अब उठो शिक्षको भोर हुई, कुरुक्षेत्र में जाना ही होगा ।
जो वचन दिया भारत माँ को ,करके दिखलाना ही होगा।
गांडीव उठा लो हाथों का, बध करो अँधेरी रातों का,
तुम 'ज्ञान बाण ' संधान करो, अज्ञान मिटाना ही होगा।
उस 'विश्व गुरु' भारत का फिर, दुनिया में परचम लहरा दो,
शिक्षको तरासो भारत को, यह देश बचाना ही होगा ।
संस्कृति डूबती जाती है ,उन पश्चिम के आगोशों में,
प्रण करो आज हुंकार भरो, अब चीर बढाना ही होगा ।
शिशु कर्णधार, इनको सम्हार, इस रचना का शिक्षक कुम्हार,
नव सृजन हो सके अब 'मोहन' , वह गीत सुनाना ही होगा ।
शिक्षको चुनौती स्वीकारो, भारत का भाग्य बदल डालो,
घर घर में 'ज्ञान दिवाली' हो, हर दीप जलाना ही होगा ।
-----मनीष प्रताप सिंह 'मोहन' कृपया टिप्पणी के माध्यम से अपनी अनुभूति को व्यक्त अवश्य करें। आपकी टिप्पणियाँ हमारे लिये अति महत्वपूर्ण है।