ऐसा क्या है जो तुम मुझसे
कहने में डरते हो
पर मेरे पीछे मेरी बातें करते हो
मैं जो कह दूँ कुछ तुमसे
तुम उसमें तीन से पांच
गढ़ते हो
और उसे चटकारे ले कर
दूसरों से साँझा करते हो
मैं तो हूँ खुली किताब
बेहद हिम्मती और बेबाक़
रोज़ आईने में नज़र
मिलाता हूँ अपने भीतर झाँक, फिर
ऐसा क्या है जो तुम मुझसे
स्वयं पूछने में डरते हो ?
एक लम्बा सफर तय किया है मैंने
जहाँ भी आज मैं पहुंचा हूँ
गिरा संभाला पर अपना
स्वाभिमान बनाये रखा हूँ
मेरे जूते पहन के ही तुम
उसके काटने की चुभन समझ
सकते हो
वो जीवन ही क्या जिसमें
सुनाने को कोई कहानी न हो
जिनमें गलतियों से सीखने का
कोई सबक न हो
पर वो कहानी मैं तुम्हें सुनाऊँ
क्या इतनी समझदारी तुम रखते हो ?
मेरे जीवन में कई उलझनें हैं
जो शायद सुलझाने से भी
न सुलझेगी
पर उनके बारे में न सोचते हुए
तुम अपने काम से काम
क्यों नहीं रखते हो ?
डंके की चोट पे करता
हूँ हर काम
किशोर दा का गाना
बहुत आता है मेरे काम
" कुछ तोह लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना "
यही गाना सुनते हुए अब
इस लेखनी को देता हूँ विश्राम
मुझे क्या तुम सोचते रहो
और मेरी बातें करते रहो
क्योंकि "बदनाम" होने में भी
है बहुत नाम