अब तक आप लोगों ने पढ़ा कि पुलिस ने उस फार्मूला से बने कीटनाशक के खरीदारों की जानकारी हांसिल कर ली, पर एसा कोई भी व्यक्ति न मिला जो शक के दायरे में आए फिर इसी क्रम में जब पुलिस ने एक लोकल डिस्ट्रीब्यूटर की दुकान के सीसीटीवी फुटेज चेक किए, तो उसने कुछ एसा देख लिया जिससे ये गुत्थी और ज्यादा उलझ गई l
एसा क्या देख लिया पुलिस ने...........................l
पुलिस ने जब उस लोकल डिस्ट्रीब्यूटर की दुकान के सीसीटीवी फुटेज चेक किए, तो बब्बन उस कीटनाशक ज़हर को खरीदते हुए स्पष्ट दिखाई दे रहा था। जिस पर पुलिस ने दुकानदार से पूछताछ करी पर दुकानदार ने बताया कि बब्बन इस दवा का नाम एक काग़ज़ पर लिख कर लाया था, जिसे पढ़कर मैंने दवा दी और वो पैसे देकर चुपचाप ही चला गया और कुछ भी नहीं बोला शायद थोड़ा जल्दबाजी में था....................l
फिर पुलिस भी इन सभी बातों को आपस में जोड़ने की कोशिश करते हुए कोई सुराग या हल निकालने का भरसक प्रयास करती है, और इस बात की सूचना करण को भी देती है, जिससे करण भी बब्बन के द्वारा ज़हर खरीदे जाने की बात सुनकर गहरी सोच में पड़ जाता है, और अपने पिता को भी ये बात बताता है l
इधर करण के पिता जो खुद भी फिरोजाबाद के रिटायर्ड एसपी थे और अपनी सूझबूझ से उन्हें कई मर्डर केस साल्व करने का अनुभव था पर इस गुत्थी को तो वो खुद भी समझ पाने में असमर्थ थे.... l
अगले दिन सुबह जब करण के पिता अपने बंगले के बाहर गार्डन में बैठ कर अखबार पढ़ रहे थे तभी अचानक उन्हें करण की आवाज सुनाई देती हैं।
पिताजी..... अंदर आइए............ इस पर करण के पिता जब अंदर जाते हैं, तो करण उन्हें वो पर्ची दिखाता है जिस पर उस कीटनाशक दवा का नाम लिखा हुआ था और पर्ची पर लिखावट हिमांशु की थी मतलब ये दवा हिमांशु ने ही मंगवाई थी तो क्या हिमांशु ने आत्महत्या की..............................।
और यदि हिमांशु ने आत्महत्या की भी तो बब्बन को किसने मारा , क्या बब्बन ने भी आत्महत्या की यदि करी भी तो उसका चेहरा किसने जलाया उसे पीटा किसने .................।
आखिर में जब इस केस में कोई भी कामयाबी हाथ आती नजर न आई, तो करण के पिता ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और अपने पुराने मित्र दिग्विजय मिश्रा से इस मामले पर व्यक्तिगत चर्चा की, और फिर इस केस की तहकीकात के लिए एक सीनियर ऑफिसर विनय बत्रा को बुलवाया जो अपने काम को लेकर पूरी दिल्ली में मशहूर था।
और फिर विनय इस केस की तहकीकात के लिए आ जाता है, और इंस्पेक्टर से मिलकर केस की तमाम जानकारी हांसिल करता है, और फिर इन्हीं जानकारियों को तोड़ मरोड़कर कोई सुराग ढूंढने की कोशिश करता है तो वही दूसरी ओर करण के पिता में भी इस केस को लेकर एक नई उम्मीद कायम हो जाती हैं l
बुझती हुई लौ, फिर से जल उठी।
रोशनी के नए, अरमान जाग गए।।
मशाल खुद चल कर, क्या आई।
तमस बचा, अपनी जान भाग गए।।
इधर इस पूरे केस को विस्तारपूर्वक समझने के बाद विनय ने बिना एक पल भी देर किए सबसे पहले करण के बंगले का और फिर रेल्वे ट्रैक का मुआयना किया, और बड़ी ही बारीकी से मौका-ए-वारदात के हर एक दृश्य पर गौर किया l
फिर विनय ने उन सभी रास्तों की जानकारी एकत्रित की जिनसे उस रेल्वे ट्रैक पर पहुंचा जा सके जहाँ बब्बन की लाश मिली थी। क्योंकि लाश को किसी न किसी गाड़ी के जरिए ही वहां ले जाया गया होगा और उसे पता लगा कि केवल एक ही सड़क मार्ग है जो उस जगह तक पहुंचने के लगभग पचास मीटर पहले ही समाप्त होता है और उसके बाद सडक के अंत से रेल्वे ट्रैक तक सुनसान इलाका होने से वो लोग पैदल ही लाश को ले गए होंगे...............l
जिसके बाद पहले तो विनय पचास मीटर के दायरे वाले उस सुनसान इलाके का, बड़ी ही बारीकी के साथ मुआयना करता है औऱ उसके बाद अपने एक ऑफिसर को भेजकर उस चौराहे पर लगे सीसीटीवी पर बब्बन की लाश मिलने के एक रात पहले की फुटेज चेक करने की लिए भेजता है जिससे ये अंतिम सड़क जुड़ी थीं l
तभी विनय को वहां पर कुछ एसा निशान नजर आया ..................