मार्ग अति दुर्गम है
वक़्त बहुत कम है
किस गति से चलूँ मैं
किस क्षति को सहूँ मैं
जिसे चला था साथ लेकर
छोड़ दिया मात देकर
किसके पाँव पडूँ मैं
कौन सा राह धरूँ मैं
अब मन में एक आस लिए
खुद पे एक विश्वास लिए
अकेले विघ्नों से लड़ूं मैं
लक्ष्य की पथ पर बढूँ मैं
बाधाओं की बेड़ियों को,
खुद ही तोड़ता हुवा
सफलताओं की कड़ियों को,
खुद ही जोड़ता हुवा
नयी कृति गढ़ूं मैं
अपने जीवन में मढुं मैं
मुझमें असीम शक्ति समा दो
मुझे विलक्षण व्यक्ति बना दो
सूर्य की तरह जलूं मैं
कपट प्रपंच को छलूँ मैं