उर्मिलेश उन थोड़े से पत्रकारों में है, जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता का सम्मान इस कठिन और चुनौतीपूर्ण समय में बचाकर रखा है। वह पत्रकार होने के साथ निःसंदेह एक अच्छे गद्यकार- संस्मरणकार भी हैं। यह पुस्तक खोजी-पत्रकारिता का एक अलग तरह का उदाहरण है। उर्मिलेश कहीं भी जाते हैं, उनका खोजी पत्रकार और संस्मरणकार एक साथ सक्रिय हो जाते हैं। उनका अध्येता इन दोनों रूपों को एक अलग रंग दे देता है। इसलिए वह पुणे जाते हैं तो महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की भतीजी और वी डी सावरकर परिवार की बहू और खुद गोपाल गोडसे से मिलकर उनके मानस की तीख़ी पड़ताल करते हैं। वह गाजीपुर जाते हैं तो क्रिस्टोफर कॉडवेल से संबंध सूत्र जोड़ने के बाद अब विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर और कार्नावालिस से इस शहर के संबंधों की पड़ताल करते हैं। एक पत्रकार-लेखक की जीवंत लेखनी का प्रमाण है, यह पुस्तक। —विष्णु नागर सभ्यताओं के इतिहास का दायरा इतना असीमित है कि उसे महज दस्तावेज़ों और आँकड़ों से नही समझा जा सकता। उसके मर्म को जानने में यात्राएँ ज्यादा सहायक है। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की यह किताब उनके जीवन की अनेक असाधारण यात्राओं का जीवंत बयान भर नही है। इस यात्रा-वृत्तांत में कुछ असाधारण मुलाकातें हैं। इस किताब में कमोपेश पूरा भारत है—कश्मीर से केरल तक। केरल के दौरे पर कोच्चि पहुँचीं क्वीन एलिजाबेथ हैं। नंबूदिरिपाद हैं। अरुंधति रॉय ही नहीं, उनकी माँ मेरी रॉय भी हैं। सत्तर के दशक से अब तक का बनता-बिगड़ता गाजीपुर है। ठहराव और अच्छे-बुरे बदलाव की अनेक कहानियाँ हैं। उर्मिलेश के इन वृत्तांतों में उनकी गंभीर इतिहास-दृष्टि है।—डॉ. रतनलाल
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