मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को पृथ्वी पर भेजा। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था।
देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी जुड़वा लड़कियां एक अभी भी उस मृत स्त्री से लगी हुई चीख रही है, पुकार रही है।
एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं। और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला भी नहीं है। पति पहले ही मर चुका था। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?
उस देवदूत को यह खयाल आया , तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है।
तीन जुड़वां बच्चियां हैं,
छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। मेरा हृदय ला न सका।
क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।
मृत्यु के देवता ने कहा, तो तुम फिर समझदार हो गया, उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है!
तो तुमने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर जाना पड़ेगा। और जब तक तुम अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस नही लेगा , तब तक वापस नहीं आ सकेगा।
इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते हो तब अहंकार टूटता है।
देवदूत ने बुरा नहीं माना । वह दंड भोगने को राजी हो गया , लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?
उसे पृथ्वी पर भेज दिया गया।
सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे एक जूता कारीगर अपने बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था,
कुछ रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा।
यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस कारीगर को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए।
इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां वह रुक सके।
तो कारीगर ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो, जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने गया था, वह पैसे तो खर्च हो गए-वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।
उस देवदूत को लेकर कारीगर घर लौटा। न तो कारीगर को पता है कि यह देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है।
जैसे ही देवदूत को लेकर कारीगर घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी चिल्लायी और देवदूत पहली दफा हंसा।
कारीगर ने उससे कहा, हंसते क्यों हो, क्या बात है? उसने कहा, मैं जब तक तीन बार हंस न लूंगा तब तक बता नही सकूंगा।
देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि कारीगर देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी।
लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है!
पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं बने। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है। मुफ्त में घर में देवदूत आ गया है।
देवदूत उस कारीगर के घर काम करने लगा , क्योंकि वह देवदूत था, इसलिए वह जल्दी ही सात दिन में ही उसने जूता कारीगर का सब काम सीख लिया।
और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि कारीगर महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहां बनने लगे।
धन अपरंपार बरसने लगा। एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना।
जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं। क्योंकि इस देश में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक लेकर जाते हैं।
कारीगर ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना।
जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे।
लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब कारीगर ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तुम मुझे फांसी लगवा दोगे और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर नहीं बनाने हैं, फिर स्लीपर किसलिए बनाये ?
तभी सम्राट के घर से एक आदमी भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना ह। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।
भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं।
और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए।
तब वह कारीगर उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।
लेकिन वह आज दुबारा हंसा। कारीगर ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि मैं जब तक तीन बार हंस न लूंगा तब तक नहीं बता सकूंगा।
दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम इच्छा रखते हैं जो कि व्यर्थ हैं।
हम इच्छा करते हैं जो कभी पूरी न होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं होगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है।
और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचा रहे हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और हम जिंदगी का आयोजन करते हैं।
तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, उनका भविष्य क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।
और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन जवान लड़कियां आयीं।
उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी।
देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं।
उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं। वो एक गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी।
लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं थे, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।
अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं।
मां के मरने के बाद ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं।
और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं और इनका बड़े खानदानी परिवार में विवाह हो रहा है।
देवदूत तीसरी बार हंसा। और कारीगर को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं।
भूल मेरी थी। नियति बड़ी है।
और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना हमारे सामने हैं। जो होने वाला ह वो हम नहीं देख पाते,
और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, की आगे क्या होने वाला है
मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं।
हम अगर अपने को बीच में लाना बंद कर दे, तो हमे मार्गों का मार्ग मिल जायेगा। फिर असंख्य मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी।
छोड़ दो उस पर। वह जो करवा रहा है, जो अब तक करवाया है उसके लिए धन्यवाद
जो अभी करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद।
ईश्वर की लीला है!
*होगा वही जो वो चाहेगा..!!*