एक दिन मैं बैठा आँगन में
दीवारों के उस पार
क्षितिज को देख
कुछ विचार कर रहा था मन में
तभी अचानक एक चिड़िया आयी
फुदकती गाना गाती
कूड़े में से कुरेद कर कुछ खाती
फिर एक चिड़िया और आयी
एक और आयी
कुछ और आयीं
कुरेद कर कूड़ा वे खाने लगी
मुझे उनका आना अच्छा लगा
और उनपर दया भी आयी
मैंने मुट्ठी भर दाने बिखरा दिये आँगन में
सोचा कि अब जब भी कोई चिड़िया आयेगी
तो कूड़े के बजाय स्वच्छ दाने खायेगी
लेकिन मुझे क्या पता था दोस्तो
दाना डालने के बाद एक चिड़िया भी न आयेगी....
------मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
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