तुम अपना घर ठीक से
ढूंढना ,
कुछ वहीं
छूट गया मेरा
ढूंढ़ना उसे , अपने किचन में
जहाँ हमने साथ चाय बनाई थी
तुम चीनी कम लेते हो
ये बात तुमने उसे पीने के बाद बताई थी
उस गरम चाय की चुस्की लेकर
जब तुमने रखा था दिल मेरा
तुम अपना किचन ठीक से
ढूंढना , कुछ वही छूट गया मेरा
ढूंढना उसे , उस परदे के पास
जो उस बालकनी पे
रौशनी का पहरा देता था
फिर भी उस से छन के आती रौशनी
को खुद पे ले कर
जब तुमने ढका था चेहरा मेरा
तुम अपना कमरा ठीक से
ढूंढना, कुछ वही छूट गया मेरा
ढूंढना उसे, उस लिहाफ के नीचे
जो नींद आने पर तुमने मुझे ओढ़ाई थी
किसी आहट से नींद न खुल जाये मेरी
जब तुमने अपने फ़ोन की आवाज़
दबाई थी
यूं खुद जग कर तुमने रखा
था ख्याल मेरा
तुम अपना बिस्तर ठीक से
ढूंढना, कुछ वही छूट गया मेरा
ढूंढना उसे , उस सोफे पे
जहाँ मैंने तुम्हे कुछ दिल
की बात बताई थी
मेरी बातों को समझ कर
तुमने जीता था विश्वास मेरा
और यूं बातों ही बातों में
तुमने थामा था हाथ मेरा
तुम उस सोफे को ठीक से
ढूंढना , कुछ वही छूट गया मेरा
ढूंढना उसे , एयरपोर्ट से अपने घर
आती सड़को पर
जब बारिश ने आ कर हमारे
मिलने के इंतज़ार की
थोड़ी और अवधि बढ़ाई थी
जो ख़ुशी उस इंतज़ार में थी
वो रुखसत के वख्त
ज़ाहिर है ,न थी
और तुमने गले लगा कर
पढ़ लिया था दिल का हाल मेरा
तुम उस रास्तें को ठीक से
ढूंढ़ना , कुछ वही छूट गया मेरा
यूं तो मैं सब कुछ ले आई हूँ
पर फिर भी कुछ तो रह गया
वही पर
कहने को पूरी यहाँ हूँ
पर जान वही रह गई कही पर
ऐसा बहुत कुछ छूट गया मेरा
तुम अपना घर ठीक से
ढूंढना ,कुछ वहीं
छूट गया मेरा
तुम अपना घर ठीक से
ढूंढ़ना
शायद मैं वही मिल जाऊँ
कही पर.......