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इंसानियत

22 फरवरी 2015

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दृश्य कुछ ऐसा है कि एक आदमी अपने किसी परिचित के साथ ऑटो में सफर कर रहा था..... थोड़े देर बाद एक दूसरा आदमी हाथ में एक पॉलीथिन जिसमे कुछ खिलौने थे, उसे लेकर ऑटो में बैठा....दोपहर का समय था, तेज़ धूप थी.. पहले आदमी ने खिलौने देखने की इच्छा ज़ाहिर कर खिलौनों की ओर हाथ बढ़ाते हुऐ दूसरे आदमी से पूछा: "आप खिलौने बेचते हो क्या?" दूसरे आदमी ने खिलौना उसकी और बढ़ाते हुए कहा : "नहीं सर, मेरा बच्चा हॉस्पिटल में भर्ती है, उसी के लिए लेकर जा रहा हूँ..." उसके बाद पहले आदमी ने खिलौना वापस किया लेकिन इंसानियत के नाते ही सही.. ये पूछना भी ज़रूरी नहीं समझा कि, क्या हुआ आपके बेटे को...? पूछना तो दूर , चेहरे पर बिना किसी हाव-भाव या सहानुभूति के वो फिर से अपने परिचित से बात करने में व्यस्त हो गया.... ये सब देखने के बाद मैं सोच में पड़ गयी की क्या दुनिया ऐसी है?? पहले भी ऐसी थी या अब इतना बदल गयी?? कैसे इतनी स्वार्थी हो गयी ये दुनिया??? जहाँ इंसान किसी अजनबी से बेजान खिलौने के बारे में तो पूछ सकता है, पर जीते जागते बीमार बच्चे के लिए चेहरे पर सहानुभूति के भाव तक नही ला सकता...???
नज़ीफ़ा नाजिश

नज़ीफ़ा नाजिश

धन्यवाद मनोज जी .

22 फरवरी 2015

मनोज कुमार - मण्डल -

मनोज कुमार - मण्डल -

बहुत सारगर्भित रचना

22 फरवरी 2015

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