लघुकथा माँ
वैदेही को उसके ससुराल वालों तथा पति ने धक्के मार कर घर से निकाल दिया था।तब से मायके में ही रहकर दो जुड़वां पुत्रों की माँ बनी व उनको पालने में जीवन बिताने लगी।
मगर मन ही ही दुखी थी ,अवसाद से घिरती जा रही थी।
माँ से वैदेही की हालत छुपी नहीं थी।समझ नहीं पा रही कि कैसे बेटी को निराशा से उबारे।
एक दिन दोपहर के समय वैदेही ने फिनाइल पी लिया।और बेहोश होकर गिर पड़ी।
माँ-रोते हुए,ओह मेरी बेटी ,,तूने ये सब क्यों किया?*
वैदेही-अर्ध बेहोशी में,,बड़बड़ाती हुई,माँ ,,मेरे दोनों बेटों को पाल लेना,,मैं जिंदगी से लड़ते लड़ते थक चुकी हूँ,,
नहीं!बेटी मैं अभी तेरे मामा डॉक्टर को बुलाती हूँ,,ये कहकर फोन करके मामाजी को बुलवाकर घर पर ही इलाज शुरू करवाती हैं।
कई घण्टों की मेहनत के बाद वैदेही खतरे से बाहर आती है।
माँ-वैदेही ,,होश में आ बेटी,,दोनों बेटों को वैदेही के पास बैठा देती हैं
दो साल के दोनों बेटों के कोमल स्पर्श से व रोने से वैदेही को होश आ जाता हैं,,
वैदेही-ओह!मेरे बच्चों मुझे माफ़ कर देना ,,मैं कुछ पल के लिए कमजोर पड़ गयी थी।मेरे बच्चों व मेरी माँ,,मुझे माफ़ कर देना।
माँ के समझाने पर वैदेही ने कसम खाई कि अब वह कभी आत्म हत्या के बारे में सोचेगी भी नहीं।
दोपहर तक तबीयत ठीक होने पर माँ ने वैदेही व उसके बेटों को पीले रंग की पोशाक पहनाई व पीले फूलों से उनका श्रृंगार किया।
वैदेही-माँ!ये सब क्यों?
माँ-वो इसलिए कि आज मेरी बेटी का नया जन्म हुआ हैं,, आज सीता नवमी हैं और तू भी मेरी सीता ही हैं,,
तू कभी कमजोर नहीं पड़ेगी बेटी और दोनों बेटों को पाल पोष कर बड़ा करेगी।खा कसम,,कि माता सीता की तरह कभी धरती माँ की शरण में नहीं जाएगी,,कभी खुद का अहित नही चाहेगी!
वैदेही-हाँ माँ ,,मैं कसम खाती हूँ।
कमजोरी के बावजूद हिम्मत करके माँ के अनुरोध पर वैदेही दोनों बेटों को पास लेकर बैठी और माँ खुश होकर दनादन फोटो खींचने लगी,,
फोटो देखकर ऐसा ही लग रहा था मानो माता सीता फूलों का श्रृंगार किए व फूलों की माला बनाती हुई बेटों के साथ बहुत खुश है।
आज दोनों माएँ बहुत खुश थी
वैदेही की माँ जिसने सूझबूझ से मौत के मुँह में गयी बेटी को बचाकर जीवन जीने की प्रेरणा दी थी और दूसरी वैदेही जो सोच रही थी,
कि ,,काश उसने आत्महत्या का कदम न उठाया होता।
मगर अब समझ चुकी थी कि दोनों बेटों के पालन पोषण में ही जीवन बिताना है ,,हिम्मत नहीं हारनी है।अब वह माँ शब्द की ,,माँ की महानता की अहमियत समझ चुकी थी।सच है माँ धरा पर ईश्वर का ही रूप है।
देर आयद दुरुस्त आयद।
एक दिन के चंद घण्टों में ही वैदेही के जीवन की दिशा व सोच बदल चुकी थी।वो भी ममतामयी माँ के कारण।