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कामिनी एक रहस्य

18 अक्टूबर 2021

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कामिनी
  ये एक काल्पनिक कहानी हैं किसी भी घटना से मिलना मात्र संजोग है  ... कोशिश रहेगी आप सबको ये कहानी पसन्द आए। अपना प्यार और आशीर्वाद बनाए रखें आप सबके सहयोग के बिना मैं कुछ नहीं लिख सकती हूं 🙏🙏🙏                
                      

अमावस्या की वह काली रात, चारो तरफ घनघोर अँधेरा छाया हुआ था।
रूद्र शहर से अपने गाँव वापस आ रहा था। उसका गाँव शहर से करीब 16 कि०मी० दूर था, और बीच में करीब 10 कि०मी० बाद उसे ऑटो बदलनी पड़ती थी। लेकिन उस दिन बीच रास्ते में उसे कोई ऑटो नहीं मिली। इसीलिए रूद्र वहा से पैदल ही घर का रुख़ कर गया।

रात अंधियारे में सिमटता जा रहा था। आसमान में बिजली चमक रही थी। आंधी तूफ़ान  के कारण सभी जगहों की बिजली गुल हो चुकी थी। दूर से सियार के रोने की आवाज वातावरण में एक अजीब सी बेचैनी पैदा कर रही थी। रूद्र को रास्ते में कालिंदी नदी पार करने के पहले एक जंगल पार करना था। कालिंदी नदी दिन भर अपने लहरों के साथ खेलकर थक कर लगभग सो चुकी थी।

"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर....भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे.." जोर से गाते हुए रूद्र तेज कदमों से जंगल को पार कर रहा था। अभी वह नदी के किनारे पहुँचने ही वाला था कि उसके कदम ठिठक गये, उसके शब्द मानों मुँह में ही अटक गये, आखें किसी तेज रौशनी के आगे चौंधिया गई। अब उसके कदम किसी जड़ की भांति धरती में जम रहे थे। क्योंकि उसकी नजरें थोड़ी दूर पर जा टिकी थी। कालिंदी नदी के शांत जल में अपने पैरों को लहरा कर घाट पर एक खुबसूरत महिला बैठी हुई थी। सफ़ेद साड़ी में  छरहरे और कामुक बदन वाली वो महिला किसी अप्सरा से कम नहीं दिख रही थी। अपने दोनों हाथों से नदी के जल से अटखेलियाँ करते हुए वह महिला अपने बदन को भिंगो रही थी । कालिंदी नदी का शांत जल भी मानों उसे अपने आगोश में पूरी तरह भरना चाह रहा था।
रूद्र की नजरेें कामिनी पर एकटक पड़ी तो हटने का नाम ही नही ले रही थी। कामिनी ने वस्त्र के नाम पर सिर्फ़ एक सफ़ेद साड़ी को अपने बदन पर लपेटी थी और भींगने के कारण बदन से चिपककर सफ़ेद साड़ी पारदर्शी मालूम प्रतीत हो रही थी, जिसमें कालिंदी की सुनहरी कामुक काया साफ़ साफ़ देखी जा सकती थी। उस भींगे साड़ी में कामिनी के सुडौल उभार बेहद ही आकर्षक और कामुक लग रहे थे। भींगे बाल, भींगे होंठ, भींगा पूरा बदन और कामुक काया.......रूद्र मानों देखते ही रह गया

'भिंगो दे ऐ कालिंदी
तन की प्यास बुझा दे
मन की अग्न को
जल धार से बुझा दे'

रूद्र का मन और इंद्रिया अब अपने वश में ना थी। उसके बदन में एक हलचल ही होने लगी थी। ना चाहते हुए भी अब उसके कदम उस कामिनी की तरफ बढ़ गये। वह कामिनी के ठीक बगल में जाकर उसी तरह बैठ गया जैसे वह बैठी हुई थी।
बिना कुछ शब्द कहें ही रूद्र उस कामिनी को छूने के लिए अपने हाथ बढ़ाये।

"रुको रुको.......मौत या मै?" कामिनी मधुर स्वर में बोल उठी।

लेकिन रूद्र होश में कहां था, उसे तो कामिनी की कामवासना ने अपने आगोश में भर लिया था। कामिनी के साथ वह वही करना चाहता था जो एक रोमांटिक और हॉट कपल के बीच बंद कमरे में होता है।
कामिनी की बात को अनसुना करके रूद्र भींगे सफ़ेद कपड़ो में लिपटे उसक गोल गोल सुनहरे सुडौल उभारों को छूने लगा। रूद्र को लगा मानो उसने किसी अंगार को छू लिया हो। तन और मन में आग तो पहले से ही लगी थी,  कामिनी की कामुक सिसकियों ने आग में घी डालने का काम किया। रूद्र अब कहां रुकने वाला था। उसने अपने अधर, कामिनी के भींगे रसीले और गुलाबी अधरों पर टिका दिया। रूद्र और कामिनी की साँसे रफ़्तार पकड़ चुकी थी। रूद्र के बदन विशेषकर पैंट में हलचल तॆज हो चली थी। कुछ ही समय में वह अपनी कामुकता की चरम सीमा पार कर गया।
अपनी कामवासना को शांत करने के बाद वह वहा से जैसे ही उठा, उसका पैर फिसल गया और वह नदी में समां गया।

आखिर कौन थी सुनहरी कंचन काया वाली कामिनी...?
नदी की क्या कहानी थी....?
रूद्र कौन था..?

ये तमाम तरह के प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमारे साथ जुड़े रहिए।

उम्मीद है आप सभी सम्मानित पाठक, आदरणीय लेखक/लेखिका इस कहानी के अंत तक हमसे जुड़े रहेंगे। आप सबकी की अनमोल  समीक्षा का इंतजार है। कृपया यह भी बताने का कष्ट करे की हमे इस कहानी को आगे लिखना चाहिए या नहीं।
धन्यवाद।
✍️R,j


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रचनाएँ
प्रेम गाथा
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ख्वाहिशें भी अजब सितम करती है यह कैसे-कैसे को जुदा करती है सुना था, धरती और आकश एक ही थे कभी दो जिस्म एक जान थे, दोनो एक दूजे के साथ थे कर गई ख्वाहिश धरती ने चांद पाने की आकाश उड़ चला प्रियतमा कि इच्छा पुरी करने चांद धरती पर दिखने , अपनी शर्त कर बैठा आगोश में आकाश को समाहित कर बैठा भार इतना था उस चांद का आकाश धरती पर आ ना सका तड़प कर रह गए धरती और आकाश दोनों एक दूजे सदा सदा के लिए जुदा हो गए आज भी यादे उन्हें तड़पा जाती है, इसलिए तो अश्कों की बरसात होती है अश्कों बारिशों से धरती से मुलाकात होती है आकाश यादों में रोता है धरती यादों को संयोती है कुछ इस तरह दोनों की प्रेम अमर गाथा कहती है।

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