प्रेम पर आधारित हिंदी कविता
ये ज़मीन
ये ज़मीन जो बंजर सी कहलाती है
बूँद जो गिरी उस अम्बर से, रूखे मन पर
तो उस ज़मीन की दरारें भर सी जाती है
जहाँ तक देखती है , ये अम्बर ही उसने पाया है
पर न जाने, उस अम्बर के मन में क्या समाया है
कभी तो बादलों सा उमड़ आया है
और कभी एक बूँद को भी तरसाया है
जिसके बगैर उसकी काया जल सी जाती है
ये ज़मीन जो बंजर सी कहलाती है
दूर कही उस पार, जहाँ ये अम्बर
उस ज़मीन पर झुका रहता है
समेट रखा हो दोनों ने एक दुसरे
को अपने आगोश में
वो नज़ारा मनमोहक सा लगता है
पर क्या सच में कोई ऐसी जगह होती है
जहाँ ये ज़मीन अपने अम्बर से मिल पाती है?
ये ज़मीन जो बंजर सी कहलाती है
सुना है ज़मीन, सूरज की परिक्रमा करती है
तय करती है , मीलों का सफ़र रोज़
और सिर्फ अपने अम्बर को तका करती है
शायद इस आस में के इन्ही राहों पे चल कर
उसे वो मक़ाम मिल जाये
जहाँ वो अपने अम्बर को खुद में छुपा लेती है
और वही ठहरी सी नज़र आती है
ये ज़मीन जो बंजर सी कहलाती है
बूँद जो गिरी उस अम्बर से, रूखे मन पर
तो उस ज़मीन की दरारें भर सी जाती है…..
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”