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कुमार संदीप के बारे में

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कुमार संदीप की पुस्तकें

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कुमार संदीप के लेख

तू ही तेरे संग है

22 मई 2016
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जिंदगी एक जंग हैयह खतरों की सुरंग हैपर देखकर हौसलों को तेरेमुश्किलें भी दंग है।यह सफर काटों का तरंग हैकरले पार उसका भी क्या रंग है!इस निर्मेय पथ पर बस तू ही तेरे संग है।जो कहें राहें तेरा क्या ढंग हैयहाँ कौन तेरे संग हैकह दे मुस्कुरा कर तू भी तू ही तेरे संग है।मत हार यह बड़ी जंग हैजीत ले उस पार खड़ी

कुमार संदीप के बोल

20 दिसम्बर 2015
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थी जो नन्ही कली , अब खिलने लगी है ;नन्हे बच्चे की हंसी जैसे  , फिर खिलने लगी है ;इस कदर छाया है  आफ़ताब मुझ पर ;की आज फिर ज़िंदगी मुस्कुराने लगी है । की थी कोशिशे ;अब रंग लाने लगी हैं ;थी जो इन्तिजा , साहिल पाने लगी है ;इस कदर बरसा है , मशरूफ खुदा का नूर मुझ पर की आज फिर ज़िंदगी मुस्कुराने  लगी है |

कुमार संदीप के बोल

4 अक्टूबर 2015
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कागज पर लिख ये, दो जज्बात अपनेक्या पता कल ये जज्बात रहे या ना रहे !जी भर कर जी लो ये "आज" अपनाक्या खबर ये "आज" ;कल रहे या ना रहे !कभी फुरसत मिले तो हमे भी याद कर लेना दोस्तोंक्या पता कल तुम रहोपर हम रहे या ना रहे !लेखक:कुमार संदीपलोसल;सीकर(rajasthan)

कुमार संदीप के बोल

4 अक्टूबर 2015
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उठ नही पा रहा हूँ ,चल नही पा रहा हूँशायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ !न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ !सम्भल नही पा रहा हूँ ,समझ नही पा रहा हूँ जाने क्या मैं यह किये जा रहा हूँशायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ !न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ !जी भी नही पा रहा हूँ ;मर भी नही पा रहा हूँमैं तो

कुमार संदीप के बोल

23 सितम्बर 2015
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जाना हे उस पर जहाँ से होता हे इस जहाँ में सवेराना रुक ना झुक अभी तो पार करना हे अँधेरा !लेखक:कुमार संदीप(लोसल,सीकर)

कुमार संदीप के बोल

23 सितम्बर 2015
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जाना हे उस पर जहाँ से होता हे इस जहाँ में सवेराना रुक ना झुक अभी तो पार करना हे अँधेरा !लेखक:कुमार संदीप(लोसल,सीकर)

kumar sandeep ke बोल

23 सितम्बर 2015
4
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माना ये पल तुम्हे कर देंगे झकझोरपर डटे रहना होना ना कमजोरगौर से देखना वहीँ चारो औरमिल जाएगी कहीं एक आशा की डोरतब डोर के सहारे चल देना उस औरकामयाबी मिलती हो जिस औरअपने धीमे कदमो से मचा देना सफलता का शोरऔर बन जाना सफलता के सफल चोरअगर सुनना हो कुछ औरतो कहना यार संदीप एक और एक औरलेखक:कुमार संदीप(लोसल,सी

jab main tha un chand sitaron k beech

21 सितम्बर 2015
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Jab main tha un chand sitaron k बीचYe log bag kahte the dekho chand najar aa rha हेKisi din lagni thi nazar mujhko Aaj vo din aa hi gya Aakhir chand toot hi गयाVo log jo mujhe chand samjhte the Kisi or chand samjh बैठेMujhe to raste ka patthar samjh बैठेTootkar girne ka apna alag hi mjja हेGirkar ut

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