ देंगे जो उस अन्नदाता को जो इनकी क्षुधा भरता है ।वैसे जो देने के बात कर रहे हैं उनके पास है क्या जुमलों,वादों के सिवा,कुछ बरस पहले तक तो कुछ भी नहीं था उनके पास।किसान हैरान हैं कि जो कुछ बरस पहले उनके बीच का नेता था ,किसान ,मजदूर था ,अक्सर जेल जाता था ,अब बड़ा किसान होने की वजह से शायद जेल जाता है ।बेचारों के पास अचानक इतनी बेतहाशा संपत्ति आ जाती है कि साबित -साबित करते करते जेल हो जाती है।मुनव्वर राना की तरह हर किसान भी हैरान है -

"रातों रात करोड़पति कैसे बन बैठे

मेरे साथ ही तो थे सब भीख मांगने वाले "

इस महंगाई का गणित किसी को समझ में नहीं आता और लोगों के दावे भी ।कृषि उत्पादों की तरह बालों की महंगाई का गणित बड़े बड़ों को उलझन में डाल देता है।बुजुर्ग कहते थे कि कलियुग में

"साल(साला),बाल और ससुराल का बहुत महत्व होगा"।वाकई इस युग में बाल वाले ही भाग्य वाले हैं।बस इसको बचाने के उपाय बड़े विकट हैं। जैसे कि कुछ बरस पहले रिज़र्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर वाई बी रेड्डी साहब ने एक बार कहा था कि जब उनका नाई उनके सर के बालों को पैंतालीस मिनट तक काटता था तब बीस रुपये लेता था और अब जब उनका नाई उनके बाल पांच मिनट में काट देता है तब डेढ़ सौ रूपये लेता है ।उन्होंने कहा था कि महंगाई के इस गणित से वो हैरान हैं।ऐसा ही एक सफेद मूसली विशेषज्ञ हकीम साहब जवानी में अपने बालों से हाथ धो बैठे,सुना है आजकल नौजवान लड़के लड़कियों के बालों का शर्तिया इलाज कर रहे हैं,ठेका भी लेते हैं कि विवाह के पहले बाल उगा देंगे वो भी असली वाले ,लोग उनसे सवाल करते हैं कि आप अपनी फसल क्यों नहीं बचा पाये तो वो बताते हैं कि दूसरों के बालों के मर्ज ढूंढते ढूंढते उनके बालों पर उनका ध्यान नहीं रहा।ऐसे ही जैसे किसानों के हित की चिंता करते करते कुछ लोगों की जमीनें इतनी ज्यादा बढ़ गईं कि सरकार उनको कारागार में ले जाकर पूछती है कि बताओ कृषि उत्पादों से तुम्हारी आमदनी इतनी कैसे बढ़ी ,हम वो नुस्खा देश के किसानों को बताएंगे ताकि देश के किसानों की आर्थिक स्थिति सुधर सके।सुना है बड़के नेता जी ने कहा है कि "लोकतंत्र बचाने के लिये उनके जैसे बड़े नेता का जेल से बाहर आना जरूरी है ,और खेती -किसानी से उनकी बढ़ी हुई आमदनी के बारे में उत्तर देना जनहित में ठीक नहीं है "

"रहनुमाओं की अदाओं पर फ़िदा है दुनिया

इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों "

किसानों की समस्याओं पर सबके अपने अपने तर्क हैं आज किसानों की समस्याओं पर बेहद हलकान और प्रायः मौन ही रहने वाले एक नेता जी जब सरकार में थे तब उनसे किसानों की आर्थिक स्थिति की बदहाली के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि किसान अब अंडा ,मीट ,मुर्गा ज्यादा खरीद कर खा रहे हैं इसलिये पैसा नहीं बचता उनके पास।एक दूसरे कृषि के जिम्मेदार के बोल तो और भी दिलचस्प थे जिन्होंने बड़ी ही जिम्मेदारी से कहा था कि कर्ज में डूबे हुए किसानों की ख़ुदकुशी के जिम्मेदार उनकी बदहाल आर्थिक स्थिति नहीं बल्कि प्रेम संबंधों में विफलता आदि है ।क्या कहने ,एक वाम पंथी मित्र ने हवाना का सिगार सुलगते हुए इस बात की तुलना फ्रांस की राजकुमारी के उस बयान से की थी जिसने भुखमरी से हो रहे प्रदर्शनों पर रोटी ना मिलने बिलख रहे लोगों को सलाह दी थी कि

"अगर तुम्हारे पास रोटी नहीं है,तो चावल खा लो "।

वैसे आराम कुर्सी में धंसे हुए मित्र ने हंसिया और हथौड़ी का चित्र मुझे दिखाया एप्पल के फोन में ,जिसमे हनुमान जी की मूर्ति लगी थी और उनके व्हाट्सअप स्टेटस पर लिखा था "धर्म अफीम है "।सुनाते है उनकी क्रांति के लिये उपयुक्त समय है ये वो आज़ाद मैदान मुम्बई जा रहे हैं किसी आज़ादी को सेलिब्रेट करने और कोई आज़ादी माँगने।उन्होंने गर्व से बताया कि आज़ादी मार्च का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति सिद्धि विनायक मंदिर में माथा टेक कर तब आएंगे।

वैसे अन्नदाता शब्द पर किसानों को गर्व हो सकता है भले ही खेती किसानी का गणित उनकी समझ से परे हो।क्योंकि नासिक की लासगाँव मंडी में प्याज बेचने आया युवा किसान फूट फूटकर रोते हुए कहता है कि प्याज की बिक्री से उसका प्याज को मंडी तक लाने का भाड़ा तक नहीं निकला और अब वो अपना जीवन यापन कैसे करेगा ।उस किसान को लगता है सारा सुख तो नौकरी पेशा लोगों के हाथ है ,उसे शायद ये नहीं पता है कि आम नौकरी पेशा अब प्याज को खरीद पाने की हैसियत में नहीं है।

"ना हो कमीज तो पाँवों से पेट ढक लेंगे

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिये "।


इतना सस्ता प्याज चलते चलते इतना महंगा होने की गुत्थी कोई नहीं सुलझा पा रहा है ,,,ये कैसे हुआ, ।इसी बीच एक खबर आयी कि कि मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले से एक ट्रक प्याज बुक हुआ गोरखपुर के लिये,रास्ते में गायब।काफी तफ्तीश के बाद के बाद ट्रक बरामद हुआ तो प्याज गायब ।ड्राइवर ने बताया कि लुटेरों ने प्याज लूट लिया और ट्रक छोड़ दिया यानी इतनी कीमती चीज है प्याज।एक सोशलाइट ने ये खबर सुनी तो मुंह बिचकाकर कहा कि ये किसान इतनी कीमती चीज पैदा करते हैं तो ज्यादा टैक्स क्यों नहीं देते ,बेचारी किसी रेस्टोरेन्ट में थी मुम्बई के जहाँ खाने के साथ मुफ्त प्याज होटल वालों ने देनी बन्द कर दी है उन्होंने अपने ट्विटर पर खबर शेयर की है इस प्याज की चोरी की और सरकार से पूछा है कि उन्हें मुफ्त प्याज होटल में क्यों नहीं मिल रही है ,,ये कैसे हुआ ,,,नीचे किसी युवा किसान ने उन्हें मुफ्त प्याज देने की पेशकश की है और शमशेर की कविता टैग की है

"मेरे कमरे में अब भी वो दरी है शायद

ताख पर ही मेरे हिस्से की धरी है शायद

तेरी जेबें तेरी बोतल तो भरी है शायद

दिल को लगती है मेरी बात खरी है शायद"

हजारों लोगों ने इसे रीट्वीट किया है और एक दूसरे से पूछ रहे हैं ये कैसे हुआ,,,आपको मालूम है क्या ?

समाप्त,,☺️

कृते,, दिलीप कुमार


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तो क्यों धन संचय (व्यंग्य)हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,"पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय"जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि प्रयाग में जन्

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अबकी बार,तीन सौ पार,(व्यंग्य)"नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही "जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है।बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ शब्द काफी चर्चा में रहा।एक राजनैतिक दल ने तीन सौ की ह

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"ये कैसे हुआ" (व्यंग्य)फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती हैएक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है "।उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था कि इस देश की जनता की साथी उसकी फांकाकशी ही रहने वाली है ।वी द पीपुल तो हमें जनता जन

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पापा नहीं मानेंगे (व्यंग्य)"खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा , मैदान साफ़ कर दें ,"एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं ,गोया ये बद्दुआ ही थी ।इन मरदूद आशिकों को ये इल्म नही

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19 जनवरी 2020
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खिचड़ी बनाम बिरयानी

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22 फरवरी 2020
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मेहँदी लगा कर रखना

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" मेहँदी लगा कर रखना" (व्यंग्य )"मैं इसे शोहरत कहूँ,या अपनी रुस्वाई कहूँ,मुझसे पहले उस गली में ,मेरे अफसाने गये" अपनी तारीफ सुनने से वंचित और और अति व्यस्त रहने वाली नये वाले लिटरैचर विधा की मशहूर भौजी ने खाली बैठे बैठे उकताकर अपनी पुरानी ,विधाबदलू ननदी को फोन लगाया ,भौजी का फोन देखकर ननद रॉनी

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पंडी आन द वे (व्यंग्य) जिस प्रकार नदियों के तट पर पंडों के बिना आपको मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती, गंगा मैया आपका आचमन और सूर्य देव आपका अर्ध्य स्वीकार नहीं कर सकते जब तक उसमें किसी पण्डे का दिशा निर्देश ना टैग हो, उसी प्रकार साहित्य में पुस्तक मेलों में कोई काम संहित्यिक पंडों और पण्डियों के बिना

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वादा तेरा वादा

10 मई 2020
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“वादा तेरा वादा” “परनिंदा जे रस ले करिहैं निसच्य ही चमगादुर बनिहैं” अर्थात जो दूसरों की निंदा करेगा वो अगले जन्म में चमगादड़ बनेगा।परनिंदा का अपना सुख है ,ये विटामिन है ,प्रोटीन डाइट है और साहित्यकार के लिये तो प्राण वायु है ।परनिंदा एक परमसत्य पर चलने वाला मार्ग है और मुफ्त का यश इसके लक्ष्य हैं।चत

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चाँद और रोटियां

14 जून 2020
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चाँद और रोटियां (व्यंग्य)प्रगतिशीलता के पुरोधा,परम्पराओं को ध्वस्त करने वाले कवि करुण कालखंडी जी देश में मजदूरों के पलायन से बहुत दुखी थे ,उन्होंने लाक डाउन के पहले दिन से बहुत मर्माहत करने वाली तस्वीरें और करुणा से ओत प्रोत कविताएं लिखी थीं ।वो सरकार पर बरसते ही रहे थे क

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