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आज की शिक्षा प्रणाली

7 दिसम्बर 2015

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आज की शिक्षा प्रणाली से कौन वाक़िब नहीं है? सब जानते हैं कि किस तरह विद्यालयों में बच्चों के भविष्य को फांसी पर लटकाया जा रहा है। ऐसी दशा को देखकर लगता है शिक्षक के जगह पर जल्लाद को पढ़ाने का काम सौंप गया है। 
  हम धूर्त सियार की कहानी से रूबरू हैं- जो अपने शरीर में नीला रंग लगने के कारण खुद को जंगल का राजा कह बैठता है और सभी जानवर उसे मानते भी हैं परंतु सियार अचानक अपने साथियों की हुवाँ......हुवाँ.......की आवाज सुनकर वह भी धुन मिलाने लगता है और सच्चाई सामने आ जाती है और धूर्त सियार मारा जाता है। कुछ इसी तरह की समान घटना स्कूलों में देखी जा रही है। निकम्मे लोग जिसे कहीं से रोजी-रोटी का जुगाड़ नहीं होती आखीर रोजगार देगा कौन? उसके लिए काबिल भी तो होना चाहिए। ऐसे में राशन दूकान की तरह स्कूल के धंधे इतने प्रसिद्ध हो गए हैं की लोग चाट-समोसे की दुकान के बजाय स्कूल खोलने लगे हैं।
     किसी तरह थोड़ी-बहुत पूंजी लगाकर एक बड़ा पोस्टर छपाकर स्कूल खोल देते हैं और वैसे शिक्षक की खोज करते हैं जो कम-से-कम वेतन पर काम करे। अब कोई शिक्षित और काबिल व्यक्ति अपनी सेवा हजार-दो हजार में बेचेगा नहीं और यहीं से सिलसिला शुरुआत होती है निकम्मे की खोज की और धूर्त सियार की तरह घूम रहे निकम्मे पढाई के समय जी चुराने वाले लोग शिक्षक का महान दर्जा पा लेते हैं।
     ऐसे शिक्षकों से बच्चों का पूर्ण विकास का सवाल भी नहीं उठता। ऐसे शिक्षकों के चलते शिक्षा का गला घूंटा जा रहा है। बच्चे का भविष्य निर्माण किस प्रकार की होगी इसका परिणाम तो हम सभी जानते हैं।
     बच्चों का शोषण होता है साथ-साथ अभिभावक को शिकार बनाया जाता है। इतने खर्चे बताये जाते हैं कि लोगों के होठों पर इसके ही चर्चे रहते हैं। "मैं बेटे की पढाई में लाखों खर्चे कर रही हूँ।" अधिक खर्चे वाले संस्थान से लोग अपनी पहचान तक बनाना चाहते हैं। तभी तो लोग ईज्जत के साथ शान से कहते हैं। "मेरे बच्चे फलाँ विद्यालय में पढ़ते हैं,जानते हो महीने का खर्च कितना है,पुरे पंद्रह हजार खर्चे हैं।"
             क्या शिक्षा को खर्चों से आँका जाने से ही इसकी गुणवत्ता का पता चलता है? नहीं! गुणवत्तापूर्ण शिक्षा खुद बोलती है।इसकी पहचान छात्रों की प्रतिभा से होती है,किसी खर्च से नहीं।
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रचनाएँ
gyankosh
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नेत्रभूमि मेरे द्वारा रचित कविता संग्रह है।
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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती / हरिवंशराय बच्चन

25 नवम्बर 2015
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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती / हरिवंशराय बच्चनमुखपृष्ठ»रचनाकारों की सूची»हरिवंशराय बच्चन»लहरों से डर कर नौका पार नहीं होतीकोशिश करने वालों की हार नहीं होतीनन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती हैचढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती हैमन का विश्वास रगों में साहस भरता हैचढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता हैआख़

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जज्बा और आवाज़, सीताराम पंडित

25 नवम्बर 2015
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हर दिल में एक जज्बा एक आवाज है,बुलद कर लो हौसला तेरा आगाज हैकदम लड़खड़ा रहा,पंख फड़फड़ा रहा,चल राही बढ़ जा तुझे मंजिल बुला रहाघुटने टेक कर रुक न जाना  कहीं,मुश्किलें देखकर मुड़ न जाना कहीं,आवाज देगी ये कर्कश दुनियांबढ़ते जाओ है ये सर्कश दुनियांगुब्बारा है ये जिंदगी फूट जायेगी कभीजब तक मिली कुछ करले तूभीये

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दिव्य ज्योति की तलाश, सीताराम पंडित

25 नवम्बर 2015
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हूं मैं दिव्य ज्योति की तलाश मेंजो दे ज्ञान प्रकाश मेरे शुन्य ललाट मेंमारी जाए मेरी मति भीकरू मैं किसी की क्षति भीपग पग निशां है ये तेरेजग से सुंदर जहां है ये तेरेहृदय की गति को जब तक न मिले आरामकदम को न दूंगा मैं विरामबढ़े ये कदम तेरे ही तलाश मेंहूं मैं दिव्य ज्योति की तलाश मेंगगन-गगन फिरे नजरफिर म

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आमीर तेरी औकात क्या है

27 नवम्बर 2015
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आमिर तेरी औकात क्या हैइस जमीं पे तेरी सौगात क्या हैहमने अपनी जेबखर्च से तुझको सींचा हैतू जहाँ खिल के गुलाब हुवा ओ मेरा बगीचा हैहमनें दुर्लभ पुष्प मंगायी, कोने कोने से बनाने को हारतू भी था एक पुष्प अब हो गया बेकारजिना था जितना, तू जी लिया अब तेरी जिंदगी ऊब रही हैखुद ना

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किस राह में भटकने की आस रखते हो/ सीताराम पंडित

2 दिसम्बर 2015
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तू किस राह में भटकने की आस रखते होतुझको पता है तू देशप्रेम में विश्वास रखते होप्यार मोहब्बत का पवित्र रिश्ता क्या रह पाया है?जिसने प्रेम किया,हवश की आग से क्या बच पाया है?हवश की आग जब मन में उठ जाती हैपवित्र प्रेम का दम मन में घुट जाती हैजिस मन के रस्ते तू चला जा रहा हैउसी मन से पूछो तू छला जा रहा ह

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किस गति से चलूँ मैं/ सीताराम पंडित

6 दिसम्बर 2015
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मार्ग अति दुर्गम हैवक़्त बहुत कम हैकिस गति से चलूँ मैंकिस क्षति को सहूँ मैंजिसे चला था साथ लेकरछोड़ दिया मात देकरकिसके पाँव पडूँ मैंकौन सा राह धरूँ मैंअब मन में एक आस लिएखुद पे एक विश्वास लिएअकेले विघ्नों से लड़ूं मैंलक्ष्य की पथ पर बढूँ मैंबाधाओं की बेड़ियों को,खुद ही तोड़ता हुवासफलताओं की कड़ियों को,खुद

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अमावश में चाँद की खोज/सीताराम पंडित

6 दिसम्बर 2015
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एक दिन की बात हैअमावश की रात थीचांद न था आसमान मेंतारे थे परेशान मेंएलान किया तारे ने मिटिंग बनाई सारे नेसबको था दु:ख तोझट से चुने मुखिया शुक्र कोचर्चा उठाई मंगल नें चंद्रमा होगी जंगल में आधी रात हो चुकी थी सारी दुनियां सो चुकी थी शुक्र ने दिया आदेश मंगल कोवे तुरत जाए जंगल कोथा बहुत अंधेरा  मंगल को

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गरीबी/ सीताराम पंडित

6 दिसम्बर 2015
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किस गरीबी की बात करते हैंसरकारी सुविधा पाने के लिएया पक्की मकान नहीं हैया कामचोर हो गए हैंगरीबी उन्मूलन के करोड़ों की वित्तगद्दी वाले दिखातें हैं उसी कोष से नेताअपनी शान दिखाते हैंअसली गरीब अपनी गरीबी में हीसुख पाता है,दो वक़्त की इज्जत की रोटी वह मेहनत से कमाता हैहराम की रोटी सुहाती नहीं गरीबों कोसु

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एक खिलौना मनुष्य

6 दिसम्बर 2015
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एक खिलौना कुछ इसतरह से गढ़ दिया,दे दिया दिव्यशक्ति मनुष्य मेंवक्त के साथ चलता-फिरता,सम्भलता-गिरता रहानित-नूतन रहस्य सरेआम हुआ विश्व मेंरवि,सोम...,शनि देख रहा वर्षों से,ये चश्मदीद हैं, दे सकते गवाहीबुरे करतूतों की लेखनी में,तुच्छ जलधिभलाई बखान में पर्याप्त है दावात की स्याही वक़्त करवट लेता हुआ पहिये क

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आज की शिक्षा प्रणाली

7 दिसम्बर 2015
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आज की शिक्षा प्रणाली से कौन वाक़िब नहीं है? सब जानते हैं कि किस तरह विद्यालयों में बच्चों के भविष्य को फांसी पर लटकाया जा रहा है। ऐसी दशा को देखकर लगता है शिक्षक के जगह पर जल्लाद को पढ़ाने का काम सौंप गया है।   हम धूर्त सियार की कहानी से रूबरू हैं- जो अपने शरीर में नीला रंग लगने के कारण खुद को जंगल का

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किताब/ सीताराम पंडित

14 दिसम्बर 2015
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कितनी खुबसुरस्त है वह दोस्त हमारीकभी सिरहाने होती है, कभी अलमारीहम पथिक हैं,हमें मार्ग की पहचान कहाँहम चले हैं अकेले पथ पर, राह ले जाता जहाँभटक रहे थे,मंजिल भी बिछड़ रही थीकिताब ने पथ बताया,वरना बिखर जाता यहाँकिसी कोने की अंधेरों में सिमट चूका थाअज्ञानता की आगोश में लिपट चूका थारौशनी की किरणें आती थी

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पेड़ों को मत काटो इंसान/ सीताराम पंडित

14 दिसम्बर 2015
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पेड़ों को मत काटो इंसानइसने ही वायु बनायाइसने ही जल बर्षायाइसपे टिकी है सबकी जानपेड़ों को मत काटो इंसानये धरती थी आग का गोलाजो थी एक धधकती शोलाअंबर ने इसे ठंडा कियाऔर पेड़ों को मिली प्राणपेड़ों को मत काटो इंसानपंथी को ये देती छायापंछी को ये देती सायावृक्ष है अन्नदाता हमारेसब करो इसकी गुणगानपेड़ों को मत क

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मांग रही कुर्बानी माता

1 जनवरी 2016
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मांग रही कुर्बानी फिर सेकण-कण से आ रही पुकार हैचरणों में शीश चढ़ाने कोकब से हम तैयार हैंलगे हाथ से हाथ मिलाकरतुम भी अब कदम बढ़ाओमांग रही कुर्बानी माताशीश की अब भेंट चढ़ाओलगी जेहन में एक आग अग्न सीपगड़ी सर पे बांध कफ़न कीमर के भी जीने को तैयार हैंमांग रही कुर्बानी माताकण-कण से आ रही पुकार हैदम भी तूझमें क

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