क्रोध को हि जितने मे सच्ची मर्दानगी है। क्रोध तो मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर क्रोध का मतलब है दूसरे की गलतियो की सजा खुद को देना। क्रोध समझदारी को घर से फेकने के समन तो। क्रोध मे मनुष्य की आंखे बंद हो जाति है जुबान खुल जाता है क्रोधहिन मनुष्य देवता है ।बाहर निकाल देती है और अक्ल के दरवाज़े से शुरु होता है का पश्चाताप पर समाप्त होती है। मनुष्य क्रोध मे समुद्र की तरह बहरा आग की तरह उतावला हो जाता है । क्रोध को श्रमा से अहंकार को नम्रता से और लोभ को संतोष से जीत कर मनुष्य जीवन को सफल बनाये। सुबह से शम तक 24 घंटे काम करने मे व्यक्ति उतना नहीं थकता जितना एक घंटे क्रोध करने मे थक जाता है
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