कभी कभी सोचती हूँ
अगर इस पल मेरी साँसें थम जाये
और इश्वर मुझसे ये कहने आये
मांगो जो माँगना हो
कोई एक अधूरी इच्छा जो
अभी इस पल पूरी हो जाये
मैं सोच में पड़ जाती हूँ
के ऐसा अगर सच हुआ तो
तो क्या माँगू जो
इसी पल मुझे तृप्त कर जाये
बहुत कुछ पीछे छूट गया
क्या वहाँ जा के कोई गलती
सुधार ली जाये
या कोई खुशनुमा लम्हा
फिर से जिया जाये
फिर सोचा जो बीत गया
वो बात गई, तो
चलो इस आखिरी पल में
अपने जन्म से जुड़े रिश्तों
से अलविदा ली जाये
पर शायद मैं उनका सामना
न कर पाऊँ तो
जाते जाते क्यों
आँख नम की जाये
ऐसा बहुत कुछ अधूरा है
जो इस एक लम्हें में
सिमट न पायेगा
जो भी माँगू सब यहीं धरा रह जायेगा
इसलिए सोचा क्यों
तो कुछ ऐसा माँगू
जिसके होने से सारी कायनात
इस पल मेरे आँचल में समां जाये
फिर दिल ने कहा, ऐसा है तो
चल उनसे मिलते हैं
जिनके साथ ये आख़िरी लम्हा भी
गुलज़ार हो जाये
बिना जताए , महसूस कराये
परछाई बन , चल उनको
जी भर देख आते हैं
वो मसरूफ होंगे अपने कामों में
बिना रोके टोके उन्हें
हर बची सांस में भर आते हैं
फिर मौत आती है तो आये,
अब कोई ख्वाहिश न रही ऐसी
जो अधूरी रह जाये
उन्हें सामने देख कर क्यों न
सुकून से मरा जाये
मर के भी जो साथ लिए जाऊं
ऐसा एक ताज़ा लम्हा जिया जाये …
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”