मित्रता ❤️
मित्रता अनमोल रतन ,मित्रता से बड़कर ना कोई धन |
जिसने मेरी पीर सही मैंने जिसकी बाँह गहि |
मेंजब टूटी किरच किरच हुई में जब कन्धा उसका सींच गई |
नहीं उसके बिना मुँहमें कौर गया |
नहीं छोड उसे मन कहीं और गया |
ऊगली थाम चला मेले में |
लाया खींच हर अंधेरे से |
इमली कायथा खटै,मीठे बेर |
लगा दे चंपा चमेली हर सिंगार के ढेर |
कॉपी के पन्नो पर उसका नाम |
जउ राधा और श्याम |
आज भीड़ में खो गया वो कंचन...
धुंधला धुंधला मन दर्पण...
कहता था ना भूलुंगा ना भूलने दुगा |
में वो स्मृति हु जो बन मेह्कुंगा सदा ह्रदय में रखना मेरा नाम |
में ढाई आखर को ना होने दुगा बदनाम |
चढ़ते सूरज जैसी मेरी प्रीत चढ़ी |
सांझ गए ढलती बेला में दीपक के संग बढ़ी |
शीत ऋतू में हुई सुनहरी नरम गुनगनी |
बरखा के संग डोली बन पायल बजनी |
पर रहे अधरों पर ताले हरदम आँखों से बोली |
दीप बार बार जलाकर रखती शगुन मनाया करती |
दी सौगंध मित्रता की मन को समझाया करती |
अब नहीं सहे जाते तुझ बिन ये कठोर पल छिन |
दूरियों के सर्प लिपटे फिर भी महेकता यादो का चन्दन...
तुम कहीं भी रहो खुश रहो इतना ही काफी है |
पर मित्र मेरे साथ बीते पल लम्हे बाक़ी है |
इतना हिसाब उन पलों का तुमको चुकता करना |
खाली पलों में कभी मुझे भी याद करना...
मेरा अब तो शुरू हुआ सफर है अब तो जीवन में बंधन है बाहर से सब पटापेछ पर, स्मृतियों में अंकन है...!!!
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