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भाग...१ (पेंशन विभाग)

1 अगस्त 2022

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मदारी और बन्दर...
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बोलिये बाबू जी...क्या करवाना है,?
"पेंशन नही बनी अभी तक रिटायर होकर 7 महीने हो गये"
मास्टर सत्यवान शुक्ला जी ने जबाब दिया।
तो क्या दिक्कत है, 'हम दो दिन में करवा देंगे' उस आदमी ने चुटकी बजाते हुये कहा...केवल पेंशन है या और अन्य फंड भी है...उस आदमी ने पुनः प्रश्न किया...
"सारा का सारा फंसा पड़ा है,...शुक्ला जी ने परेसान होते हुये जवाब दिया...
विभाग कौन सा...? शिक्षा विभाग शुक्ला जी ने उत्तर दिया

मास्टर साहब...पेंशन के पांच हजार और बाकी के तीन हजार'.. आधे अभी दे दीजिये बाकी काम होने के बाद,...कागद पत्र सब लाये हैं न...उस आदमी ने कहा...

मास्टर साहब तो सन्न रह गए ...बोले मुझे नही करवाना मैं स्वयं करवा लूँगा कितने बच्चे मेरे पढाये डिप्टी कलेक्टर हो गये... अध्यापक से कौन पैसे माँगेगा??

क्या जमाना आ गया है सरे राह डकैती चल रही है...शुक्ला जी बड़बड़ाते हुये अंदर चले गये...
पेंशन अधिकारी के कमरे के बाहर बरामदे में एक मेज पर बहुत सारी फाइलें रखी हुई थी..कुर्सी पर एक सर से आधे गंजे नाटे कद के गोल आंखों वाले बाबू बैठे थे..
सामने बैठे दो लोगों से गर्मागर्म बहँस चल रही थी... शुक्ला जी सकुचाते हुये उनके समीप पहुँचे... वो लोग अपने सगल में मशगूल रहे ...कुछ देर खड़े रहने के पश्चात कोई अटेंशन न मिलने पर शुक्ला जी ने दबी जुबान में कहा...बेटा मेरी पेंशन...इतना ही कह पाये थे कि बाबू ने तरेरते हुये कहा...हाँ तो हमने खा लिया क्या...आज वैसे इतनी फ़ाइलें पड़ी है..अभी जाओ अगले महीने आना...
शुक्ला जी काफी देर तक मिन्नत करते रहे...

अच्छा...सारे पेपर लाये हो...!
हाँ ये हैं...
वहाँ पियून के पास देकर.. सबके फोटोकापी करवा कर एक फाइल बनवा लो, साथ मे एक एप्लिकेशन टाइप करवा कर अटेच करो ...फिर यहां जमा करो..

शुक्ला जी पियून को खोजते खोजते बाहर तक चले आये..पता चला सामने फोटो कॉपी के दुकान में बैठा है..

बेटा... अंदर से बड़े बाबू ने भेजा है इसका सब दुरुस्त करवा दो...शुक्ला जी ने कहा

अंकल जी लाइये पेपर सम्भालते हुये प्यून ने  कहा..
अंकल जी इन सब के दो हजार हो जायेंगे"

बेटा..10 रुपये की फोटोकॉपी 20 रुपये की टायपिंग 10 रु की फाइल ..फिर दो हजार किस बात के"

फिर खुद करवा लीजिये प्यून ने उनको कागज का बंडल पकड़ा कर कहा..

दो घण्टे के मसक्कत के बाद शुक्ला जी सब काम करवाकर बाबू के पास पहुंचे...उन्होंने पियून के तरफ इशारा करते हुऐ कहा उससे मोहर लगवा लो...

बेटा...इसपर मोहर लगा दो..
'कल आना '..आज पहले से बहुत काम है,
एक मोहर ही तो लगानी है...शुक्ला जी ने विनय किया

ऐसे कैसे मोहर लगेगी सब पेपर चेक करना पड़ेगा असली है कि नकली है..समय लगता है पहले के पचास फाइल पड़ी हैं...

तभी एक आदमी आया महाशय के हाथ मे पांच सौ के दो  नोट रखे और एक फाइल पकड़ा दी..पियून साहब तुरन्त एक्टिव होकर उसकी फाइल में मोहर लगाने लगे..

शुक्ला जी समझ गये बिना चढ़ावे के काम न होगा..मन मार कर जेब से एक पांच सौ का नोट निकाला और फाइल के साथ पकड़ा दी...पियून ने शुक्ला जी को घूरते हुआ फाइल में मोहर  लगा दी...

फाइल लेकर शुक्ला जी फिर बड़े बाबू के पास पहुंचे...वहाँ बाबू साहब पहले वाले महाशय की फाइल नत्थी कर रहे थे...शुक्ला जी ने अपनी फाइल बड़े बाबू की तरफ।धीरे से सरका दी... बाबू ने लगभग झिड़कते हुये पूछा कि क्या है?

बेटा फाइल...
हाँ तो...

मेरा काम कर दो!!

और जो बाकी पड़ी हैं...
ये बाबू भी तो अभी आये है तो इनका तो कर ही रहे हैं न...शुक्ला जी लगभग रोते हुये बोले..

तो....बाबू साहब गुस्से में आ गये
तब तक पियून शुक्ला जी को समझाते हुये बोला.."चचा काहे पूरे ऑफिस का माहौल खराब कर रहे हो...

एक फाइल का तीन हजार बाबू का और सात हजार साहब का फिक्स है कहो तो बात करूं,

शुक्ला जी गुस्से में काँपते हुये धड़धड़ाते सीधे साहब के कमरे में घुस गये। पीछे-पीछे पियून...शुक्ला जी को देखते साहब खड़े हो गये... 'मास्टर साहब आप'

अरे रमेश तुम...शुक्ला जी ने हैरत से कहा..अब तो शुक्ला जी का दुख छोभ सब गुस्से में बदल गया...बेटा देख रहे हो तुम्हारे नाक के नीचे ये सब क्या चल रहा है ..

किसी को पांच हजार चाहिये किसी को दस हजार चाहिये पूरी लूट मचा रखी है...

साहब ने तुरंत बाबू और पियून को तलब किया...
जानते हो ये कौन हैं...हमारे गुरु जी है..तुम लोग इनको परेसान कर रहे हो...
अब शुक्ला जी कि छाती चौड़ी हुई जा रही थी...

तभी साहब ने कहा "गुरु जी कहो तो इन सब की नौकरी अभी खा लूँ... या सस्पेंड कर दूँ... माफी माँगो तुम लोग गुरु जी ....दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गये.. "गुरू जी माफ कर दो"

मास्टर साहब दयालु आदमी थे..बोले, कोई बात नही बेटा,... पता होता तब ऐसे थोड़ी करते...
तभी साहब पियून को कड़ककर बोले..तुम बाहर जाओ गुरु जी के लिये कुछ जलपान लेकर आओ और हाँ आते आते अरविंद को भी बुला लाना..

दस मिनट बाद पियून एक तस्तरी में मीठा दूसरे में समोसा और साथ मे होटल वाला चाय और नमकीन सब लेकर आते हैं....साथ मे वही लड़का जो पहले आते समय ही मिला था....ऐसा लग रहा था जैसे ऑफिस में साम्यवाद की हवा बह रही...क्या साहब क्या अनुचर सब  एक साथ हंसी ठिठोली करते हुऐ दावत उड़ा रहे थे...

चाय के बाद साहब अरविंद को मुखातिब होते हुये बोले "अच्छा अरविंद देखो ये हमारे गुरु जी हैं इनका काम देख लो और दो दिन में हो जाना चाहिये... और हाँ गुरु जी को दौड़ना न पड़े"

ठीक है सर...अरविंद ने हाँ में सर हिलाया..

कितने पैसे  हो जायेंगे तुम्हारे घर वाली बात है हिसाब से...साहब ने ताकीद की"
सर अब क्या बतायें आपको तो पता ही है कितना भागदौड़ करना पड़ता है?...बारह हजार दिला दीजिये..

गुरु जी चौक पड़े अभी तो यही लड़का बाहर आठ हजार माँग रहा था...अंदर आकर बारह हो गया...गुरु जी हतप्रभ...

तभी साहब ने बात काटते हुये बोले "नही..नही तुमको आठ हजार मिलेगा इसी में करो हमारे घर की बात है...लड़का कुछ न बोला,

ठीक है न गुरु जी...कोई दिक्कत हो तो मैं दे दूं..साहब ने कहा...

तुम क्यों दे दोगे मैं ही दे दूँगा... मास्टर साहब मायूस होकर बोले..

अनमने भाव से मास्टर साहब कुल जेब मे रखी पूंजी तीन हजार अरविंद के हवाले कीये और बाकी का वादा करके उठ कर जाने लगे....

साहब ने उठकर मास्टर साहब के चरणस्पर्श किये और भावुक होते हुए बोले गुरु जी फिर दर्शन दीजियेगा..

मास्टर साहब बाहर निकल ही रहे थे कि पियून दौड़कर आया ....बाबू जी काहे गरीब का गला काट रहे हैं वो होटल वाले का पैसा दे दीजिये नही तो मेरे गले पड़ेगा...

मास्टर साहब हक्के-बक्के...वही थोड़ी दूर पर अरविंद मुस्कुरा रहा था...मास्टर साहब ने होटल के पैसे चुकाए और अरविंद से बोले ...."बेटा, माजरा कुछ समझ मे नही आया"

अरविंद मुस्कुराकर बोला.."गुरुजी, हम सब हैं बन्दर और साहब हैं मदारी..और आप हैं तमासा देखने वाले...बाकी सब मोह माया है..

..राकेश
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मदारी और बन्दर
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रोज की समस्यायों से जूझता आम आदमी और खटमल के तरह खून चूसते सरकारी बाबू...

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