बनते बिगड़ते रिश्तों पर आधारित कविता
थोड़ी सी नमी
तूफानों को आने दो
मज़बूत दरख्तों की
औकात पता चल जाती है
पेड़ जितना बड़ा और पुराना हो
उसके गिरने की आवाज़
दूर तलक़ आती है
सींचा हो जिन्हें प्यार से
उन्हें यूं बेजान देख कर
एक आह सी निकलती है
पर उसे जिंदा रखने की ललक
सब में कहा होती है
ज़रा कोई पूछे उस माली से
जिसकी एक उम्र उसकी देखरेख
में निकल जाती है
थोड़ी सी नमी
हर बात सवाँर देती है
रिश्ता हो या पौधा
जडें मज़बूत हो तो
थोड़ी से परवाह, उन्में
नयी जान डाल देती है
गिर कर सूख भी गया हो
तो क्या हुआ
उस पर बहार
फिर आ ही जाती है
तूफानों को आने दो
मज़बूत दरख्तों की
औकात पता चल जाती है
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”
Pathik Ki Prakriti- Hindi inspirational Poetry on Human’s Nature and to move on