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लेख- किस दिशा में जा रहा समाज

30 अगस्त 2017

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इस सभ्यता को हुआ क्या है। कहीं हिंसात्मक माहौल है, कहीं बर्बरता की सीमा लांघा जा रहा है। क्या यहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था है। जिस समाज की सभ्यता और संस्कृति के रग-रग में आपसी भाईचारा और वसुुधैव कुटुम्बकम की भावना समाहित है। अगर उस समाज में बर्बरता और हिंसात्मक परिवेश अपने चरम की ओर बढ़ रहा है। फिर यह विषय विचार-विमर्श योग्य है, कि क्या कारण है, कि देश में भीड़तंत्र उग्र हिंसात्मक रूप धारण करती जा रही है। जिस देश के लिए उच्चारित किया गया हो, कि हिंद देश के निवासी सभी जन एक है। उस देश में सम्प्रदायिक भेदभाव, और धर्म-जाति के आधार पर वैमनस्य का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अगर देश में धर्म-जाति के ठेकेदारों की बदौलत देश में उग्रवाद की भावना प्रबल हो रही है। फिर देश के रहनुमाओं के साथ समाज को भी सर्वप्रथम इस विषय पर गौर करना चाहिए, कि विश्व को सभ्यता की सीख देने वाले देश का आम नागरिक आदमखोर भेडियाॅ क्यों बनता जा रहा है। समय हमें अगाह कर रहा है, कि हम अपनी सभ्यता के 21वीं सदी में प्राप्त उपलब्ध्यिों पर गुमान करने से पूर्व विचार करें, कि क्यों हमारा समाज जो विश्व का जगत विजयता होने के साथ आपसी भाईचारे का संदेश देने वाला हैं वह देश आपसी क्लेश और फितरती उलूल-जुलूल की अंधधता में फंसकर मानवता को क्यों शर्मसार कर रहा है। यह हमारे उस समाज के लिए घतरे की घंटी है, जिस समाज मेें कबीर, तुलसीदास जैसे महापुरूष रहकर आपसी धर्माें को संगठित करने की बात कहकर गए है। भारत की जड़ एकता है, उसे धर्म और अन्य आधारों पर विभाजित करने वाले समूहों से बचाना होगा। आज देश की स्थिति यह हो चली है, कि पुलिस और प्रशासनिक अमला भी इन घटनाओं का मूकदर्शक बन चुका है, या फिर वह खुद इस भीड़तंत्र का निशाना बन रहा है। फिर ऐसे में हमारा देश किस राह पर जा रहा है, इसका अंदेशा लगाया जा सकता है। यह हमारे लोकतंत्र की रस्म बन गई है, कि कुछ गिनी-चुनी घटनाओं का मुकादमा दर्ज कर लिया जाता है, और कुछ का तो मात्र सरकारों और सियासतदानों द्वारा निंदा व्यक्त करते तिलांजलि दी दे जाती है। ऐसे में हमारे देश के सामने विकट स्थिति उत्पन्न हो गई है, कि इस भीड़ तंत्र से कैसे निपटा जाएं, जो सभ्य समाज के लिए आदमखोर बनते जा रहें है। वर्तमान दौर में कट्रता अपने चरम सीमा की तरफ अग्रसर हो रही है। उस पर लगाम लगाना होगा, नहीं आने वाले वक्त में भीड़तंत्र अपनी बंदिशों और हदों से पार हो जाएगी। अगर भीडतंत्र कहीं गौहत्या के नाम पर तो कहीं धर्म-सम्प्रदाय और मजहबी आधार पर हत्या करने पर बल दे रही है, तो यह हमारे समाज का अब तक का सबसे बिगड़ा हुआ स्वरूप जगजाहिर हो रहा है। जिस पर बंदिशें लगाना होगा। उग्रवाद कभी भी किसी धर्म-सम्प्रदाय और देश के हित में साधक नहीं बल्कि बाधक ही बनी है। इसलिए उग्र होती भीड व्यवस्था को काबू में करने की व्यवस्था हमारे लोकतांत्रिक रहनुमाओं को ढूढना होगा, क्योंकि यह भीडतंत्र देश के चारों कोनों में भयावह स्थिति उत्पन्न करती हुई दिख रही है। चाहे वह कश्मीर हो, या कन्याकुमारी। बंगाल हो, या मणिपुर। देश की व्यवस्था को धत्ता बताने का कार्य तब और मालूम पड़ता है, जब इस भीड़तंत्र के गुनाहों पर पर्दा डालने का प्रयास किया जाता है। यह हमारे देश की वर्तमान व्यवस्था की बिडंबना ही कही जाएगी, कि उग्र भीड़ तंत्र को रोकने की नहीं, बल्कि उकसाने की रवायत बढ़ रही है। जो देश को गर्त की तरफ खींच रहा है। जिसके कारण देश में कानून-व्यवस्था और न्याय प्रणाली का भय मिटता जा रहा है। अगर हरियााणा के असावटी स्टेशन पर खूनी भीड़ के कृत्यों को कोई देख नहीं सका, और जम्मू कश्मीर के श्रीनगर में पीड़ित अयूब पंड़ित को कोई पहचान नहीं सका। फिर इससे भयावह स्थिति हमारे समाज की ओर क्या हो सकती है, कि उसकी मानवता घिस चुकी है। दरियादिली और सामाजिक ताने-बाने की कोई कसौवटी समाज में बची ही नही है। जो समाज की सबसे दयनीय स्थिति पैदा करती है। जुनैद और उसका भाई स्टेशन पर लहूलुहान पड़े रहते है, और प्रत्यक्षदर्शाी नहीं मिलते, इतने ही नहीं देखने पर समाज में अनियंत्रित भीड़ के शिकार हुए तमामों लोग मिल जाएँगे, जो आदमखोर भीड़ के कारण अपनी जान गँवा चुके हैं. जिसमें हालिया घटनाओं में पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर में तीन लोगों को भीड़ ने मार दिया। 9 जून को राजस्थान के बाड़मेर में तमिलनाडु के पशुपालन विभाग के कर्मचारी 50 गाय बछड़ों को खरीद कर अपने राज्य लौट रहे थे। इनके पास तमाम काग़ज़ात होने के बाद भी 50 लोगों की भीड़ टूट पड़ती हैं। ट्रक में आग लगा देती है। ड्राईवरों को मारती हैं। फिर हम क्या कहें, कि समाज किस दिशा में करवट ले रहा है। क्या समाज ने अपनी सभी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों का गला घोटकर रख दिया है। ऐसे में समाज का क्या होगा, यह बताने की जरूरत नहीं। साफ-साफ परिलक्षित होता है। इस भीड़ तंत्र के वर्तमान विकसित स्वरूप में परिलक्षित होने का एक मुख्य कारण हमारी लोकतांत्रिक राजनीति क व्यवस्था भी है, जो इस भीड़ तंत्र को विकसित और पल्लवित मात्र अपने हितों को साधने के लिए करती आ रही है। देश में ऐसी घिनौनी मानसिकता पर वार करना होगा। इसके साथ आदमखोर होती भीड़तंत्र की मानसिक स्थिति में जो राजनीतिक मौकापरस्त लोग जहर घोलने का काम कर रहें है, उनसे पहले निपटना होगा। वर्तमान व्यवस्था में जो चल रहा है, उसे मात्र सामाजिक हिस्से का एक अंग मानकर आपराधिक कृत्यों को समाज में आश्रय देना भविष्य के सामाजिक परिवेश के लिए शुभ संकेत नहीं होगा। इस तरीके की भयावह व्यवस्था सामाजिक व्यवस्था के दरकने के साथ प्रशासनिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था के कमजोर होने का प्रतीक परिलक्षित हो रही हैं। अगर हमारा समाज और कानून व्यवस्था ऐसे ही भीड़तंत्र की करतूतों को देखने का आदी होती गया,, तो यह समाज में भंयकर तबाही का कारण आने वाले समय में साबित होगा। ऐसे में जरूरत है, कि आदमखोर होते इस भीड़तंत्र के सभी पर काटे जाएं, नहीं तो कहीं देर न हो जाएं, और समाज में कलुषित वातावरण अपनी पैठ बना लें।

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