फूल-फूल, पात-पात पर हसती देखो बूंदे,
भोली भली बिटिया जैसी लगती देखो बूंदे,
चौबारे खिड़की आँगन में देखो बिखरी बूंदे,
खेत मैदान मेड़ से उतरी देखो बूंदे,
शीशे में यूँ निखरी मोती जैसी बूंदे,
माँ के नैनो से जैसे झरके आई बूंदे,
तितली सोन चिरैया के पंख भिगोती बूंदे,
दादुर चातक मोर से हस के मिली बूंदे,
कागज़ की नाव से करे ठिठोली बूंदे,
पोखर ताल तलैया के गले लगी बूंदे,
सावन के झूलो पर झूल रही बूंदे,
बाग़ बगीचों के हाल पूछ रही बूंदे,
मेरे घर आयी, तेरे घर आयी भेद-भाव मिटा कर कोने-कोने बरसी बूंदे...!!!