जिंदगी से खुशी सब, दफा हो गयी।
मौत भी कम्बख्त अब, खफा हो गयी।
उन दिनों कुछ हवाऐं, चलीं इस तरह,
जिंदगी काफी हद तक, तवाह हो गयी।
हमने भूलों को रस्ते, दिखाऐ मगर,
राह मेरी ही मुझको ,दगा दे गयी।
लोग कहते है जिसको, मेरी जिंदगी,
मौत से भी वह बदतर, सदा से रही।
हम अकीदत के जल को, चढायें कहाँ,
मेरी खुद जिंदगी, बेवफा हो गयी।
-----मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
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