जीवन रूपी नदी में प्रवाहित,
उतार चढ़ाव होते भिन्न-भिन्न।
तैरोगे धारा के विपरीत अगर,
हो जाओगे तुम छिन्न- भिन्न।।
जीवन है तो यूं एक ख्वाहिश,
ख्वाहिशें ऐसी अधूरी भी होती।
जिंदगी से जुड़ा है जीवन,
तो ख्वाहिशें भी पूरी होती।।
नदी की धारा की तरह,
आगे बढ़ते चलो जीवन में।
रुक जाओगे गर थमोगे तुम,
बढ़ नहीं पाओगे जीवन में।।
जीवन तो होती है जंग,
जो लड़ा वही बढ़ता चला।
किस्मत को नहीं कोसा उसने,
वही आगे सफल हो चला।।
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