खुशियों का खजाना.... कुछ बंटा... कुछ गुमा... कुछ छूटा... कुछ जमाने ने लूटा.... खुशियों का खजाना.... पास था... जब कुछ अपनों का साथ था... कैसा बेखबर.... नादान था.... सहेज कर रख नहीं पाया इस बेजोड़ थाती को... इसके अनमोल मोतियों को मन मंजूषा में.... सुरक्षित.... अब बीनता हूँ.... बेमियाद... बेतरतीब बिखरे पड़े यादों के बेशकीमती मोती... कहाँ सिमट पाता है खजाना... पर खुश हो लेता है मन खुशियों की परछाई से मुट्ठी भर कर... अब खजाना न सही... पर कुछ तो शेष है अभी भी मेरे पास... जो अशेष है.... अत्यंत प्रिय है... अंश ही सही... अनंत है........ ...... 🌟 ......