एक खिलौना कुछ इसतरह से गढ़ दिया,
दे दिया दिव्यशक्ति मनुष्य में
वक्त के साथ चलता-फिरता,
सम्भलता-गिरता रहा
नित-नूतन रहस्य सरेआम हुआ विश्व में
रवि,सोम...,शनि देख रहा वर्षों से,
ये चश्मदीद हैं, दे सकते गवाही
बुरे करतूतों की लेखनी में,तुच्छ जलधि
भलाई बखान में पर्याप्त है दावात की स्याही
वक़्त करवट लेता हुआ पहिये की भांति,
प्रत्येक पिछला क्षण भूलता गया
मनुष्य आकांक्षाओं की सीमाओं से परे,
सुविधओं की आन में झूलता गया
विडम्बना भी खूब इस मनुष्य में,
पद धरातल से दूर अंतरिक्ष में,
उड़ चला हौसले की उड़ान से
क्षितिज से परे,खो गया अदृश्य में
नयी धरती की आस लिए
अंतरिक्ष में जीवन तलाश किये