अरमान जो सो गए थे , वो फिर से
जाग उठे हैं
जैसे अमावस की रात तो है , पर
तारे जगमगा उठे हैं…
बहुत चाहा कि इनसे नज़रें फेर लूँ
पर उनका क्या करूँ,
जो खुद- ब – खुद मेरे दामन में आ सजे हैं ….
नामुमकिन तो नहीं पर अपनी किस्मत पे
मुझे शुभा सा है,
कही ऐसा तो नहीं , किसी और के ख़त
मेरे पते पे आने लगे हैं …
जी चाहता है फिर ऐतबार करना,
पर पहले भी हम अपने हाथ
इसी चक्कर में जला चुके हैं……
कदम फूँक – फूँक कर रखूँ तो
दिल की आवाज़ सुनाई नहीं देगी ,
खैर छोड़ो इतना भी क्या सोचना
के चोट खाए हुए भी तो ज़माने हुए हैं…….
अर्चना की रचना ” सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास ”