(गोस्वामी तुलसीदास) 🙏🙏 जय श्री राम🙏🙏 तुलसीदास का जन्म विक्रम संवत 1554 ई० क्षवण शुक्ल पक्ष सप्तमी मे उत्तर प्रदेश के सोरो नामक ग्राम में हुआ था। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास का जन्म 12 महीने गर्भ में रहने के बाद हुआ था। जन्म के समय तुलसीदास के मुंह में 32 के 32 दांत थे और उनका स्वास्थ्य 5 साल की बच्चे की तरह था। एक आम शिशु जन्म के पश्चात रोता है, लेकिन तुलसीदास ने जन्म के बाद राम नाम का उच्चारण किया, जिससे उनको रामबोला भी कहा जाता है। उनके जन्म के वक्त हुए अशुभ घटनाओं की वजह से तुलसीदास के माता पिता ने उनके जन्म के चौथी रात को छोड़ दिया। तुलसीदास के माता पिता के घर में काम कर रही नौकरानी चुनिया ने तुलसीदास को अपने गांव हरिपुर ले गई जहां चुनिया ने तुलसीदास का 5 साल तक पालन पोषण किया इसके बाद चुनिया का देहांत हो गया। तुलसीदास के सर पर किसी का साया ना होने के कारण तुलसीदास अनाथ हो गए थे और घर घर भिक्षा मांगकर किसी तरह से अपना जीवन चलाते थे। और ग्रंथों के अनुसार यह भी माना जाता है कि माता पार्वती ने ब्रह्मांण औरत का रूप धारण करके तुलसीदास को प्रत्येक दिन अपने हाथों से भोजन कराया। तुलसीदास ऐसे ही जीवन काटते रहे। भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल पर रहनेवाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य नरहरि दास जी ने इस रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूँढ निकाला और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा। नरहरी दास जी ने तुलसीदास को अपने साथ अयोध्या चलने को कहा जो कि श्री रामचंद्र की पावन जन्मभूमि है। तुलसीदास नरहरी दास जी के साथ अयोध्या चले आए। जहां नरहरी दास जी ने तुलसीदास के 5 संस्कार करवाये। संस्कार के समय भी बिना सिखाये ही तुलसीदास ने गायत्री-मन्त्र का स्पष्ठ उच्चारण किया, जिसे देखकर सब लोग चकित हो गये। इसके बाद नरहरि बाबा ने वैष्णवों के पाँच संस्कार करके बालक को राम-मन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्याध्ययन कराया। तुलसीदास की बुद्धि बड़ी प्रखर थी। वह एक ही बार में गुरु-मुख से जो सुन लेते, उन्हें वह याद हो जाता। वहाँ से कुछ समय के बाद गुरु-शिष्य दोनों शूकरक्षेत्र पहुँचे। वहाँ नरहरि बाबा ने बालक को राम-कथा सुनायी किन्तु वह उसे भली-भाँति समझ न आयी। शुकर क्षेत्र से तुलस
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