कुमार संदीप के बोल
थी जो नन्ही कली , अब खिलने लगी है ;नन्हे बच्चे की हंसी जैसे , फिर खिलने लगी है ;इस कदर छाया है आफ़ताब मुझ पर ;की आज फिर ज़िंदगी मुस्कुराने लगी है । की थी कोशिशे ;अब रंग लाने लगी हैं ;थी जो इन्तिजा , साहिल पाने लगी है ;इस कदर बरसा है , मशरूफ खुदा का नूर मुझ पर की आज फिर ज़िंदगी मुस्कुराने लगी है |