महाकाल में भस्म आरती
महाकाल में भस्म आरती होती है पहले यहां जलती हुई चिता की राख लाकर पूजा की जाती थी इसलिए माना
जाता था कि महाकाल का संबंध मृत्यु से है प्राचीन काल में पूरी दुनिया का मनक समय यहीं से निर्धारित होता था इसलिए इसे महाकालेश्वर नाम दे दिया गया। महाकाल ने दूषण का वध किया और उसकी राख से ही अपना श्रृंगार किया। उसके बाद वो यहीं विराजमान हो गए। तब से भस्म आरती का विधान बन गया। ये दिन की सबसे
पहली आरती होती है।सुबह 4 बजे की भस्म आरती देखने के लिए लोग पहले से रजिस्ट्रेशन तक कराते हैं। इस आरती में शामिल होने की सबसे पहली शर्त यही है कि इस आरती को औरतें नहीं देख सकतीं। जब यह आरती होती है तो औरतों को घूंघट करना पड़ता है।
ऐसी मान्यता है की विक्रमादित्य के समय से ही इस मंदिर के पास और शहर में कोई राजा या मंत्री रात नहीं गुजारता है। इससे जुड़े कई उदाहरण भी प्रसिद्ध हैं
महाकाल मंदिर के नीचे एक मंदिर
सन 2018 से महाकाल मंदिर परिसर में खुदाई चल रही है. खुदाई के दौरान मंदिर के उत्तरी छोर में मंदिर के
प्रमाण मिले हैं, जिसमें उत्कृष्ट खंभे, आधार ब्लॉक, मंदिर के गुंबद के हिस्से, पत्थर के नक्काशीदार रथ शामिल हैं. ये अवशेष 11वीं और 12वीं शताब्दी के बीच के बताए जा रहे हैं. वहीं महाकाल मंदिर के दक्षिणी छोर में गर्भ में कई पुरानी दीवारें दबी मिली हैं. सतह से चार मीटर नीचे दीवार के अवशेष मिले हैं. ये अवशेष 185 से 73 ईसा पूर्व काल के बताए जा रहे हैं.उज्जैन महाकाल में खुदाई कर रही जांच टीम की मानें तो गहराई में जाने पर और भी बहुत कुछ पुरातात्विक अवशेष मिलने की संभावना है. पिछले साल भी महाकाल मंदिर में खुदाई के दौरान कई पुराने अवशेष मिले थे |