ग़ज़ल
नहीं पहुंची किसी मज़लूम के वेवस ठिकानों तक
सिमट कर रह गयी सारी तरक्की बेईमानों तक
पढ़े जब आयतें मस्जिद तो मंदिर को मज़ा आये
पहुँचना चाहिए आवाज़ घंटी की अज़ानों तक
दिखाया जा रहा है ज़िंदगी को इश्तहारों में
सुबूते ज़िंदगी अब कैद है केवल दुकानों तक
सदी अट्ठारवीं की ओर ही ले जा रहे हमको
वो रखना चाहते सबको कुरआं,वेदों ,पुरानों तक
गए राजा सियासत में नए सामंत आ बैठे
सिमट कर रह गयी सत्ता सुगम ऊंचे घरानों तक
सुगम