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बूंदे

13 सितम्बर 2017

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फूल-फूल, पात-पात पर हसती देखो बूंदे,

भोली भली बिटिया जैसी लगती देखो बूंदे,

चौबारे खिड़की आँगन में देखो बिखरी बूंदे,

खेत मैदान मेड़ से उतरी देखो बूंदे,

शीशे में यूँ निखरी मोती जैसी बूंदे,

माँ के नैनो से जैसे झरके आई बूंदे,

तितली सोन चिरैया के पंख भिगोती बूंदे,

दादुर चातक मोर से हस के मिली बूंदे,

कागज़ की नाव से करे ठिठोली बूंदे,

पोखर ताल तलैया के गले लगी बूंदे,

सावन के झूलो पर झूल रही बूंदे,

बाग़ बगीचों के हाल पूछ रही बूंदे,

मेरे घर आयी, तेरे घर आयी भेद-भाव मिटा कर कोने-कोने बरसी बूंदे...!!!

सविता गुप्ता की अन्य किताबें

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं | शुभ कामनाएं |

14 सितम्बर 2017

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तितली

10 सितम्बर 2017
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तितली होती...बेटियाँ बिन पंखों वाली तितली होती है, बेटियाँ अम्बर मे ज्यों बिजली होती है|बेटियाँ चांदनी के जैसे बिखरती है, बेटियाँ भोर की किरण सी चमकती है| बेटियाँ दर्पण देख देख सवरती है, बेटियाँ सूने आंगन मे पाजेब सी खनख़ती है| वे अपने आंगन की कली होती है| बेटियाँ फूलो मे अमलतास होती है, बेटियाँ सुख

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माँ...

11 सितम्बर 2017
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माँ... माँ तेरे होने से मंदिर सा घर लगता है तुम नहीं माँ तो कोने कोने मे डर लगता है| माँ ही गुरु, माँ ही पथ प्रदर्श्क, माँ ही मित्र है, तभी तो अंकित मेरे ह्रदय में ईश्वर रूपी माँ का चित्र है| माँ की ममता से बड़कर कोई उपहार नहीं जग मे, माँ के आशीर्वाद की नेमत बहा करती रग रग में|माँ बाचाकरती बच्चों के

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चिठिया

12 सितम्बर 2017
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बूंदो ने धरती को चिठिया बाची बादल की | छत पे छन छन रात भर बाजी बूंदो की पायल सी | देखो फूल-फूल, पात-पात के मुख धो डाले बूंदो ने | आंगन ओसारे सब भिगो डाले बूंदो ने | अम्बर छूने को झूलो ने पेंग बढ़ाए | ढीढ निर्मोही बदरा देखो घिरघिर आये | दिन में हो गई रात ज्यों डिबरी फैली काजल की | गोरी को नइहर भाय नही

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जननी दिवस 14 सितम्बर

13 सितम्बर 2017
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आज दिवस है हिंदी का, हिंदी तुझको करू नमन | माँ भारत की बिंदी है तू, तू ही माथे का चन्दन | तुझमे शब्द, तुझमे अर्थ, तुझमे ही है परिभाषा | आरोह, अवरोह तुझमे, तुझमे है प्रेम की भाषा |महादेवी की नीर भरी बदली, या फिर ठेठ गांव की कजली |प्रसाद की कामायनी, या हो प्रेम चंद्र की गबन |तुझमे है नाटक, रूपक, छंद,

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बूंदे

13 सितम्बर 2017
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फूल-फूल, पात-पात पर हसती देखो बूंदे,भोली भली बिटिया जैसी लगती देखो बूंदे, चौबारे खिड़की आँगन में देखो बिखरी बूंदे, खेत मैदान मेड़ से उतरी देखो बूंदे,शीशे में यूँ निखरी मोती जैसी बूंदे,माँ के नैनो से जैसे झरके आई बूंदे,तितली सोन चिरैया के पंख भिगोती बूंदे,दादुर चातक मोर से हस के मिली बूंदे,कागज़ की नाव

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मित्रता

14 सितम्बर 2017
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मित्रता ❤️मित्रता अनमोल रतन ,मित्रता से बड़कर ना कोई धन |जिसने मेरी पीर सही मैंने जिसकी बाँह गहि |मेंजब टूटी किरच किरच हुई में जब कन्धा उसका सींच गई |नहीं उसके बिना मुँहमें कौर गया |नहीं छोड उसे मन कहीं और गया |ऊगली थाम चला मेले में |लाया खींच हर अंधेरे से |इमली कायथा खटै,मीठे बेर |लगा दे चंपा चमेली

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नव वधु

15 सितम्बर 2017
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६/२/१७... माँ-पापा को बधु आगमन की बधाई ...आलता भरे पाँव छप गए आँगन मे - नेह स्नेह भरी लहर उठ रही मन में | हर्षित है फुलबारी कली कली मुस्काये - ठुमक रहा कोना कोना - कोना परदे गुनगुनाए | दर दीवार खिल उठी दहलीज के भागय जगे - तुलसी के चौरे पर ऐपण की थाप लगे | माँ आरती का थाल सजा परछनउतार कर - गृह वधु को

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मेरे पापा

15 सितम्बर 2017
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मेरे पापा.... बाँहों में फिर उठा लो पीठ पर फिर बिठा लो ,रूठ जो जाऊ में पापा फिर से मुझे मना लो | पापा में तेरी परी हु, थोड़ी सी नकचढ़ी हु, रूठी रहूंगी मै जब तक मानोगे न बात मेरी | मेरी ख़ुशी के लिए मेरे सारे नखरे उठा लो....आप मेरे मित्र हो, आप हो सखा, मत छिपाओ मुझसे, मुझे सब है पता |चलते चलते जब कभी म

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जनम मेरा

17 सितम्बर 2017
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ओह माँ मुझको इस धरती पे आने तो दे ज़रा, रूप रंग मेरा अस्तित्व में छाने तो दे ज़रा | मै तुमको विश्वास दिलाती हु आँचल खुशियों से भर दूंगी बाबा का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दूंगी |मै महक हु संदल और चन्दन की, मै तेरे आँगन में कंचन बन बरसूँगी |मुझमे नूपुर पायल कोयल के स्वर है, फिर भी न जाने क्यो मुझको अपनों से

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बीज की कहानी

19 सितम्बर 2017
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नवरात्र का पर्व उपासना और साधना के माध्यम से अंतस के सुधि का पर्व है |मन क्रम वचन से आत्मचिंतन करना ही इस पर्व का उद्देश्य है | नवरात्र की शुभकामनाये..!!! बीज की कहानी...!!!झूल गयी बेले फिर ऊंची-ऊंची अटारी चढ़ आयी बेले, हरयाली ऋतू के बाद आँगन की कच्ची गीली माटी में दबा हुआ था बी

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एक नयी इवारत

22 सितम्बर 2017
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एक नयी इवारत लिख रही लड़कियां |भारत बुलंद कर रही लड़कियां |चाँद पर है कदम, पंछियों सी उड़ान |फूलों सी स्निग्ध मुस्कान लिए, स्नेह बाटती, परिवार बांधती,दो कुलो को शोभित कर रही लड़कियां |कौमदी सी चमक लिए, चांदनी सी धवलता, ज्ञान के प्रकाश में, देश के विकास में,कदम दर कदम आगे बढ़ रही लड़कियां |नया जनम मिले इन्

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माँ दुर्गा की स्तुतिः

23 सितम्बर 2017
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जग का नियंत्रण करने वाली माँ की पूजा परम्परा और विधिवत लोग अपने अपने तरीके से करते है| वर्ष के दोनों नवरात्र हिन्दू धर्म में महत्वपुर्ण है | माँ दुर्गा जी की आराधना में नौ देवी,शैल पुत्री,ब्रह्मचारणी,चंद्रघंटा,कुष्मांडा,स्कंद माता,कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी,सिद्धदात्री माँ का पूजन क्रमवद्ध तरीके से

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मुस्कान

4 अक्टूबर 2017
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कोरे कागज भर डाले पर मिली नहीं मुस्कान कही | खोज खोज कर खुद खो गई मिली नहीं पहचान कही | खुशियों की खोली पोटली तो समझा जीवन का है गान यही | आना जाना लगा रहेगा बुजुर्ग दे गए ज्ञान यही | एक दूजे का माने कहना करे खींच तान नहीं | यह एक माटी का कच्चा कुम्भ गल जाएगा करे कभी अभिमान नहीं | झूठ कभी न

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आज मन कुछ कह रहा

4 अक्टूबर 2017
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आज मन कुछ कह रहा आज कुछ पल अपने लिए जिए | समय की चादर पर यादों के बूटे सिए भूल कर चाय कॉफ़ी पीना समय का मीठा चनमृत पिए | आज कुछ पल---- रहने दूघर को यूही अस्त व्यस्त न सही करू चादर की सिलबट बिखरा रहने दू घर का समान खुली छोड़ दू सारी खिड़कियां ठहरे रहने दू खिड़की के परदे हवा को आने दू रौशनी भर जाने दू तर

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किराय का मकान

5 अक्टूबर 2017
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यह किराय का मकान न यह तेरा न यह मेरा | पांच तत्वो का यह घर साँसों का तन मे डेरा | है मुसाफिर कुछ दिनों का कौन है सदा ठहरा | जनम जीवन सार यह क्यों भयभीत हो रहे | पलपल बड़ा अनमोल व्यर्थ जीवन खो रहे | भूलो को भूल आगे बड़ो इसी में जीत का राज गहरा | बोझ हो जो मन पर कह सुनकर हल्का कर लो | परिवर्तन संसार का

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करक पर्व

8 अक्टूबर 2017
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सभी सखी सहेली को करक पर्व की बधाई हठ कर बैठा चाँद आज सोच रहा है मन में ,क्यों कर निकलू आज मै सुन्दर नील गगन में ,देखो मैंने छतो पर कैसी चौपाल लगायी ,सज धज कर बन ठन कर आई सॉस, ननद, भौजाई ,धमा चौकड़ी देखो कैसे बच्चे मचा रहे है,कब आएगा चंदा मामा मुझे ही बुला रहे है ,गोर

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जगमग जगमग दीप जले

20 अक्टूबर 2017
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जगमग जगमग दीप जले उजियारा भरते दीप दिवाली के ,जगमग करते दीप दिवाली के...द्वार-द्वार, आंगन-आंगन, खिड़की-खिड़की, दालान-दालान, शहर-शहर, गांव-गांव, गली-गली, बाग़ बागान, हसते मुस्काते दीप दिवाली के...दीपो की मोहक लड़िया फुलझड़ियो की चिंगारिया, खील, बतासा, मीठा पकवान बाँटो भर-भर धान की लईया, धन धरती पर रखती श्

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