कितनी खुबसुरस्त है वह दोस्त हमारी
कभी सिरहाने होती है, कभी अलमारी
हम पथिक हैं,हमें मार्ग की पहचान कहाँ
हम चले हैं अकेले पथ पर, राह ले जाता जहाँ
भटक रहे थे,मंजिल भी बिछड़ रही थी
किताब ने पथ बताया,वरना बिखर जाता यहाँ
किसी कोने की अंधेरों में सिमट चूका था
अज्ञानता की आगोश में लिपट चूका था
रौशनी की किरणें आती थी,झांकती थी मुझे
अपने ही धुन में रमा रहा, यह तेज चुभती थी मुझे
एक दिन रौशनी का सुखद अनुभव हुआ
मैनें अंधेरे से निकलने की मांगी दुआ
बाहरी दुनियां का मुझे आभास हो रहा था
जबसे मैं किताब के पास हो रहा था
राह भी मुझसे डरने लगे
मार्गदर्शक बन साथ मेरे चलने लगे
किताब की मित्रता सफल रही
समझ गया दोस्ती का दूसरा विकल्प नहीं
कितनी खूबसूरत वह दोस्त हमारी
कभी सिरहाने होती, कभी अलमारी