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कुमार संदीप के बोल

4 अक्टूबर 2015

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उठ नही पा रहा हूँ ,चल नही पा रहा हूँ शायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ ! न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ ! सम्भल नही पा रहा हूँ ,समझ नही पा रहा हूँ जाने क्या मैं यह किये जा रहा हूँ शायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ ! न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ ! जी भी नही पा रहा हूँ ;मर भी नही पा रहा हूँ मैं तो मन ही मन हारे जा रहा हूँ ! शायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ ! न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ ! लेखक: कुमार संदीप लोसल(राजस्थान)
पंकज कुमार

पंकज कुमार

मान गए जनाब !

6 अक्टूबर 2015

कुमार  संदीप

कुमार संदीप

शुक्रिया ! ओम प्रकाश जी

5 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

संदीप, बात एक बार फिर वही है कि ‘तेरी हार भी नहीं है तेरी हार, उदास मन काहे को करे’...कितनी ही बार यह कहा जाता है कि किसी बड़ी जीत के पीछे, ‘पराजय’ का बहुत बड़ा रोल होता है । आप सिर्फ पूरे मन से अपना काम करते जाइए, और अपनी इस तत्काल हार-जीत की व्यथा-कथा को अपने पेरेंट्स, और शुभचिंतकों के साथ शेयर ज़रूर करें । आपकी जीत होगी । धन्यवाद !

5 अक्टूबर 2015

dinesh

dinesh

वाह !संदीप जी

5 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

सत्य वचन, संदीप जी! डर, इंसान के व्यकितत्व को पंगु कर देता है, अतः निडर होकर जीना ही जीवन है!

5 अक्टूबर 2015

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

कितनी अच्छी बात कही है

5 अक्टूबर 2015

कुमार  संदीप

कुमार संदीप

धन्यवाद,माँ जी !

4 अक्टूबर 2015

अर्चना गंगवार

अर्चना गंगवार

शायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ ! न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ ! उम्द्दा बात कही ।…।.....dr से इंसान ज्यादा हारता है

4 अक्टूबर 2015

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कुमार संदीप के बोल

23 सितम्बर 2015
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जाना हे उस पर जहाँ से होता हे इस जहाँ में सवेराना रुक ना झुक अभी तो पार करना हे अँधेरा !लेखक:कुमार संदीप(लोसल,सीकर)

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कुमार संदीप के बोल

23 सितम्बर 2015
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जाना हे उस पर जहाँ से होता हे इस जहाँ में सवेराना रुक ना झुक अभी तो पार करना हे अँधेरा !लेखक:कुमार संदीप(लोसल,सीकर)

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कुमार संदीप के बोल

4 अक्टूबर 2015
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उठ नही पा रहा हूँ ,चल नही पा रहा हूँशायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ !न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ !सम्भल नही पा रहा हूँ ,समझ नही पा रहा हूँ जाने क्या मैं यह किये जा रहा हूँशायद यही सोचकर मैं डरे जा रहा हूँ !न जाने क्यों ? मैं हारे जा रहा हूँ !जी भी नही पा रहा हूँ ;मर भी नही पा रहा हूँमैं तो

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कुमार संदीप के बोल

4 अक्टूबर 2015
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कागज पर लिख ये, दो जज्बात अपनेक्या पता कल ये जज्बात रहे या ना रहे !जी भर कर जी लो ये "आज" अपनाक्या खबर ये "आज" ;कल रहे या ना रहे !कभी फुरसत मिले तो हमे भी याद कर लेना दोस्तोंक्या पता कल तुम रहोपर हम रहे या ना रहे !लेखक:कुमार संदीपलोसल;सीकर(rajasthan)

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कुमार संदीप के बोल

20 दिसम्बर 2015
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थी जो नन्ही कली , अब खिलने लगी है ;नन्हे बच्चे की हंसी जैसे  , फिर खिलने लगी है ;इस कदर छाया है  आफ़ताब मुझ पर ;की आज फिर ज़िंदगी मुस्कुराने लगी है । की थी कोशिशे ;अब रंग लाने लगी हैं ;थी जो इन्तिजा , साहिल पाने लगी है ;इस कदर बरसा है , मशरूफ खुदा का नूर मुझ पर की आज फिर ज़िंदगी मुस्कुराने  लगी है |

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तू ही तेरे संग है

22 मई 2016
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जिंदगी एक जंग हैयह खतरों की सुरंग हैपर देखकर हौसलों को तेरेमुश्किलें भी दंग है।यह सफर काटों का तरंग हैकरले पार उसका भी क्या रंग है!इस निर्मेय पथ पर बस तू ही तेरे संग है।जो कहें राहें तेरा क्या ढंग हैयहाँ कौन तेरे संग हैकह दे मुस्कुरा कर तू भी तू ही तेरे संग है।मत हार यह बड़ी जंग हैजीत ले उस पार खड़ी

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